प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ pdf | Premchand Ki Kahani Pdf

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नमक का दरोगा Pdf Download

 

 

 

रजनी को अपने स्कूल में ही नहीं पूरे जिला में ही प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। उसने आगे की पढ़ाई के लिए कुंवर कन्हैया सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अपना नाम लिखवाया था। जिले में प्रथम आने वाली वालिका के लिए वहां नाम लिखवाने में कोई भी परेशानी नहीं हुई।

 

 

 

 

नरेशऔर विवेक को इस बार बारहवीं की परीक्षा देना था। सुधीर की १० वी की पढाई थी और सभी लोग अपनी पढ़ाई में जी -जान से जुटे हुए थे क्यों की बोर्ड की परीक्षा थी? इसमें लापरवाही का मतलब ही था कि एक साल का बर्बाद हो जाना। रजनी तो खूब मेहनत कर रही थी क्यों की उसे भी अगले साल ही १२वी की परीक्षा देनी थी।

 

 

 

 

सुधीर के मन में पढ़ाई केसाथ ही एक कम्पनी का स्वप्न था। जिसमे कई लोगों के लिए जीविका का अवसर प्राप्त हो सके। रविवार का दिन था, सुधीर अपनी पढ़ाई कर रहा था। उसके घर के बगल से गांव के अंदर जाने के लिए रास्ता था, वहां १२से १५ साल के लड़के क्रिकेट के महान खिलाडी बनने की प्रेक्टिस कर रहे थे जो कि एक दुरूह सा कार्य था।

 

 

 

 

दुरूह इस लिए कि हर कार्य या खेल में सफल होने के लिए समर्पण की आवश्यकता ही पहली सीढ़ी होती है और यह समर्पण -आर्थिक, शैक्षिक,शारीरिक और पारिवारिक होता है। क्रिकेट के महान खिलाडी भी इसी समाज से निकलते हैं लेकिन इनमे से किसी भी लड़के के पास किसी भी प्रकार के समर्पण का सर्वथा आभाव था और इनकी पारिवारिक पृष्ठ भूमि तो एक दम निम्न स्तर की थी।

 

 

 

 

 

ऐसे मनुष्यों और ऐसे लड़कों का सिर्फ एक ही मकसद होता है दूसरे की हानि करना। चाहे वह किसी भी प्रकार की हानि हो। कालांतर में यही उदण्ड बालक बड़े होकर समाज कंटक बन जाते है। ऐसे बालको को समाज और बाजार की हर उचित अनुचित गतिबिधि का पता रहता है जो एक सामान्य बालक के लिए असम्भव होता है।

 

 

 

 

हर गांव और घर में कोई न कोई जयचंद रहता है  जो विदेशियो और विरोधियो  के लिए मार्ग प्रशस्थ करने के लिएअवश्य ही कार्य करता है। लेकिन ऐसे उदण्ड बालकों और व्यक्तियो को नहीं पता कि इतिहास ऐसे जयचंदों को याद नहीं रखता है।

 

 

 

 

गांव में एक खेल का मैदान था एक दबंग व्यक्ति ने उस पर कब्जा कर लिया था और इन उदण्ड बालकों के अभिभावकों के मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला था और आज यही सब उदण्ड बालक महान क्रिकेटर बनने के लिए प्रयासरत थे जो कि दिन में तारे तोड़ने के जैसा ही था।

 

 

 

 

अपने पढ़ाई में व्यस्त रहने वाला सुधीर भी इन उदण्ड बालकों की वजह से अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सका। थोड़ा व्यवधान उत्पन्न होने के बाद  सुधीर फिर से अपनी पढ़ाई में जुट गया क्यों की वह इन उदण्ड बालकों की भाँति लक्ष्य हीन न था।

 

 

 

 

