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Mrityunjay book Pdf
इस पुस्तक के बारे में——
रविन्द्रनाथ ठाकुर से जो गांधी का पत्र व्यवहार हुआ था। पश्चिमी साहित्य के विषय में जो कुछ सूत्र ‘यंग इंडिया’ में मिले उन्ही दिनों पढ़ गया था। गांधी रामायण की ऐतिहासिकता न मानकर उसे कवि कर्म कहते थे। कहने का अर्थ है कि मर्यादा पुरुषोत्तम के चरित का कमल जो आदिकवि के भाव लोक में खिला उसी के रस और गंध का भोग रामायण बना।
जिसमे भारतीय प्रजा के अभाव मिटते रहे है। आदिकवि के भाव लोक में अवतरित होकर श्रीरामचन्द्र लोक के राम बने और गांधी के ‘हे राम’ जो उनके कंठ से अंत समय निकले थे। इस नाटक के आरंभ के साथ गांधी और इससे संबंधित अन्य सभी पात्रो का आविर्भाव मेरे भाव लोक में हुआ है।
कवि कर्म की यही पद्धति है। गांधी और अन्य पात्रो के व्यवहार संवाद इस रचना में सीधे उन्ही से मिले है। इस कथन का विचारक संदेह कर सकते है इन पात्रो ने अब क्या कहा? उपलब्ध सामाग्री में इसकी जांच भी कर सकते है। मेरे लिए यह सब अडिग विश्वास बन गया है।
बिना जिसके यह रचना मेरे माध्यम से संभव न होती। जीवित व्यक्तियों को चरित बनाना संस्कृत नाटक पद्धति में वर्जित रहा है। इस नाटक में इस नियम का निर्वाह किया गया है। गांधी के कर्मलोक के जो जन दिवंगत हो चुके है वे ही इस नाटक के पात्र बने है। इस पुस्तक को पूरा पढ़ने के नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करे।
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