पंचतंत्र की कहानियां | 5 + Panchtantra ki Kahani in Hindi pdf

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Panchtantra ki Kahani in Hindi pdf

 

 

 

 

 

 

 

 

हनुमान अंक Pdf Download

 

 

 

 

 

एक भिखारी था उसका नाम गेंदलाल था। उसके आगे पीछे रोने वाला कोई भी नहीं था। उसे कभी भी एक कटोरे से अधिक भिक्षा नहीं मिलती थी। कहने का मतलब यह कि गेंदालाल दिन-रात भिक्षा मांगता तब भी उसे एक कटोरे से अधिक भिक्षा नहीं मिलती थी।

 

 

 

लेकिन आज गेंदालाल बहुत खुश था कारण भी था। उसके खुश होने के लिए आज किस्मत उसके ऊपर मेहरबान थी। थोड़े से प्रयास में ही गेंदालाल को पांच-सात किलो आटा मिल गया था। वह अपनी झोपडी में आकर उस आटे को एक मटके में भर दिया।

 

 

 

फिर जमीन पर बिस्तर लगाकर लेट गया। आटे से भरा हुआ मटका उसने अपनी पांव की तरफ रखा था। अब गेंदलाल की इच्छा हिलोरे मारने लगी। वह सोचने लगा कल फिर भिक्षा में पांच किलो आटा मिल जाए तब मैं अपने उपयोग के लिए आटा रखकर बाकी आटा बाजार में बेच दूंगा।

 

 

 

उससे मिले हुए पैसे से मैं कुछ मछली खरीद लूंगा उन्हें ऊँची कीमत पर बेच दूंगा उससे जो पैसा मिलेगा मैं दो बकरी खरीदकर व्यापार करूँगा। हमारे पास कई बकरियां हो जाएँगी तब उन्हें अच्छा फायदा लेकर बेच दूंगा। उससे मिले पैसे से मैं एक गाय और एक घोडा खरीद लूंगा।

 

 

 

गाय का दूध बेचूंगा और लोगो को घोड़े की सवारी कराऊंगा उससे जो आमदनी होगी तब मैं बहुत सारे स्वर्ण के आभूषण खरीद लूंगा। कुछ समय के पश्चात् अच्छी कीमत मिलने पर सभी स्वर्ण आभूषण को बेचकर अपने लिए एक सुंदर सा घर बनवाऊंगा।

 

 

 

गाय के दूध का और घोड़े का व्यापार चलता ही रहेगा। हमारे पास अपना घर और खूब पैसा हो जायेगा। हमे धनवान देखकर कोई भी अपनी कन्या का ब्याह हमारे साथ कर देगा। कालांतर में हमारे पास एक छोटा बालक होगा जो घुटने के चलते हुए खड़ा होने की कोशिश करेगा लेकिन गिर जायेगा।

 

 

 

मैं चारपाई पे लेटा हुआ सब कुछ देखूंगा। बालक के गिरने पर स्वाभाविक रूप से मुझे क्रोध आएगा तब मैं चारपाई से उठते हुए अपनी औरत से कहूंगा क्या एक बालक को भी नहीं संभाल सकती हो? उठने के उपक्रम में गेंदालाल का पैर जोर से मटके में लगा मटका टूट गया सारा आटा जमीन पर बिखर गया।

 

 

 

जब गेंदालाल का हकीकत से सामना हुआ तो उसकी सारी इच्छाएं ही गायब हो गयी सपना देखना ठीक है लेकिन अपनी सामर्थ्य को भी याद रखना चाहिए।

 

 

 

परख Hindi Kahani

 

 

 

दरशू हलवाई की दुकान शहर में सबसे बढ़िया मिष्ठान्न की दुकान थी। उसकी दुकान पर बड़े-बड़े अफसर, अध्यापक, वकील और सामान्य जनता भी आती थी।

 

 

 

 

दरशू की दुकान पर मिष्ठान्न का उचित मूल्य और अच्छा व्यवहार देखकर ही उसके यहां ग्राहकों की लम्बी कतार लगी रहती थी। दरशू की माली हालत अच्छी थी लेकिन फिर भी दरशू को खाली समय में चिंता आकर रस्सियों से बांध देती थी। उसका कारण था।

 

 

 

 

कारण यह था कि दरशू के चार पुत्र थे जो पढ़ने लिखने में फिसड्डी होते हुए भी कामचोर थे एकदम आलसी।  कोई भी लड़का दरशू के कार्य में हाथ नहीं बंटाता था। इसलिए दरशू परेशान रहता था।

 

 

 

 

दशहरा का मेला नजदीक था और उसके बाद दीपावली आने वाली थी क्योंकि इन दो त्यौहारों पर सभी दुकान वालो की अच्छी खासी आमदनी बढ़ जाती थी जिसका सभी दुकानदारो के साथ ही दरशू को भी बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता था।

 

 

 

 

