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Mere Sapno Ka Bharat Pdf Download
पुस्तक का नाम | Mere Sapno Ka Bharat Pdf |
पुस्तक के लेखक | महात्मा गांधी |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
साइज | 13 Mb |
पृष्ठ | 342 |
श्रेणी | इतिहास |


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सिर्फ पढ़ने के लिए
सूत जी कहते है – शौनक! इतना कहकर वे श्रेष्ठ शिव भक्त ब्राह्मण चुप हो गए। उनका हृदय करुणा से दुखी हो गया था। वे शुद्ध चित्त महात्मा भगवान शंकर के ध्यान में मग्न हो गए। तदनन्तर बिन्दुग की पत्नी चंचला मन ही मन प्रसन्न हो उठी। ब्राह्मण का उक्त उपदेश सुनकर उसके आँखों में आनंद के आंसू छलक आये थे।
वह ब्राह्मण पत्नी चंचला हर्ष भरे हृदय से उन श्रेष्ठ ब्राह्मण के दोनों चरणों में गिर पड़ी और हाथ जोड़कर बोली – मैं कृतार्थ हो गयी। तत्पश्चात उठकर वैराग्य युक्त उत्तम बुद्धि वाली वह स्त्री जो अपने पापो के कारण आतंकित थी। उन महान शिव भक्त ब्राह्मण से हाथ जोड़कर गदगद वाणी में बोली।
चंचला ने कहा – ब्राह्मण! शिव भक्ति में श्रेष्ठ! स्वामिन! आप धन्य है सदा परोपकार में लगे रहते है। इसलिए श्रेष्ठ साधु पुरुषो में प्रसंशा के योग्य है। साधो! मैं नरक के समुद्र में गिर रही हूँ। आप मेरा उद्धार कीजिए, उद्धार कीजिए। पौराणिक अर्थ तत्व से सम्पन्न जिस सुंदर शिव पुराण की कथा को सुनकर मेरे मन में सम्पूर्ण विषयो से वैराग्य उत्पन्न हो गया।
उसी इस शिव पुराण को सुनने के लिए इस समय मेरे मन में बड़ी श्रद्धा हो रही है। सूत जी कहते है – ऐसा कहकर हाथ जोड़ उनका अनुग्रह पाकर चंचला उस शिव पुराण की कथा को सुनने की इच्छा मन में लिए उन ब्राह्मण देवता की सेवा में तत्पर हो वहां रहने लगी।
तदनन्तर शिव भक्तो में श्रेष्ठ और शुद्ध बुद्धि वाले उन ब्राह्मण देव ने उसी स्थान पर उस स्त्री को शिव पुराण की उत्तम कथा सुनाई। इस प्रकार उस गोकर्ण नामक महाक्षेत्र में उन्ही श्रेष्ठ ब्राह्मण से उसने शिव पुराण की वह परम उत्तम कथा सुनी जो भक्ति वैराग्य और ज्ञान को बढ़ाने वाली और मुक्ति देने वाली है।
उस परम उत्तम कथा को सुनकर वह ब्राह्मण पत्नी अत्यंत कृतार्थ हो गयी। उसका चित्त शीघ्र ही शुद्ध हो गया। फिर भगवान शिव के अनुग्रह से उसके हृदय में शिव के सगुण रूप का चिंतन होने लगा। इस प्रकार उसने भगवान शिव में लगी रहने वाली उत्तम बुद्धि पाकर शिव के सच्चिदानंदमय स्वरुप का बारंबार चिंतन आरंभ किया।
ततपश्चात समय के पूरे होने पर ज्ञान, भक्ति और वैराग्य से युक्त हुई चंचला ने अपने शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया। इतने में ही त्रिपुर शत्रु भगवान शिव का भगवान शिव का भेजा हुआ एक दिव्य विमान वहां पहुंचा जो उनके अपने गणों से संयुक्त और भांति-भांति के शोभा साधनो से सम्पन्न था।
चंचला उस विमान पर आरूढ़ हुई और भगवान शिव के श्रेष्ठ पार्षदों ने उसे तत्काल शीपुरी पहुंचा दिया। उसके सारे मल धुल गए थे। वह दिव्य रूप धारणी दिव्यांगना हो गयी थी। उसके दिव्य अवयव उसकी शोभा बढ़ाते थे। मस्तक पर अर्ध चंद्र का मुकुट धारण किए वह गौरांगी देवी शोभाशाली दिव्य आभूषणों से विभूषित थी।
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