Ramayan In Hindi Pdf / रामायण इन हिंदी Pdf

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Ramayan In Hindi Pdf Download

 

 

पुस्तक का नाम  Ramayan In Hindi Pdf
पुस्तक के लेखक  गोस्वामी तुलसीदास 
फॉर्मेट  Pdf 
भाषा  हिंदी 
साइज  91 Mb 
पृष्ठ  693 
श्रेणी  हिन्दू 

 

 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

उस खेल का मर्म किसी ने नहीं जाना न छोटे भाइयो ने और न ही माता पिता ने। वह श्याम शरीर और कोमल हथेली और चरण तल वाले बाल रूप श्री राम जी ने घुटने और हाथो से केवल मुझे पकड़ने के लिए दौड़े। हे सर्पो के शत्रु गरुण जी! तब मैं भाग चला। श्री राम जी ने मुझे पकड़ने के लिए भुजा फैलाई। मैं जैसे-जैसे आकाश में दूर उड़ता वैसे-वैसे श्री हरि की भुजा को अपने पास देखता था।

 

 

 

 

मैं ब्रह्मलोक तक गया और जब उड़ते हुए पीछे की ओर देखा तो हे तात! श्री राम जी की भुजा में और हमारे बीच केवल दो अंगुल का ही अंतर था। सातो आवरण को भेदकर जहां तक मेरी गति थी वहां तक मैं गया। पर वहां भी प्रभु की भुजा को अपने पीछे देखकर मैं व्याकुल हो गया।

 

 

 

 

मैंने भयभीत होकर आँखे मूंद लिया। फिर आँखे खोलकर देखते ही अवधपुरी में पहुँच गया। मुझे देखकर श्री राम जी हंसने लगे। उनके हँसते ही मैं तुरंत उनके मुख में चला गया। हे पक्षीराज! सुनिए, मैंने उनके पेट में बहुत से ब्रह्माण्ड के समूह देखे। वहां उन ब्रह्मांडो में अनेक विचित्र लोक थे। जिनकी रचना एक से बढ़कर एक थी।

 

 

 

 

कोटि ब्रह्मा जी और शिव जी, अगणित तारागण, सूर्य और चन्द्रमा, अगणित लोकपाल, यम और काल, अगणित विशाल पर्वत और भूमि। असंख्य समुद्र, नदी, तालाब और वन तथा और भी नाना प्रकार की शृष्टि का विस्तार देखा। देवता, मुनि, सिद्ध, नाग, मनुष्य, किन्नर तथा चारो प्रकार जड़ और चेतन जीव देखे।

 

 

 

 

जो कभी न देखा था, न सुना था और जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। वह सभी अद्भुत शृष्टि मैंने देखी। तब उसका किस प्रकार से वर्णन किया जाय। मैं एक-एक ब्रह्माण्ड में सौ-सौ वर्ष तक रहता था। इस प्रकार मैं अनेक ब्रह्माण्ड देखता हुआ फिरता था।

 

 

 

 

प्रत्येक लोक में भिन्न-भिन्न ब्रह्मा, भिन्न-भिन्न विष्णु, शिव, मनु, दिग्पाल, मनुष्य, गंधर्व, भूत, बैताल, किन्नर, राक्षस, पशु-पक्षी सर्प तथा नाना प्रकार के देवता एवं दैत्यगण थे। सभी जिव वहां दूसरे प्रकार के थे। अनेक पृथ्वी, नदी, समुद्र, तालाब, पर्वत तथा सब शृष्टि वहां दूसरी ही थी।

 

 

 

 

अनेक ब्रह्माण्ड में मैं अपना रूप देखा तथा अनेक अनुपम वस्तुए देखी। प्रत्येक भुवन में न्यारी अवधपुरी, भिन्न सरयू जी और भिन्न प्रकार के ही नर-नारी थे। हे तात! सुनिए, दशरथ जी, कौशल्या जी और भरत जी आदि भाई भी विभिन्न रूपों में थे। मैं प्रत्येक ब्रह्माण्ड में रामावतार और उनकी अपार बाल लीलाये देखता फिरता था।

 

 

 

 

हे हरि वाहन! मैंने सभी कुछ भिन्न-भिन्न और अत्यंत विचित्र देखा। मैं अनगिनत ब्रह्मांडो में फिर, पर प्रभु श्री राम जी को मैंने दूसरी तरह का नहीं देखा। सर्वत्र वही शिशुपन, वही शोभा और वही कृपालु रघुवीर। इस रूपी पवन की प्रेरणा से मैं भुवन-भुवन में देखता फिरता था।

 

 

 

 

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