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Mokshada Ekadashi Pdf
मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से जातक की मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। पाण्डुवंश के राजा युधिष्ठिर ने भगवान गोविन्द माधव श्री कृष्ण मोक्षदा एकादशी के विषय में जिज्ञासा किया था तथा भगवान श्री कृष्ण मुरारी से आग्रह किया था कि मोक्षदा एकादशी के विषय में विस्तार पूर्वक समझाने की कृपा करे।
महाराज युधिष्ठिर के आग्रह को भगवान बांके बिहारी श्री कृष्ण टाल नहीं सके और अपनी मंद मनोहर मुस्कान के साथ बोले – हे पाण्डु नंदन युधिष्ठिर! आपने यह बहुत ही सुंदर प्रश्न किया है। इस मोक्षदा एकादशी का व्रत करने और सुनने से तुम्हारा यश संसार में फैलेगा।
यह मोक्षदा एकादशी जिसे मार्गशीष शुक्ल पक्ष के नाम से जाना जाता है। यह अनेक पापो को नष्ट करने वाली है इसका नाम मोक्षदा एकादशी है। युधिष्ठिर महाराज बोले – हे केशव! आप कृपा करके यह भी बताये कि उस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है तथा पूजन करने की विधि क्या है?
यदुनंदन भगवान श्री कृष्ण ने कहा – हे महाराज युधिष्ठिर! सुनो, इस दिन दामोदर भगवान की धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूरी निष्ठा के साथ पूजा करनी चाहिए इस विषय में तुम्हे मैं एक पौराणिक कथा का वर्णन सुनाता हूँ। भगवान गिरधारी श्री कृष्ण बोले – गोकुल नामक नगर में एक राजा था वैखानस था।
उसके राज्य में चारो तरफ सुख शांति थी। वह राजा ब्राह्मणो का बहुत आदर सम्मान करता था। उसके राज्य में चारो वेदो का ज्ञान रखने वाले ब्राह्मण रहते थे। वह वैखानस राजा अपनी प्रजा पर पुत्रवत स्नेह रखता था और अपनी प्रजा का कष्ट निवारण करने में सदैव प्रयासरत रहता था।
एक बार राजा ने रात्रि में एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक की पीड़ा भोग रहे है। वह हड़बड़ा कर उठ बैठा उसे चिंता व्याप्त हो गयी कि कैसे अपने पिता का नरक से उद्धार करे। प्रातः काल होने पर वह विद्वान ब्राह्मणो के पास गया और उनसे बोला – हे ब्राह्मण देवताओ! मैंने रात्रि में एक स्वप्न देखा कि हमारे पिता नरक में पड़े हुए है तथा मुझसे याचना कर रहे है कि हे पुत्र! किसी भी उपाय से मुझे यहां यातना से मुक्त कराओ।
जब से मैंने अपने पिता के यह आर्द्र वचन सुने है उस समय से मैं बहुत बेचैन हूँ। मुझे यह राज्य, हाथी, घोड़े, धन, वैभव इत्यादि से कुछ भी सुख प्रतीत नहीं हो रहा है क्या करूँ? मेरा चित्त बहुत अशांत हो गया है। अतः आप लोग कृपा करके तप, दान, व्रत आदि कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे मेरे पिता को मुक्ति का मार्ग प्राप्त हो जाए।
एक उत्तम पुत्र जो अपने पूर्वजो तथा माता-पिता का उद्धार करता है वह हजार मुर्ख पुत्रो से कही उत्तम है। जैसे एक चन्द्रमा से सारा जगत प्रकाशमय हो जाता है परन्तु हजारो तारे एकसाथ भी चन्द्रमा के जितना प्रकाशवान नहीं हो सकते है वैसे ही उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके।
राजा बैखानस की बात सुनकर ब्राह्मणो ने कहा – हे राजन! यहां थोड़ी दूर पर ही पर्वत ऋषि का सुरम्य आश्रम है। वह भूत, वर्तमान तथा भविष्य द्रष्टा है। वह आपकी समस्या का अवश्य ही समाधान कर सकते है। ब्राह्मणो की बात सुनकर राजा बैखानस पर्वत ऋषि के सुरम्य आश्रम में जा पहुंचा।
राजा ने देखा उस सुरम्य आश्रम में अनेक मुनि शांत चित्त होकर तपस्या कर रहे है। थोड़ी दूर पर पर्वत ऋषि ने अपना आसन लगाया हुआ था। राजा ने पर्वत ऋषि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से राज्य और प्रजा की कुशल क्षेम पूछा। राजा ने कहा – हे महाराज! आपकी कृपा से हमारे राज्य में सुख शांति व्याप्त है।
परन्तु मेरा चित्त बहुत अशांत है। हे मुनिवर! मैं इसका कारण जानना चाहता हूँ। राजा की बात सुनकर पर्वत मुनि ने ध्यान मग्न अवस्था में अपनी आंखे बंद किया और भूतकाल में विचरण करने लगे। कुछ समय पश्चात आंखे खोलते हुए बोले – हे राजन! मैंने तुम्हारे पिता के सारे कुकृत्यों को ज्ञात कर लिया है।
तुम्हारे पिता की पूर्व जन्म में दो पत्नियां थी। एक बार काम के वशीभूत होने पर उन्होंने एक पत्नी को रति दिया था परन्तु शौतन के कहने पर अपनी दूसरी पत्नी को ऋतु दान नहीं दिया था। उसी पाप कर्म के कारण तुम्हारे पिता को नरक गामी होना पड़ा।
तब राजा बैखानस ने कहा – हे मुनिश्रेष्ठ! इस पाप के निस्तारण का उपाय बताइये। पर्वत मुनि बोले – हे राजन! आप मार्गशीष एकादशी उपवास और व्रत करे फिर उससे संचित पुण्य को अपने पिता के लिए संकल्पित कर दे। उस पुण्य के प्रभाव से आपके पिता के पापो का क्षय होकर उन्हें नरक से मुक्ति प्राप्त होगी।
मुनि के वचन को शिरोधार्य करके राजा अपने महल में आया तथा मुनि की आज्ञानुसार राजा अपने कुटुंबियो के साथ मोक्षदा एकादशी व्रत का परायण किया फिर उससे अर्जित पुण्य अपने पिता को अर्पित कर दिया। उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति प्राप्त हो गयी तथा स्वर्गारोहण करते हुए राजा के पिता अपने पुत्र की कल्याण की कामना करते हुए आशीर्वाद प्रदान किया तथा स्वर्ग गमन कर गए।
जो कोई भी व्यक्ति मार्गशीष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है उसके समस्त पापो का समन हो जाता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष प्रदाता कोई दूसरा व्रत नहीं है। इस कथा का पठन पाठन और श्रवण करने से वाजयेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है। यह व्रत मोक्ष प्रदाता तथा चिंतामणि के समान कामना पूर्ति करने वाला है।
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