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Rakt Dhvaj Natak PDF Hindi
इस पुस्तक के बारे में——
उस समय सभी लोग खुश रखने की चेष्टा करते थे। अनेको प्रकार की बातें कहकर हंसाने की चेष्टा करते थे। एक एक हंसी पर चुंबनों की बौछार होते थे। आह! प्रेम के उस अत्याचार में कितना आनंद था। आज भी उस मधुर स्निग्ध आनंद की कल्पना करते ही हृदय उन्मत्त हो जाता है।
जिसकी कल्पना मात्र में इतना आनंद है, ऐसा मधुर उन्माद है, तो जब वह प्रत्यक्षी-भूत थी उस समय कितना आनंद रहा होगा। परन्तु नहीं, किसी वस्तु के महत्व को हम तभी जानते है जब हम उसे खो देते है। बचपन के उस आनंद को भी हम आज उसे खो कर ही जानते है।
आज हम कहते है कि बचपन! तुम्हारा वह आनंद कहां गया? क्या एक बार फिर अपने वे सुखमय दिन नहीं दिखलाओगे? कहां वे चिंताओं में लीन होकर दुखपूर्ण परिस्थितियों में पड़े हुए है। बचपन! बचपन! जरा सी तो अपनी वह झलक दिखलाओ।
दो दिन को ऐ जवानी, दे दे उधार बचपन। हां, बस दो दिन को, केवल दो दिन को। बस दो दिन के लिए वह सुखमय बचपन मिल जाता तो और किसी चीज की ख़ाहिश नहीं थी। परन्तु क्या बचपन के उन दिनों का आना संभव है? नहीं, अब तो हम उन दिनों को केवल स्वप्न ही देखा करे। इस पुस्तक को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।
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