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Padarth Vigyan Book Pdf
इस पुस्तक के बारे में——
अहा हा धर्म। धर्म कितनी सुन्दर वस्तु है यह बात भले ही आज का जगत भूल गया हो पर यह कैसे भूल सकता है कि जीवन भी कोई चीज़ है। जीवन का सार सुख एवं शान्ति है। इसका कारण वास्तव मे यही है कि सुख एवं शान्ति ही जीवन का स्वभाव है। जिस प्रकार कि जलका स्वभाव शीतल होता है।
भले ही अग्नि के सयोग के कारण वह गरम हो गया हो परन्तु उसका स्वभाव ‘फिर भी शीतल ही रहता है’। यह बात इस प्रकार जानी जाती है कि यदि अग्नि को हटा दिया जाये तो वह शीतल ही होने का प्रयत्न करता है। उष्ण रहना नही चाहता। शीतलता की ओर झुकने का यह उसका स्वतन्त्र प्रयत्न ही उसके शीतल स्वभाव को दर्शाता है।
इसी प्रकार जीवन भले ही धन, कुटुम्ब आदि के सयोग को प्राप्त होकर वर्तमान मे दुखी व चिन्तित हो रहा हो परन्तु उसका अन्तरंग प्रयत्न सुखी व शान्त होने का ही रहता है। जीवन का यह स्वतंत्र प्रयत्न ही दर्शाता है कि उसका स्वभाव दुःख व चिन्ता नही बल्कि सुख व शान्ति है।
जीवन के इस स्वभाव का नाम ही धर्म है। ऐसा जानकर भी कौन धर्म से विमुख होगा। सुख व शान्ति का सम्बन्ध जीवन से है। उस जीवन के दो रूप है। क बाह्य और दूसरा अन्तरंग। बाह्य रूप शरीर है और अंतरंग रूप अन्त करण या मन इसीलिए सुख भी दो प्रकार का है शारीरिक व मानसिक।
सुख के साधन भी दो प्रकार के है। शारीरिक व मानसिक। व्यापार व कार्य तथा कर्तव्य अकर्तव्य भी दो प्रकार के हैं शारीरिक व मानसिक। स्वभाव या धर्म भी दो प्रकार के हैं शारीरिक व मानसिक। शरीर बाहर मे दिखाई देता है और इसके सुख को, सुख के साधन को तथा तत्सम्बन्धी व्यापार व कार्यों को हम जानते है। इस पुस्तक को पूरा पढ़ने के नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करे।
पुस्तक का नाम | पदार्थ विज्ञान बुक Pdf |
पुस्तक के लेखक | जिनेन्द्र वर्णि |
पेज | 278 |
साइज | 11.4 Mb |
भाषा | हिंदी |
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