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पुस्तक का नाम | रंगभूमि उपन्यास pdf |
भाषा | हिंदी |
साइज | 4.7 Mb |
पृष्ठ | 427 |
लेखक | प्रेमचंद |
Rangbhoomi Novel pdf
सूरदास ने इसका कुछ जवाब न दिया। दूध की कुल्हिया ली और लाठी से टटोलता हुआ घर चला। मिट्ठू जमीन पर सो रहा था। उसे फिर उठाया और दूध में रोटियाँ भिगोकर उसे अपने हाथ से खिलाने लगा। मिट्ठू नींद से गिर पड़ता था, पर कौर सामने आते ही उसका मुँह आप- ही – आप खुल जाता।
जब वह सारी रोटियाँ खा चुका, तो सूरदास ने उसे चटाई पर लिटा दिया और हाँड़ी से अपनी पँचमेल खिचड़ी निकालकर खाई। पेट न भरा तो हाँड़ी धोकर पी गया। तब फिर मिट्ठू को गोद में उठाकर बाहर आया, द्वार पर टट्टी लगाई और मंदिर की ओर चला।
यह मंदिर ठाकुरजी का था , बस्ती के दूसरे सिरे पर। ऊँची कुरसी थी। मंदिर के चारों तरफ तीन – चार गज का चौड़ा चबूतरा था। यही मुहल्ले की चौपाल थी। सारे दिन दस-पाँच आदमी यहाँ लेटे या बैठे रहते थे। एक पक्का कुआँ भी था , जिसपर जगधर नाम का एक खोमचेवाला बैठा करता था।
तेल की मिठाइयाँ, मूंगफली, रामदाने के लड्डू आदि रखता था। राहगीर आते, उससे मिठाइयाँ लेते, पानी निकालकर पीते और अपनी राह चले जाते। मंदिर के पुजारी का नाम दयागिरि था, जो इसी मंदिर के समीप एक कुटिया में रहते थे। सगुण ईश्वर के उपासक थे, भजन – कीर्तन को मुक्ति का मार्ग समझते थे और निर्वाण को ढोंग कहते थे। पुरा किताब पढ़ने के नीचे लिंक पर क्लिक करे।
Rangbhoomi Novel pdf in Hindi Download
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