आज इस पोस्ट में हम आप लोगो के लिए Osho Books Pdf Hindi लेकर आये है आप इसे नीचे दी गयी लिंक से डाउनलोड कर सकते है साथ में आप Jyotish Books Hindi Pdf पढ़ सकते है।
Osho Books Pdf Free
धम्मपदपालि
महात्मा बुद्ध की कहानियाँ
भगवान बुद्ध और उनका धम्म
बुद्ध और बौद्ध -धर्म
बुद्ध और बौद्ध साधक
ओशो महान व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। उनके तर्को के समक्ष बड़ो-बड़ो को दिन में तारे नजर आने लगते थे। आम आदमी तो अपने देश में जमीन ख़रीदे वह भी बहुत बड़ी बात है और उधर मध्य प्रदेश (mp) के कुचवाड़ा में जन्मे रजनीश (ओशो) ने अमेरिका में 64 हजार एकड़ में “रजनीश पुरम” बसा दिया। ओशो की पुण्यतिथि 19 जनवरी को आती है।
ओशो ने दुनिया भर के ज्ञानियों को समझने के लिए डेढ़ लाख किताबे पढ़ी। जो उन्हें सही लगा उसे अपनाया और जो खराब लगा उसे भुला दिया। ओशो की एक लाइब्रेरी है और उसका नाम “लाआत्सु पुस्तकालय” है।
ओशो ने अपनी मृत्यु से पुर्व यह कहा था “पुस्तकालय आम लोगों के लिए बंद कर दी जाए। इसे सिर्फ उन्हें ही दिया जाय जो शोधि हो अर्थात शोध कर रहे हो और उन्हें भी एक बार में ज्यादा से ज्यादा 3 किताबे दी जाय।”
ओशो की प्रिय किताबे मिखाइल नाइमे की “द बुक ऑफ़ मिरदाद” जिद्दू कृष्ण मूर्ति की “द फर्स्ट एन्ड लास्ट फ्रीडम” उमर खय्याम की “रुबाइयत” आदि है। इसके अतिरिक्त ओशो ने अरस्तू, नानक, कबीर, बुद्ध, महावीर सुकरात, फ्रेडरिक, दोस्तों वस्की आदि सभी को पढ़ा है।
ओशो की एक बेहद खास बात है कि उन्होंने तमाम किताबे पढ़ी जरूर लेकिन उन्होंने एक भी किताब नहीं लिखी बल्कि उन्होंने सारा ज्ञान रिकार्ड करवाया। उनकी सभी किताबे रिकॉर्डेट आडियो के आधार पर लिखी हुई है।
ओशो ने डेढ़ लाख किताबो में हिंदी की एक मात्र किताब पढ़ी और वह थी “नंदी के द्वीप”। इसे सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने लिखा है। भले ही ओशो ने मात्र एक हिंदी की किताब पढ़ी परन्तु उन्होंने इस किताब के तारीफों का पुल बांध दिया। उन्हें यह किताब इतनी अच्छी लगी कि इसे टालस्टाय और चेखब के उपन्यासों से भी बेहतर बता दिया।
Vigyan Bhairav Tantra Hindi Pdf विज्ञानं भैरव तंत्र Pdf
भगवान शिव ने उमा को विज्ञान भैरव तंत्र के विषय में बताया था।
1- हे शक्ति – सर्वशक्तिमान सत्ता में सब कुछ विलीन हो रहा है। प्रत्येक आभास सीमित है।
2- जानने के प्रारंभ में ही अपनी सम्पूर्ण चेतना से कामना के बारे में जानो।
3- जब तक संपूर्ण अस्तित्व आत्मा में परिपूर्ण न हो जाय तब तक अपने भीतर बाहर एक साथ आत्मा की कल्पना करो।
4- जो हर जगह व्याप्त है उस सर्वज्ञ को ही सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी जानो।
5- सर्वव्यापी आत्मा और तुम्हारा रूप दोनों इस चेतना से निर्मित है। सत्य और रूप अविभक्त है।
6- आत्म चिंता का त्याग करो और हर मनुष्य की चेतना को अपनी ही चेतना समझो।
7- चेतना से ही स्वरुप प्राप्त होता है। चेतना के सिवा जगत में कुछ भी नहीं है। चेतना नहीं रहने पर सिर्फ जड़ता रह जाती है। चेतना का श्रोत चैतन्य को ढूंढो ?
8- प्रत्येक की मार्ग दर्शक सिर्फ चेतना ही है। अन्य कुछ भी नहीं।
9- चेतना नहीं रहने पर कोई भी रूप रिक्त दीवार के अलावा कुछ भी नहीं है। चेतना से ही रिक्त स्थान भरा हुआ है।
10- इस रिक्त ब्रह्माण्ड में तुम्हारा मन आदि अनंत रूप से कौतुक करता है अतः हे लीलामयी आप स्वतः ही लीला करो।
11- सब कुछ त्यागकर सिर्फ ‘तुम’ बन जाओ, जहां हे प्रिये – अस्तित्व और अज्ञान, ज्ञान और अस्तित्व के लिए कोई स्थान ही न रहे।
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