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Niti Shatakam Pdf Hindi / नीति शतक श्लोक pdf

 

 

पुस्तक का नाम  Niti Shatakam Pdf Hindi
पुस्तक के लेखक  भर्तृहरि
भाषा  हिंदी 
श्रेणी  साहित्य 
फॉर्मेट  Pdf
साइज  110
पृष्ठ  2 Mb

 

 

Niti Shatakam Pdf in Hindi Download

 

 

Niti Shatakam Pdf Hindi
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भावार्थ रत्नाकर Hindi pdf Download

 

वैराग्य शतक Pdf Download

 

 

Niti Shatakam Pdf

 

 

 

 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

सुमित्रा जी ने अपने पुत्र लक्ष्मण जी की श्री राम जी के चरणों में प्रीति जानकर उनसे मिली। श्री राम जी से मिलते समय कैकेयी जी हृदय में बहुत सकुचाई।

 

 

 

लक्ष्मण जी भी सब माताओ से मिलकर और आशीर्वाद प्राप्त कर हर्षित हुए। वह कैकेयी जी से बार-बार मिले परन्तु उनके मन का क्षोभ नहीं जाता है।

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

जानकी जी सब सासुओ से मिली और उनके चरणों से लगकर उन्हें हर्ष हुआ सासुए कुशल पूछकर आशीष दे रही है कि तुम्हारा सुहाग अचल हो।

 

 

 

सब माताए रघुनाथ जी का कमल के जैसा मुखड़ा देख रही है। नयन में प्रेम के आंसू उमड़ आते है परन्तु मंगल का समय जानकर वह आसुओ को नयन में ही रोक रखती है।

 

 

 

सोने के थाल से आरती उतारती है और बार-बार प्रभु के शरीर को देखती है। अनेक प्रकार से निछावर करती है और हृदय में परमानंद तथा हर्ष भर रही है।

 

 

 

कौशल्या जी बार-बार कृपा के समुद्र और रणधीर श्री रघुवीर जी को देख रही है। वह बार-बार हृदय में विचारती है कि इन्होने लंकापति रावण का कैसे अंत किया? मेरे यह दोनों बच्चे बहुत ही सुकुमार है और राक्षस तो बहुत भारी योद्धा और महाबली थे।

 

 

दोहा का अर्थ-

 

 

लक्ष्मण जी और सीता जी सहित प्रभु श्री राम जी को माता देख रही है। उनका मन परमानंद में मग्न है और शरीर बार-बार पुलकित हो रहा है।

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

लंकापति विभीषण, वानर राज सुग्रीव, नल, नील, जांबवंत और अंगद तथा हनुमान जी आदि सभी उत्तम स्वभाव वाले वीर वानरों ने मनुष्य के मनोहर शरीर धारण कर लिए।

 

 

 

वह सब भरत जी के सुंदर प्रेम, स्वभाव, त्याग के व्रत और नियमो की अत्यंत प्रेम से आदरपूर्वक बड़ाई कर रहे है और नगरवासियो की प्रेम, शील और विनय से पूर्ण रीति देखकर वह सब प्रभु के चरणों में उनके प्रेम की सराहना कर रहे है।

 

 

 

फिर श्री रघुनाथ जी ने सभी सखा को बुलाया और सबसे कहा कि मुनि के चरणों में लगो। यह गुरु वशिष्ठ जी हमारे कुल के पूज्य है। इनकी कृपा से ही रण में राक्षसों का अंत हुआ। फिर गुरु जी ने कहा – हे मुनि सुनिए! यह सब मेरे सखा है। यह संग्राम रूपी समुद्र में मेरे लिए जहाज के समना हुए।

 

 

 

मेरे हित के लिए इन्होने अपने प्राणो का भी होम कर दिया। यह सब मुझे भरत से भी अधिक प्रिय है। प्रभु के वचन सुनकर सब प्रेम और आनंद में मग्न हो गए। इस प्रकार उन्हें हर पल नए सुख प्राप्त हो रहे है।

 

 

 

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