Meditation in Hindi Pdf | मैडिटेशन बुक्स Pdf

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

गुरु जी के वचन का स्मरण करके मेरा मन श्री राम जी के चरणों में लग गया। मैं प्रत्येक क्षण नया प्रेम प्राप्त करता हुआ श्री रघुनाथ जी का यशगान करता फिरता था। सुमेरु पर्वत के शिखर पर वट वृक्ष की छाया में लोमश मुनि बैठे थे उन्हें देखकर मैंने उनके चरणों में सिर नवाया और अत्यंत दीन वचन कहे।

 

 

 

 

हे पक्षीराज! मेरे अत्यंन्त नम्र वचन सुनकर कृपालु मुनि मुझसे आदर के साथ पूछने लगे – हे ब्राह्मण! आप किस कार्य से यहां आये है। तब मैंने कहा – हे कृपानिधान! आप सर्वज्ञ और सुजान है हे भगवान! मुझे सगुण ब्रह्म की आराधना की प्रक्रिया कहिए।

 

 

 

तब हे पक्षीराज! मुनीरज ने श्री रघुनाथ जी के गुणों की कुछ कथाये आदर सहित कही। फिर वह ब्रह्म ज्ञान परायण विज्ञानवान मुनि मुझे परम अधिकारी जानकर ब्रह्म का उपदेश करने लगे कि वह अजन्मा है, निर्गुण है और अन्तर्यामी है। उसे कोई भी बुद्धि के द्वारा माप नहीं सकता।

 

 

 

वह इच्छा रहित, नाम रहित, रूप रहित, अनुभव से जानने योग्य, अखंड और उपमा रहित है। वह मन और इन्द्रियों से परे, निर्मल, विनाश रहित, निर्विकार, सीमा रहित, सुख की राशि है। ऐसा वेद गाते है कि वही तू है। जल और जल की लहरों की भांति उसमे और तुझमे कोई भेद नहीं है।

 

 

 

मुनि ने मुझे अनेक प्रकार से समझाया पर निर्गुण मत मेरे हृदय में नहीं बैठा। मैंने फिर मुनि के चरणों में सिर नवाकर कहा – हे मुनीश्वर मुझे सगुण ब्रह्म की उपासना कहिए। मेरा मन राम रूपी जल में मछली होकर उसमे ही रम रहा है। हे चतुर मुनीश्वर! ऐसी दशा में वह उससे अलग कैसे हो सकता है?

 

 

 

अप्प दया करके मुझसे वही उपाय कहिए जिससे मैं श्री रघुनाथ जी को अपनी आँखों से देख सकूं। पहले नयन भरकर अयोध्यानाथ को देखकर तब निर्गुण का उपदेश सुनूंगा। मुनि ने फिर अनुपम कथा कहकर सगुण मत का खंडन करके निर्गुण का निरूपण किया।

 

 

 

तब मैं निर्गुण मत को हटाकर बहुत हठ करके सगुण का निरूपण करने लगा। मैं उत्तर-प्रत्युत्तर किया इससे मुनि के शरीर में क्रोध के चिन्ह उत्पन्न हो गए। हे प्रभो! सुनिए, बहुत अपमान करने पर ज्ञानी के हृदय में भी क्रोध उत्पन्न हो जाता है। यदि कोई चंदन की लकड़ी को बहुत अधिक रगड़े तो उससे भी अनल प्रकट हो जाएगी।

 

 

 

मुनि बार-बार क्रोध सहित ज्ञान का निरूपण करने लगे। तब मैं बैठकर अपने मन में अनेक प्रकार का अनुमान करने लगा। बिना द्वैत बुद्धि के क्रोध कैसा और बिना अज्ञान के क्या द्वैत बुद्धि हो सकती है? माया के वश रहने वाला परिछिन्न जड़ जीव क्या ईश्वर के समान हो सकता है?

 

 

 

सबका हित चाहने से क्या कभी दुःख हो सकता है? जिसके पास पारस मणि है उसके पास क्या दरिद्रता रह सकती है? दूसरे से द्रोह करने वाले क्या निर्भय हो सकते है? और कामी क्या बेदाग कलंक रहित रह सकते है? ब्रह्माण्ड का बुरा करने से क्या वंश रह सकता है?

 

 

 

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