दरशू के चारो लड़के निठल्ले बैठे रहते थे और आपस में किसी भी बात को लेकर उलझ जाते थे। इतना उलझ जाते थे कि आपस में हाथा-पाई कर लेते थे। अक्सर उस समय जब दरशू अपनी दुकान बंद करने के बाद घर आता था।

 

 

 

 

तब उन चारो के व्यवहार को देखकर दरशू परेशान हो जाता था और चाहते हुए भी उन सभी को कोई भी काम करने के लिए नहीं कहता था क्योंकि उसे डर था कि इनके व्यवहार से उसका पुश्तैनी धंधा ठप हो जाएगा तब उसे ‘रोडपती’ बनने से कोई नहीं रोक सकता था। लेकिन उन चारो बच्चो को सुधारना भी आवश्यक था।

 

 

 

 

गर्मी का महीना था। एक दिन दरशू दुकान बंद करके घर की तरफ चला जा रहा था। सोच रहा था कि भोजन करने के बाद आराम से नींद की गोद में सो जाएगा।

 

 

 

 

घर पहुंचने के बाद ही उसने पानी के लिए अपनी सहचरी को हांक लगाई, “क्या हमे पानी भी मिलेगा या नहीं ?”

 

 

 

 

तभी उसकी सहचरी ‘इमरती देवी’ ‘जैसा नाम वैसा ही काम’ था। उसके मन में अपने पति और बच्चो के लिए बहुत मिठास थी। लेकिन ठीक ‘इमरती’ के जैसी हमेशा ही टेढ़ी रहती थी।

 

 

 

 

दरशू के आवाज देने पर उसकी सहचरी भन्नाते हुए कहा, “जब देखो चिल्लाते रहते हो मैं तुमसे और इन ‘चांडाल चौकड़ी’ से तंग आ गई हूँ।”

 

 

 

 

तब दरशू ने कहा, “अरे भागवान मैं तो सुबह का गया रात को ही वापस घर आता हूँ। अगर तुम हमे एक गिलास पानी देने में ‘तंग’ हो जाती हो तब आज से पानी भी ‘दरशू’ नहीं मांगेगा और रही बात ‘चांडाल चौकड़ी’ की तो इन्हे संभालने की जिम्मेदारी सिर्फ हमारी नहीं है। सारा दिन तुम तो इन चौकड़ी के साथ रहती हो। तुम इनमे से किसी को भी समझा नहीं सकती हो कि ‘जिस व्यापार’ से तुम सभी की उदर पूर्ति के साथ ही अन्य जरूरते भी पूरी होती है। इनमे से कोई भी उसमे हाथ नहीं बंटा सकता है क्या ?”

 

 

 

 

दरशू की इतनी बात सुनते ही इमरती को अपनी गलती का आभास हो गया था। वह उल्टे पांव भागी और तुरंत ही एक गिलास ठंडा पानी लेकर दरशू के पास गई इस उद्देश्य के साथ कि पानी पीकर दरशू की झुंझलाहट थोड़ा कम हो जाएगी और ठीक वैसा ही हुआ।

 

 

 

 

अब दरशू का दिमांग थोड़ा ठंडा हो गया था। दरशू ने अपनी सहचरी से कहा, “कि इन चारो निठल्लो को क्यों समझाती हो हमेशा झगड़ने से कुछ भी कार्य नहीं होने वाला है। यह हमारी दुकान तीन पश्तो से चली आ रही है। अगर हम भी तुम लोगो की तरह हमेशा ही झगड़ा करते रहते तो कब के ही ‘रोडपती’ बन गए होते ? अरे यह तो अच्छा होता कि हम लोग झगड़ा करके ही ‘करोडपती’ बन जाते। अरे भागवान झड़गा करके कोई करोडपती नहीं ‘रोडपती’ ही बन पाता है।”

 

 

 

दरशू की बात को सुनकर इमरती के होश ठिकाने आ चुके थे। उधर दरशू को रात में नींद नहीं आ रही थी। वह सोच रहा था कि उसके चारो लड़के किस तरह जिंदगी की राह में दौड़ेंगे ?

 

 

 

 

सुबह उठकर दरशू अपनी दुकान पर चला गया। दोपहर हो गई थी। वह अपने चारो लड़को के बिषय में ही सोच रहा था। दरशू के दिमाग में एक विचार जन्म ले चुका था।

 

 

 

 

वह रात में ही घर आया और अपने चारो बच्चो को बुलाकर कहने लगा, “बच्चो कल तुम लोगो को अलग अलग दुकान लगाना है क्योंकि कल दशहरा का मेला है। तुम लोग तो पढ़ते-लिखते नहीं हो तो कम से कम कुछ काम-धंधा ही करो ?”

