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Patanjali Yoga Book in Hindi Pdf Download


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सिर्फ पढ़ने के लिए
उस माया के तिरोहित होते ही नारद जी पूर्ववत शुद्ध बुद्धि से युक्त हो गए। उन्हें पूर्ववत ज्ञान प्राप्त हो गया और उनकी सारी व्याकुलता जाती रही। इससे उनके मन में बड़ा विस्मय हुआ। वे अधिकाधिक पश्चाताप करते हुए बारंबार अपनी निंदा करने लगे।
उस समय उन्होंने ज्ञानी को भी मोह में डालने वाली भगवान शंभु की माया की सराहना की। तदनन्तर यह जानकर कि माया के कारण ही मैं भ्रम में पड़ गया था। यह सब कुछ मेरा माया जनित भ्रम ही था। वैष्णव शिरोमणि नारद जी भगवान विष्णु के चरण में गिर पड़े।
भगवान श्रीहरि ने उन्हें उठाकर खड़ा कर दिया। उस समय अपनी दुर्बुद्धि नष्ट हो जाने के कारण वे यों बोले नाथ! माया से मोहित होने के कारण मेरी बुद्धि बिगड़ गयी थी इसलिए मैंने आपके प्रति बहुत दुर्वचन कहे है। आपको शाप तक दे डाला है।
हाय! मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। अब मैं निश्चय ही नरक में पडूंगा। हरे! मैं आपका दास हूँ। बताइये, मैं क्या उपाय कौन सा प्रायश्चित करूँ जिससे मेरा पाप समूह नष्ट हो जाय और मुझे नरक में न गिरना पड़े। ऐसा कहकर शुद्ध बुद्धि वाले मुनि शिरोमणि नारद जी पुनः भक्तिभाव से भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े।
उस समय उन्हें बड़ा पश्चाताप हो रहा था। तब श्री विष्णु ने उन्हें उठाकर मधुर वाणी में कहा – भगवान विष्णु बोले – तात! खेद न करो। तुम मेरे श्रेष्ठ भक्त हो इसमें संशय नहीं है। मैं तुम्हे एक बात बताता हूँ सुनो उससे निश्चय ही तुम्हारा परम हित होगा तुम्हे नरक में नहीं जाना पड़ेगा।
भगवान शंकर तुम्हारा कल्याण करेंगे। तुमने मद से मोहित होकर जो भगवान शिव की बात नहीं मानी थी उसकी अवहेलना कर दी थी उसी अपराध का भगवान शिव ने तुम्हे ऐसा फल दिया है क्योंकि वे ही कर्मफल के दाता है। तुम अपने मन में दृढ निश्चय कर लो कि भगवान शंकर की इच्छा से ही यह सब कुछ हुआ है।
सबके स्वामी परमेश्वर शंकर की गर्व को दूर करने वाले है। वे ही परब्रह्म परमात्मा है। उन्ही का सच्चिदानंद स्वरुप से बोध होता है। वे निर्गुण और निर्विकार है। सत्व, रज, तम इन तीनो गुणों से परे है। वे ही अपनी माया को लेकर ब्रह्मा विष्णु और महेश इन तीनो रूपों में प्रकट होते है।
सगुण और निर्गुण भी वे ही है। निर्गुण अवस्था में उन्ही का नाम शिव है। वे ही परमात्मा, परब्रह्म, अनंत, महेश्वर, महादेव और अविनाशी आदि नामो से कहे जाते है। उन्ही की सेवा से ब्रह्मा जी जगत में स्रष्टा हुए है और मैं तीनो लोको का पालन करता हूँ। वे स्वयं ही रूद्र रूप में हमेशा सबका संहार करते है।
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