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Preranadayak Hindi Kahani Pdf

सुधीर १०वी कक्षा में प्रथम आने वाला जिले का पहला विद्यार्थी था। रजनी भी १२वी प्रथम श्रेणी से पास कर चुकी थी। सुधीर का ध्यान पढ़ाई के साथ खिलौना बनाने वाली कम्पनी पर लगा हुआ था। नरेश और विवेक दोनों बी.एस सी करने की तैयारी में थे उनका उद्देश्य डा.बनना था ,और गरीब असहाय की सहयता करना था। क्यों कि ? पैसे के अभाव में कितने ही असहाय दवाओं से वंचित हो जाते थे। उन दोनों ने अपना आदर्श डा.निशा भारती को मान लिया था ,जो बिना स्वार्थ के ही गरीब -दुखियो की सेवा करती थी।
नेरश ,विवेक जैसे कई युवको को आगे बढ़ाने के लिए -सरोज सेवा केंद्र -एक मजबूत आधार स्तम्भ था। सरोज सेवा केंद्र के द्वारा प्रति वर्ष गरीब बालिकाओं और असहाय लोंगो के लिए सहायता की जाती थी। इस केंद्र की इतनी ख्याति फ़ैल चुकी थी कि कई सम्पन्न व्यक्ति गुप्त रूप से दान में लाखों रूपये देते थे ,जिससे असहाय लोंगो कि सहायता करना और भी सुलभ हो गया था। लेकिन अब रघुराज के ऊपर भी उम्र के निशान अपनी छाप छोड़ने लगे थे ,लेकिन उनके उत्साह में कोई कमी न थी। रघुराज के लड़के अभी पढ़ाई में व्यस्त थे इसलिए रघु उनसे कुछ कह नहीं सकते थे।
सुधीर तो पहले ही स्पष्ट कर चुका था कि वह अपना अलग व्यवसाय शुरू करेगा विवेक तो डा.बन कर निशा भारती के जैसा समाज सेवा करना चाहता था। नरेश और रजनी तो राजीव प्रजापति के बच्चे थे उनके ऊपर रघुराज दबाव नहीं बनाना चाहता था।
रजनी अब १२ वी प्रथम श्रेणी में पास कर चुकी थी और खिलौने बनाने के प्रयास में लग गई थी। हालांकि मिटटी खिलौने बनाने का उसका पैतृक व्यवसाय था जहाँ मिटटी के खिलौने बनाये जा सकते थे ,लेकिन मिटटी के खिलौने बहुत जल्दी से खराब हो जाते थे
रजनी ने सोचा -क्यों न बांस के खिलौने बनाकर बाजार में आजमाया जाय ? बांस से मेज तथा कुर्सी बना सकते थे ,जब कि मिटटी के साथ ऐसा नहीं था। एक दिन अपना यही बिचार सुधीर को बताने के लिए रजनी उसके घर आ गई थी। सुधीर पढ़ाई कर रहा था ,रजनी पहले कंचन के पास गई जो रसोई में थी और उन्हें भी अपने साथ किसी सहारे की आवश्यकता महसूस हो रही थी। रजनी कंचन से बोली -चाची -कब तक रसोई में खुद को व्यस्त रखोगी ?
कंचन रजनी का आसय समझते हुए बोली -बेटी क्या करूं ?विवेक और सुधीर अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं ,उन दोनों की पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न न हो इसलिए मैं अब तक चुप थी। लेकिन अब मैं तुम्हारे चाचा से इस विषय में अवश्य ही बात करूंगी। रजनी ने बात करते हुए स्वयं ही चाय बनाया और कंचन को दे कर दो कप चाय लेकर सुधीर के पास आ गई। सुधीर रजनी को देख कर बोला , क्यों दीदी ?आगे की पढ़ाई नहीं करना है। क्या ,चाय बनाने का व्यवसाय करना है ?
सुधीर की इस बात को रजनी ने लपक लिया और तपाक से बोली -चाय को तुम क्या समझते हो ?चाय में इतनी ताकत है कि आदमी दुनियां की सर्वोच्च संस्था का प्रमुख बन सकता है। रजनी का उत्तर सुन कर सुधिर एक दम अवाक् रह गया , उसे कुछ उत्तर नहीं सूझ रहा था। रजनी बोली – मैं अब आगे की पढ़ाई नहीं करूंगी ,क्यों कि हमें अपना खिलौना बनाने का व्यवसाय शुरू करना है?उसके लिए हमें अभी से तैयारी करनी होगी।
रजनी आगे बोली -हमारे देश में बांस बहुतायत से होते हैं ,उससे खिलौने के साथ ही घरेलू सामान भी बनाये जा सकते हैं। जैसे -कुर्सी ,मेज ,दरवाजे ,खिड़की का पर्दा ,इत्यादि यह हमारे पर्यावरण के लिए भी अच्छे रहेंगे और कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो जाने से सस्ते भी पड़ेंगे ,तथा इससे कई लोंगों को जीविका प्राप्त हो सकेगी। बांस के द्वारा निर्मित कोई भी वस्तु जल्दी खराब नहीं होती है जब कि मिटटी के द्वारा बनाई गई कोई भी समाग्री बहुत जल्दी खराब हो जाती है।
रजनी ने सुधीर से कहा -इस विषय पर मैं तुम्हारी राय जानना चाहती हूँ। सुधीर खुश होते हुए बोला -वह दीदी -क्या बात है ?लगता है कि ,पूरी तैयारी के साथ आप यहां आयी हैं। लेकिन आप पहले मुझे १२वी पास होने दीजिये ,तब तक आप अन्य तैयारी जारी रखें।
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