महा मृत्युंजय मंत्र भगवान शंकर का बहुत ही शक्तिशाली मंत्र है। इस मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और सुख शान्ति में वृद्धि होती है तो चलिए अब Maha Mrityunjaya Mantra Pdf नीचे की लिंक से डाउनलोड कर लें।
Mahamrityunjay Mantra in Hindi Pdf
मंत्र – का प्रभाव लघु से लघुतर होते हुए भी बहुत व्यापक तथा प्रभाव शाली होता है। अगर इन्हें सही पद्धति से अभिमंत्रित किया जय तब यह बहुत तीब्र गति से अपना प्रभाव दिखता है। जिस प्रकार छोटे अंकुश से ही महावत विशाल शरीर वाले -हाथी- को अपने आधीन रखता है ,वैसे ही छोटे से मंत्र से प्रसन्न होकर देवता साधक के आधीन हो जाते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र शिव जी का मंत्र है। इस मंत्र का प्रभाव इतना व्यापक होता है की अकाल या असमय आने वाली मृत्यु भी टल जाती है। महामृत्युंजय मंत्र के जप से आरोग्य प्राप्ति के साथ ही सिद्धि भी प्राप्त होती है।
शिव जी को भोले नाथ कहा जाता है लेकिन उनसे जुड़े हुए रहष्य बहुत ही गूढ़ होते हैं। जिसका बर्णन शैव मत से संबंधित पुराण में किया गया है। शिव की पूजा से अक्षय फल की प्राप्ति हेतु नियमों भी आवश्यक होता है।
१ -भगवान शिव के प्रति श्रद्धा होना अनिवार्य शर्त है।
२- ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पूजा करना या पुराण श्रवण करना चाहिए।
३-भूमि पर शयन करना चाहिए।
४-किसी की निंदा या चुगल खोरी से बचने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
५ -ब्रत ,पूजा या पुराण श्रवण करने से पहले नाखून ,बाल की सफाई करनी चाहिए ,वस्त्र साफ होना चाहिए ,मन के साथ ही तन भी शुद्ध होना चाहिए।
६ -तामसिक भोजन और मादक पदार्थों का परित्याग आवश्यक होता है।
७- शिव पूजा के बाद (शिव पुराण , शिव परिवार )की पूजा करना आवश्यक है।
सौभाग्यवती स्त्री अपने पति की लम्बी उम्र के लिए महादेव की पूजा करती हैं। जिसका विधान नीचे बताया गया है।
१- ताँवे के पात्र में जल लेना।
२-महादेव को अर्पित किये जाने वाले वस्त्र।
३-ताँवे के पात्र में दुग्ध ,आक के फूल।
४-विल्व पत्र।
५ -चावल।
६-अष्टगंध।
७- दीपक ,रुई ,तेल।
८-फल,मिष्ठान्न ,पंचामृत।
९- नारियल ,जनेऊ ,पान के ,पत्ते के साथ दक्षिणा भी रख लेनी चाहिए ,फिर उसके पश्चात ही पूजा का शुभारम्भ करना चाहिए।
क्यों कि -सब सामग्री इकठ्ठा रखने के पश्चात पूजा के बीच में उठना नहीं पड़ेगा और पूजा अच्छे ढंग से सम्पन्न हो सकेगी।
महा मृत्युंजय मंत्र Pdf Download
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
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