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Prithvi Nath Pandey Hindi Book Pdf In Hindi
राजवीर मध्यम वर्ग का किसान था। उसके पास कई जानवर गाय, बकरी, बैल, भैस इत्यादि थे लेकिन उसके पास हीरा नामक एक घोड़ा था। वह अपने घोड़ा हीरा का बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखता था। समय पर दाना-पानी देना तथा टहलाना वह कभी नहीं भूलता था।
राजवीर जब हीरा के ऊपर सवारी करके निकलता था तब उसे लोग देखते ही रह जाते। राजवीर हीरा की सवारी करते हुए खुद को किसी राजा से कम नहीं समझता था। सभी लोग रविर के भाग्य से ईर्ष्या करते थे। सभी दिन एक समान नहीं होता है सुबह हुई है तो शाम भी अवश्य होगी। यही प्रकृति का अटल नियम है।
सुबह देखकर जहां ख़ुशी से मन भर जाता है वही शाम होते देखकर मायूस नहीं होना चाहिए उसका भी सुबह की तरह स्वागत होना होना चाहिए लेकिन यह बात राजवीर समझ नहीं सका। समय का पहिया घूमा जिस घोड़े पर राजवीर शान के साथ निकलता था वह बीमार हो गया।
राजवीर ने बहुत दवा किया लेकिन उसका घोड़ा हीरा ठीक नहीं हो सका। राजवीर अपना घोड़ा लेकर किसी तरह से जंगल में गया और उसे वही छोड़कर चला आया। हीरा असहाय था किसी तरह से वह जंगल पार कर दूसरी तरफ मैदान में आ गया। उसे सामने एक झोपडी दिखाई पड़ी।
हीरा प्यास से विकल था। उस झोपडी के सामने निढाल होकर गिर गया। वह झोपडी करन नामक गरीब किसान की थी। करन अपनी झोपडी से बाहर निकला तो देखा एक घोड़ा उसकी झोपडी के सामने बैठा है। करन घोड़े के पास गया उसे घोड़ा बहुत बीमार दिखाई दिया वह कमजोर हो गया था।
करन अपनी झोपडी से खाने का सामान लाकर घोड़ा को खिलाया फिर अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसकी दवा किया दस पंद्रह दिन के बाद घोड़ा स्वस्थ हो गया। करन घोड़े पर बैठकर पास की बाजार में जाता और दैनिक उपयोग की वस्तु लेकर उन्हें गांव में बेच देता। धीरे-धीरे करन की माली हालत में सुधर होने लगा।
यह बात राजवीर को कई लोगो से मालूम हो गयी थी। एक दिन राजवीर करन के घर जा पहुंचा और बोला – यह मेरा घोड़ा है और इसका नाम हीरा है तुम इसे मुझे सौप दो अन्यथा मैं तुम्हे सरपंच के पास ले जाऊंगा। करन बोला – यह घोड़ा हमारे घर के सामने दीन हीन अवस्था में पड़ा था।
मैंने इसकी सेवा किया फिर दवा भी किया तब यह घोड़ा स्वस्थ हुआ है मैंने इसका नाम मोती रखा है अब मैं इसे किसी कीमत पर तुम्हे नहीं दे सकता। यह बात गांव के सरपंच तक पहुँच गयी। करन अपने घोड़े मोती के साथ सरपंच के सामने उपस्थित हुआ। सरपंच के फैसले को सुनने के लिए लोगो की भीड़ उमड़ पड़ी थी।
सरपंच ने करन और राजवीर को अपने पास बुलाया। राजवीर सरपंच के पास बहुत खुश होकर आ गया। करन उदास होकर सरपंच के पास आकर बैठ गया। सरपंच ने राजवीर से कहा – तुम अपने घोड़े को नाम से पुकारो अगर यह तुम्हारा घोड़ा होगा तब तुम्हारे पास अवश्य आएगा।
राजवीर ने ‘हीरा-हीरा’ कहकर घोड़े को पुकारा लेकिन घोड़ा हिनहिनाते हुए अपनी गर्दन हिलाने लगा तथा राजवीर के पास नहीं आया। अब सरपंच ने करन को नाम लेकर पुकारने के लिए कहा – करन ‘मोती-मोती’ कहकर पुकारने लगा। जैसे एक छोटा बालक दौड़कर अपनी माता के गोद में चला जाता है।
उसी प्रकार मोती दौड़ते हुए करन के पास पहुंचकर उसके पैरो की तरफ देखने लगा उसकी आँखों से अश्रु बह रहे थे। घोड़े की दशा देखकर करन की आँखों से भी आंसू बहने लगे। उपस्थित जन समुदाय सरपंच के फैसले से बहुत संतुष्ट था। करन मोती को लेकर अपने घर वापस आ गया।
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