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Ramcharitmanas Pdf | रामचरितमानस Pdf Hindi
पुस्तक का नाम | रामचरितमानस |
पुस्तक के लेखक | गोस्वामी तुलसीदास |
पुस्तक की भाषा | हिंदी |
श्रेणी | धार्मिक |
फॉर्मेट | |
साइज | 179 Mb |
कुल पृष्ठ | 983 |

तब मंत्री सुमंत्र ने धीरज रखते हुए कोमल वाणी से कहा – महाराज! आप पंडित और ज्ञानी है। हे देव! आप शूरवीर तथा उत्तम पुरुषो में धैर्यवान तथा श्रेष्ठ है। आपने सदा ही साधुओ के समाज की सेवा किया है।
3- जन्म-मरण, सुख-दुःख के भोग हानि-लाभ, प्रियजन का मिलन तथा विछोह, यह सब हे स्वामी! काल और कर्म के अधीन रात और दिन की तरह बरबस होते रहते है।
4- सुख में हर्षित होना और दुःख में रोना यह सब तो मूर्खो का काम है। लेकिन धीर पुरुष के लिए दोनों एक समान होते हैं। हे सबके हितकारी रक्षक! आप विवेक विचारकर धीरज रखिए और शोक का परित्याग करिये।
150- दोहा का अर्थ-
श्री राम जी का पहला निवास तमसा के तट पर हुआ, दूसरा गंगा के नदी के पास। सीता जी सहित दोनों भाई उस दिन स्नान करके जल पीकर ही रहे।
चौपाई का अर्थ-
1- निषाद राज केवट ने उन लोगो की बहुत प्रकार से ही सेवा किया। वह रात सिंगरौर (श्रृंगवेरपुर) में बितायी। दूसरे दिन सबेरा होते ही वट वृक्ष का दूध मंगाया और उससे श्री राम लक्ष्मण ने अपने सिर पर जटाओ के मुकुट बनाये।
2- तब श्री राम जी के सखा निषाद ने नाव मंगवाई। पहले प्रिया सीता जी को उसपर चढ़ाकर फिर रघुनाथ जी चढ़े और अंत में प्रभु श्री राम जी की आज्ञा पा कर लक्ष्मण जी नाव पर चढ़े।
3- मुझे व्याकुल देखकर श्री राम जी धीरज रखकर मधुर वचन बोले – हे तात! पिता जी से मेरा प्रणाम कहना और मेरी तरफ से बार-बार उनके चरण कमल पकड़ना।
4- फिर पांव पकड़कर विनती करना कि हे पिता जी! आप मेरी चिंता न कीजिए। आपकी कृपा अनुग्रह और पुण्य से वन में और मार्ग में हमारा कुशल मंगल होगा।
छंद का अर्थ-
हे पिता जी आपके अनुग्रह से मैं वन जाते हुए सब प्रकार का सुख पाउँगा। आज्ञा का भली-भांति पालन करके आपके चरणों का दर्शन करने के लिए फिर लौटकर आऊंगा।
सब माताओ के पेरो में पकड़कर उनका समाधान करके और उनसे बहुत विनती करके तुलसीदास जी कहते है – तुम वही जतन करना जिससे कोशलपति पिता जी कुशल रहे।
151- दोहा का अर्थ-
बार-बार चरण कमल को पकड़कर गुरु वशिष्ठ जी से मेरा संदेशा कहना कि वह वैसा ही उपदेश दे जिससे अवध पति पिता जी मेरा सोच न करे।
चौपाई का अर्थ-
1- हे तात! सब पुरवासियों से और सभी कुटुंबियो से निहोरा (अनुरोध) करके मेरी विनती सुनाना कि वही मनुष्य मेरा सब प्रकार से हितकारी है। जो सब प्रकार से चेष्टा करे कि महाराज सुखी रहे।
2- भरत के आने पर मेरा संदेशा कहना कि राजा का पद मिल जाने पर नीति न छोड़े। कर्म, वचन और मन से प्रजा का पालन करे और सब माताओ को समान जानकर उनकी सेवा करे।
3- और हे भाई! स्वजन और माताओ की सेवा कर हुए भाईपन को अंत तक निबाहना। हे तात! राजा (पिता जी) को उस प्रकार से रखना जिससे वह कभी और किसी की तरह भी मेरा सोच न करे।
4- लक्ष्मण जी ने कुछ कठोर वचन कह दिए थे। लेकिन श्री राम जी गरजकर (मना करते हुए) फिर मुझसे अनुरोध किया और बार-बार अपनी सौगंध देकर कहा हे तात! लक्ष्मण का लड़कपन वहां न कहना।
152- दोहा का अर्थ-
प्रणाम करके सीता जी भी कुछ कहने लगी थी, परन्तु स्नेह वश शिथिल हो गई। उनकी वाणी रुक गई, नेत्रों में जल भर आया और शरीर में रोमांच व्याप्त हो गया।
चौपाई का अर्थ-
1- उस समय श्री राम जी का रुख देखकर केवट ने उस पार जाने के लिए नाव चला दिया। इस प्रकार रघुवंश तिलक श्री राम चल दिए और मैं छाती पर बज्र रखकर खड़ा-खड़ा देखता रहा।
2- मैं अपने क्लेश को कैसे कहूं जो श्री राम जी का संदेशा लेकर जीवित ही लौट आया। ऐसा कहते हुए मंत्री की वाणी रुक गई वह चुप हो गए और वह हानि की ग्लानि और सोच के वश में हो गए।
3- अपने सारथी सुमंत्र के वचन सुनते ही राजा पृथ्वी पर गिर पड़े, उनके हृदय में भयानक जलन होने लगी, उनका मन भीषण मोह से व्याकुल हो गया, मानो मछली को (मांजा) पहली वर्षा का जाल लग गया हो।
4- सब रानियां विलाप करके रो रही है। उस महान विपत्ति का कैसे वर्णन किया जाय? उस विलाप को सुनकर दुःख भी दुखित हो गया और धीरज का भी धरिज भाग गया।
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