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Rahasyamayi Prachin Tantra Vidya Pdf 

 

 

 

 

 

 

 

सिर्फ पढ़ने के लिए

 

 

 

अरे ! तू मेरे अन्न से ही जीवित है पर हे मूढ़! तुझे शत्रु का ही पक्ष अच्छा लगता है। अरे! बता जगत में ऐसा कौन है जिसे मैंने अपनी भुजाओ के बल से नहीं जीत लिया है।

 

 

 

 

मेरे नगर में रहकर तपस्वियों पर प्रेम करता है। मुर्ख! उन्ही से जाकर मिल जा और उन्ही को नीति बता। ऐसा कहकर रावण ने उन्हें भगा दिया पर छोटे भाई विभीषण ने बार-बार उसके चरण ही पकड़े।

 

 

 

शिव जी कहते है – संत की यही बड़ाई है कि वह बुराई करने पर भी बुराई करने वाले की भलाई ही करते है। विभीषण जी ने कहा – आप मेरे पिता के समान है मुझे भगाया तो अच्छा ही किया परन्तु हे नाथ! श्री राम भजने में ही आपका भला है।

 

 

 

42- दोहा का अर्थ-

 

 

 

जिन चरणों की पादुकाओं में भरत जी ने अपना मन लगा रखा है अहा! आज मैं उन्ही चरणों को अभी जाकर इन नयनो से देखूंगा।

 

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

इस प्रकार से प्रेम सहित विचार करते हुए वह समुद्र के इस पार जिधर श्री राम जी की सेना थी वहां आये। वानरों ने विभीषण को आते हुए देखा तो उन्होंने समझा कि शत्रु का कोई खास दूत है।

 

 

 

उन्हें पहरे पर ही रोककर दूत सुग्रीव के पास आये और उनको सब समाचार कह सुनाये। सुग्रीव ने श्री राम जी के पास जाकर कहा – हे रघुनाथ जी! सुनिए रावण का भाई आपसे मिलने आया है।

 

 

 

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