समय अपनी गति से बढ़ता जा रहा था ,परीक्षा का समय भी आ चुका था। एक सप्ताह बाद ही बोर्ड की परीक्षा होने वाली थी। शाम को रजनी सुधीर के पास आयी तो देखा सुधीर कुछ महत्व पूर्ण प्रश्नो को हल कर रहा था। रजनी कंचन के पास चली गई और उससे ही बातें करने लगी उसे मालूम था कि नरेश और स्वयं उसके पढ़ाई का खर्च (सरोज -सेवा केंद्र) उठाया जा रहा है।

 

 

 

 

जिसके ,विंदकी और गंगा पुर के व्यवस्थापक स्वयं रघुराज सोनकर हैं। सुधीर पेपर के नोट तैयार कर चुका था तभी उसकी नजर रजनी पर गई जो उसकी माँ कंचन से बात कर रही थी। सुधीर बोला – दीदी, आप कब आई? रजनी ने कहा -जब तुम पढ़ाई कर रहे थे उसी समय मैं यहां आ गई थी।

 

 

 

 

सुधीर बोला -लेकिन हमे तो पता ही नहीं  किआप यहाँ आयी है।  रजनी बोली कि यही तो होना चाहिए -अपने लक्ष्य में इतना डूब जाओ की तुम्हें कुछ भी पता नहीं लगे ,और लक्ष्य प्राप्ति का इसके सिवाय कोई भी मार्ग नहीं है। १० वी और १२वी की  परीक्षा शुरू हो गई थी।

 

 

 

 

जो उदण्ड छात्र थे उनके लिए तो यह परीक्षा माँ -बाप की मेहनत की गाढ़ी कमाई से मनोरंजन करने का साधन मात्र थी। लेकिन जो छात्र अपने लक्ष्य पर अडिग थे। उन्होंने इस परीक्षा में स्वयं को होम कर दिया था क्यों कि उनके लिए फिर एक साल पीछे जाना गवारा नहीं था?

 

 

 

 

परीक्षा एक महीने के बाद समाप्त हो गई थी। सभी छात्र -छात्राएं अपने घर को लौट चुके थे। उन्हें अब एक महीने बाद परीक्षा फल का इंतजार था कुछ दिनों के बाद वह समय भी आ गया था। किताब की दुकानों परऔर पेपर में सभी छात्र अपना रोल नंबर ढूढ़ रहे थे लेकिन सुधीर घर पर ही बैठा था।

 

 

 

 

 

नरेश और विवेक ,दोनों ने एक पेपर खरीद लिया था। उसमें दोनों १२वी और १०वी रोल नंबर देख रहे थे। लेकिन उनलोगों को अपना रोल नंबर कहीं -नहीं दिख रहा था। अख़बार के भीतरी पन्ने पर जिले भर में प्रथम स्थान प्राप्त करने वालों की सूची थी और उसमें सिर्फ चार रोल नंबर ही थे जो-नरेश ,विवेक और १० वी में सुधीर का और एक अन्य रोल नंबर था।

 

 

 

 

 

लेकिन इन सब में प्रतिशत में सुधीर का रोल नंबर बहुत आगे था। विवेक और नरेश दोनों खुश थे क्योंकी ,इस बार भी उनका परीक्षा फल उम्मीद पर खरा ही आया था। लेकिन सबसे ज्यादा इस बात से दोनों खुश थे कि  सुधीर की बराबरी जिला स्तर पर कोई भी नहीं कर सका था।

 

 

 

 

नरेश और विवेक दोनो जल्दी से घर पहुंच कर यह बात सुधीर और रजनी को बताना चाहते थे। दोनों ने घर पहुंच कर परीक्षा फल सुधीर और रजनी को दिखा दिया। पूरे गांव के लोग रघुराज के घर आकर उन्हें बधाई देने लगे लेकिन महान क्रिकेटर बनने वाले उदण्ड लड़कों का भविष्य अंधकारमय हो गया था। उन्हें जीप चलाना था या फिर कहीं कम्पनी में नौकरी करनी थी।

 

 

 

 

 

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