रामकृष्ण परमहंस बुक्स | Ramkrishna Paramhans Books in Hindi Pdf

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Ramkrishna Paramhans Books Pdf

 

 

 

 

 

 

 

 

Ramkrishna Paramhans Books in Hindi Pdf

 

 

 

 

सिद्ध पुरुष और भौतिक कार्यो का त्याग – श्री कृष कहते है – अष्टांग योग नव साधक के लिए कर्म साधन कहलाता है और योग सिद्ध पुरुष के लिए समस्त भौतिक कार्य कलापो का परित्याग ही साधन कहलाता है।

 

 

 

उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – परमेश्वर से युक्त होने की विधि योग कही जाती है। इसकी तुलना सीढ़ी से की जाती है जिससे सर्वोच्च आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त होती है। यह सीढ़ी जीव की अधम अवस्था से प्रारंभ होकर आध्यात्मिक जीवन के पूर्ण आत्म साक्षात्कार तक जाती है जहां तक अष्टांग योग का संबंध है। विभिन्न यम, नियम तथा आसन (जो प्रायः शारीरिक मुद्राए ही है) के द्वारा ध्यान में प्रविष्ट होने के लिए आरम्भिक प्रयासों को सकाम कर्म माना जाता है।

 

 

 

विभिन्न चढ़ाओ के अनुसार इस सीढ़ी के विभिन्न भाग भिन्न-भिन्न नमो से जाने जाते है। किन्तु कुल मिलाकर यह पूरी सीढ़ी योग कहलाती है। इसे तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है – ज्ञान योग, ध्यान योग तथा भक्तियोग। सीढ़ी के प्रारंभिक भाग को योगारुरुक्षु अवस्था और अंतिम भाग को योगारूढ़ कहा जाता है।

 

 

 

ऐसे कर्मो से पूर्ण मानसिक संतुलन प्राप्त होता है जिससे इन्द्रिया वश में रहती है। जब मनुष्य पूर्णध्यान में सिद्धहस्त हो जाता है या ध्यान में पूर्णता प्राप्त कर लेता है तो उसे विचलित करने वाले समस्त मानसिक कार्य बंद हुए माने जाते है। लेकिन कृष्ण भावना भावित व्यक्ति तो प्रारंभ से ही ध्यानावस्थित रहता है क्योंकि वह निरंतर ही कृष्ण के चिंतन में लगा रहता है। इस प्रकार कृष्ण की सेवा में सतत व्यस्त रहने के कारण उसके सारे भौतिक कार्य कलाप बंद हुए माने जाते है।

 

 

 

 

4- योगारूढ़ स्थिति – श्री कृष्ण कहते है – जब कोई पुरुष समस्त भौतिक इच्छाओ को त्यागते हुए न तो इन्द्रिय तृप्ति के लिए कार्य करता है न तो वह सकाम कर्मो में प्रवृत्त होता है तो वह योगारूढ़ कहलाता है।

 

 

 

उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – जब मनुष्य भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में लगा रहता है तो वह अपने आप में ही सदा प्रसन्न रहता है। इस तरह से वह इन्द्रिय तृप्ति में या सकाम कर्म में प्रवृत्त नहीं होता है। ऐसी अनभूति जिसे प्राप्त नहीं है उसे चाहिए कि वह भौतिक इच्छाओ से बचने का सार्थक प्रयास करे।

 

 

 

कर्म किए बिना किसी से रहना संभव नहीं होता है। अर्थात कर्म करना ही पड़ता है। कृष्ण भावनामृत में लगे बिना मनुष्य सदैव स्वार्थ में ही तत्पर रहता है। किन्तु कृष्ण भावना भावित व्यक्ति कृष्ण की प्रसन्नता के लिए ही सब कुछ करता है। अन्यथा उसे इन्द्रिय तृप्ति में लग्न ही पड़ता है। फलतः वह इन्द्रिय तृप्ति से पूरी तरह विरक्त रहता है। तभी वह योग की सीढ़ी के अंतिम पायदान पर यानी ऊपर पहुंच सकता है।

 

 

 

रामकृष्ण परमहंस बुक्स Download

 

 

 

 

 

 

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