Mandukya Upanishad Pdf in Hindi / माण्डूक्य उपनिषद Pdf

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

उस सरोवर पर कोई भी नहीं जा सकता है क्योंकि वहां जो भी अपने वास्तविक रूप में जायेगा वह पत्थर बन जायेगा। इतना कहकर हारु दैत्य वहां से चला गया। उस दिव्य सरोवर में स्वच्छ जल भरा हुआ था। उस सरोवर के जल में लाल और नील वर्ण के कमल समूह खिले हुए थे।

 

 

 

 

सरोवर का तट कई प्रकार के वृक्षों से आच्छादित था  सरोवर के जल में कई प्रकार की मछलियां और कछुए विहार कर रहे थे। सरोवर के तट के वृक्षों पर भांति-भांति के पक्षी कलरव कर रहे थे और यही सब स्थितियां सरोवर को दिव्यता प्रदान कर रही थी।

 

 

 

 

कही कही दो चार मनुषाकृत पत्थर की मूर्तियां भी विद्यमान थी जो शायद भूलकर यहां आने के कारण ही पत्थर के रूप में परिवर्तित हो गयी थी और दूसरो के लिए वह चेतावनी थी कोई यहां आने की भूल न करे। मिलन के पास चार शक्तियां थी। उसने इन सभी का उपयोग करने की सोची।

 

 

 

 

मिलन दिव्य स्वर्ण अंगूठी से बोला – हे दिव्य स्वर्ण अंगूठी! क्या तुम मुझे इस सरोवर पर अदृश्य रूप से रहने में सहायता प्रदान कर सकती हो? दिव्य स्वर्ण अंगूठी से आवाज आयी – अवश्य स्वामी! हम इस कार्य में आपकी सहायता अवश्य कर सकते है।

 

 

 

 

मिलन दिव्य स्वर्ण अंगूठी से बोला – तुम्हे यहां हमारी गोपनीयता का ध्यान रखना होगा। यहां पर हमारी उपस्थिति परियो को किसी भी प्रकार से ज्ञात नहीं होनी चाहिए। दिव्य स्वर्ण अंगूठी से आवाज आयी – ऐसा ही होगा स्वामी! दूसरे पल मिलन सशरीर रहते हुए अदृश्य हो गया।

 

 

 

 

मिलन अपनी अदृश्यता की परीक्षा करना चाहता था उसी क्षण सरोवर का वातावरण बहुत सुगंधित हो गया और किसी के आने की आहट होने लगी। वीणा की मधुर स्वर लहरी गूंजने लगी। खिलखिलाते हुए एक साथ कई परियो का सरोवर के तट पर आगमन हो गया।

 

 

 

 

मिलन अदृश्य तो था ही वह सभी परियो के समीप जाकर खड़ा हो गया लेकिन उन सभी परियो को इसका जरा भी अहसास नहीं हुआ कि उनके समीप कोई खड़ा है। मिलन अपनी इस सफलता पर बहुत प्रसन्न था। मिलन की उपस्थिति से अनभिज्ञ सभी परियां सरोवर में जल विहार करने लगी।

 

 

 

 

परियो के लिए आकाश से दिव्य वस्त्र आता था। वह दिव्य वस्त्र को पहनकर अपने गीले हुए वस्त्र को आकाश की तरफ उछाल देती जो आकाश में सूखने के लिए चला जाता। मिलन परियो के सानिध्य का आनंद प्राप्त करते हुए अपने उद्देश्य से भटक गया था।

 

 

 

 

दिव्य स्वर्ण अंगूठी मिलन से बोली – स्वामी! आप जिस उद्देश्य के लिए यहां आये है उससे भटक रहे है और उद्देश्य से भटकने पर हम लोग भी आपका साथ देने में समर्थ नहीं हो सकते है। मिलन स्वर्ण अंगूठी से पूछा – हमे क्या करना चाहिए?

 

 

 

 

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