 

 

 

 

दशहरे के मेले में दरशू अपने चारो लड़को को एक-एक जगह पर सब सामान देकर धंधा करने के लिए बैठा दिया। मेला समाप्त होने पर चारो लड़के खुश थे क्योंकि सभी ने अच्छी कमाई किया था।

 

 

 

 

मेला समाप्त होने के बाद ही सभी अपने धंधे पर लग गए थे। लेकिन काफी दिन के बाद भी सफलता नहीं मिल रही थी। तब दरशू ने एक उपाय अपने बच्चो को बताया।

 

 

 

 

अब दरशू के चारो बच्चे दो-दो की संख्या में मिलकर अपना धंधा करने लगे। अब उनके धंधे में पहले से अधिक सुधार आ गया था।

 

 

 

 

एक दिन चारो लड़के दरशू से कहने लगे, “पिताजी, अगर हम एक साथ रहकर अपने धंधे को आगे बढ़ाए तो कैसा रहेगा ?”

 

 

 

 

दरशू तो जैसे इसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था। दरशू तपाक से बोला, “शुभ कार्य में विलम्ब नहीं होने देना चाहिए। तुम लोग आज ही एक साथ अपनी पुश्तैनी दुकान को संभालो।”

 

 

 

 

दरशू के सभी बच्चो ने मिलकर अपनी पुश्तैनी दुकान को और अच्छे ढंग से आगे बढ़ाने का कार्य संभाल लिया था। अब दरशू बहुत ही खुश था।

 

 

 

 

उसके मुंह से निकला ‘अंत भला तो सब भला’। दरशू अपने चारो बच्चो को परख चुका था। नतीजा उसके सामने था। सभी मिलकर अपने व्यापार को ढंग से आगे ले जा रहे थे।

 

 

 

समय का सदुपयोग Hindi Stories Pdf

 

 

 

राधा और किशन नाम के एक दंपति थे। उनके दो बच्चे थे मुंशी और मुन्नी। दोनों स्कूल में पढ़ने जाते थे। मुंशी बहुत ही लापरवाह किस्म का लड़का था। वह अपने प्रत्येक कार्य को दूसरे दिन पर टाल देता था। जबकि दूसरा दिन कभी आता ही नहीं था।

 

 

 

 

मुन्नी ठीक मुंशी के विपरीत थी। वह अपने हर कार्य को समय पर ही पूर्ण करती थी। मुन्नी छोटी थी लेकिन उसे समय का महत्व पता था क्योंकि जो समय एक बार चला जाता है वह फिर कभी आता है।

 

 

 

 

मुंशी हमेशा खेलने में ही व्यस्त रहता था। लेकिन मिन्नी अपने विषय को हरदम याद करती रहती थी। धीरे-धीरे परीक्षा का समय नजदीक आ रहा था। मुन्नी अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती थी लेकिन मुंशी हमेशा खेल में ही मस्त रहता था।

 

 

 

 

राधा किशन दोनों ही मुंशी को पढ़ने के लिए कहते थे। तब मुंशी का जवाब होता था अभी तो काफी समय है परीक्षा में हम अपना पाठ याद कर लेंगे।

 

 

 

 

एक दिन मुंशी खेलने जा रहा था। वह अपने साथ ही मुन्नी को भी खेलने के लिए कहा। लेकिन मुन्नी समझदार थी। उसे मालूम था कि दो दिन बाद ही परीक्षा होने वाली है।

 

 

 

 

मुन्नी खेलने जाने में असमर्थ थी। उसने मुंशी को भी समझाया कि दो दिन बाद ही परीक्षा होने वाली है। लेकिन मुंशी भला कहा सुनने वाला था। वह मटकते हुए खेलने चला गया।

 

 

 

 

कुछ समय बाद ही मौसम खराब होने लगा था। मुन्नी ने मुंशी को बुलाने के लिए आवाज लगाई। लेकिन मुंशी तो खेल में इतना मस्त था कि उसे पता ही नहीं लगा कि मौसम खराब हो चुका है।

 

 

 

 

कुछ ही देर में आंधी के साथ ही बरसात शुरू हो गई थी। मुंशी भागते हुए घर आया लेकिन भीग चुका था। दूसरे दिन ही परीक्षा होनी थी।

 

 

 

 

मुंशी अपने माता पिता के सामने रोने लगा कि अब परीक्षा में फेल हो जाऊंगा। तभी मुन्नी उसे समझाते हुए बोली, अब रोने से काम नहीं बनने वाला है चलो सभी मुख्य प्रश्नो को मैं तुम्हे समझाती हूँ।”

 

 

 

 

मुन्नी के समझाने के प्रयास से मुंशी किसी तरह पास हो गया। उसके बाद उसने भी कसम खा लिया कि वह भी सदा ही समय का उपयोग करेगा।

 

 

 

 

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 Panchtantra ki Kahani in Hindi pdf

 

 

 

Pdf Book Name Panchtantra ki Kahani in Hindi pdf
लेखक विष्णु शर्मा
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 294
Pdf साइज़ 13 MB

 

 

 

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Panchtantra ki Kahani in Hindi pdf

 

 

 

 

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