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Patanjali Yoga Sutras Pdf In Hindi By Vivekananda
पुस्तक का नाम | Patanjali Yoga Sutras |
पुस्तक के लेखक | स्वामी विवेकानंद |
पुस्तक की भाषा | हिंदी |
फॉर्मेट | |
कुल पृष्ठ | 143 |
साइज | 1.16 |
श्रेणी | योगा |

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 फरवरी सन 1863 को कलकत्ता में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी था। वह धार्मिक विचारो की महिला थी तथा शिव जी की उपासना करने वाली धार्मिक महिला थी।
बालक नरेंद्र की बुद्धि बचपन से ही बहुत तीव्र थी और इनके मन में परमात्मा को प्राप्त करने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वह पहले ब्रह्म समाज में गए पर उनके चित्त को वहां संतोष नही हुआ। वह वेदांत और योग को पश्चिम की संस्कृति में करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे।
दैव योग से विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई और घर का सारा भार नरेंद्र पर आ पड़ा था। घर की आर्थिक दशा खराब हो गई थी। अत्यंत दरिद्रता में भी नरेंद्र बड़े अतिथि सेवी थे।
स्वामी विवेकानंद अपना जीवन अपने गुरुदेव श्री रामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। स्वयं के भोजन की चिंता किए बिना वह सतत गुरु की सेवा में संलग्न रहे।
विवेकानंद बड़े स्वप्नद्रष्टा थे। उन्होंने एक नए समाज की कल्पना किया था। ऐसा समाज जिसमे धर्म या नीति के आधार पर मनुष्य में कोई भी भेद-भाव न रहे।
अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना ही यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत को जो आधार विवेकानंद ने दिया उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूंढा जा सके।
गुरु के प्रति निष्ठा
एक बार किसी ने गुरुदेव की सेवा में घृणा दिखाई तथा नाक-भौ सिकोड़ी। उस गुरु भाई को पाठ पढ़ाते हुए और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति निष्ठा व प्रेम दर्शाते हुए उनके पास कफ आदि से भरी हुई थूकदानी उठाकर फेक देते थे। उनके इस महान व्यक्तित्व की नीव में थी। ऐसी गुरु भक्ति गुरु सेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा।
यात्राएं
25 वर्ष की अवस्था में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारत वर्ष की यात्रा किया था। सन 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्वधर्म परिषद हो रही थी।
विवेकानंद उसमे भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे थे। वहां उन्होंने अपने संबोधन में कहा – अमेरिकी भाइयो और बहनो आपने जिस सौहार्द के साथ हम लोगो का स्वागत किया है उसके प्रति आभार प्रकट करने के लिए खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है।
संसार में सन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं धन्यवाद देता हूँ। जैसे विभिन्न नदियां भिन्न-भिन्न श्रोतो से निकलकर समुद्र में मिल जाती है उसी प्रकार से हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अंत में तुझमे ही आकर मिल जाते है।
यह सभा जो अभी तक एक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा है।
विवेकानंद का योगदान तथा महत्व
उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवन काल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए वह आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो, अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई।
यदि आप भारत को जानना चाहते है तो विवेकानंद को पढ़िए उसमे आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे नकारात्मक कुछ भी नहीं। यह अनमोल वाणी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की थी। रोमा रोला ने विवेकानंद के बारे में कहा था। उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है।
वह जहां भी गए सर्वप्रथम हुए, हर कोई उनमे अपने नेता का दिग्दर्शन करता। वह ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी। वह केवल संत ही नहीं थे एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव प्रेमी भी थे।
सिर्फ पढ़ने के लिए
वह परकोटे के कंगूरो पर ऐसे शोभित हो रहे है मानो सुमेरु के शिखर पर बादल बैठे हो। ढोल, डंके आदि बज रहे है जिनकी ध्वनि से वीरो के मन में चाव उत्पन्न होता है।
अगणित नभेरी और भेरी बज रही है जिन्हे सुनकर कायरो के हृदय में दरारे पड़ जाती है। उन्होंने जाकर विशाल शरीर वाले महान योद्धा वानर और भालुओ के समूह देखे।
देखा कि रीछ वानर दौड़ रहे है। ऊँची, नीची, विकट घाटियों को कुछ भी नहीं गिनते है। पहाड़ो को पकड़कर और फोड़कर रास्ता बना लेते है। कोटि योद्धा कटकटाते और गरजते है।
इधर रावण और उधर श्री राम की दुहाई बोली जा रही है। जय-जय-जय की ध्वनि होते ही लड़ाई छिड़ गयी। राक्षस पहाड़ो के ढेर के ढेर शिखरों को फेकते है। वानर कूदकर उन्हें पकड़ लेते है और वापस उनकी ओर ही चला देते है।
छंद का अर्थ-
प्रचंड वानर और भालू पर्वतो के टुकड़े लेकर किले पर डालते है। वह झपटते है और राक्षसों के पैर पकड़कर पृथ्वी पर पटककर भाग चलते है।
बहुत ही चंचल और बड़े तेजस्वी वानर भालू बड़ी फुर्ती से उछलकर किले पर चढ़ गए और जहां-तहाँ महलो में घुसकर श्री राम जी का यशगान करने लगे।
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