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Ravan Sanhita In Hindi Pdf Download






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सिर्फ पढ़ने के लिये
शिवपुरी में पहुंचकर उसने सनातन देवता त्रिनेत्रधारी महादेव जी को देखा। सभी मुख्य-मुख्य देवता उनकी सेवा में खड़े थे। गणेश, भृंगी, वीरभद्रेश्वर और नंदीश्वर आदि उनकी सेवा में उत्तम भक्ति भाव से उपस्थित थे। उनकी अंगकान्ति करोडो सूर्यो के समान प्रकाशित हो रही थी। कंठ में नील चिन्ह शोभा पाता था।
पांच मुख और प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र थे। मस्तक पर अर्धचन्द्राकार मुकुट शोभा देता था। उन्होंने अपने वामांग भाग में गौरी देवी को बिठा रखा था जो विद्युत पुंज के समान प्रकाशित थी। गौरीपति महादेव जी की कांति कपूर के समान गौर थी। उनका सारा शरीर श्वेत भस्म से भासित था।
शरीर पर श्वेत वस्त्र शोभा पा रहे थे। इस प्रकार पराम उज्ज्वल भगवान शिव का दर्शन करके वह ब्राह्मण पत्नी चंचला बहुत प्रसन्न हुई। अत्यंत प्रीतियुक्त होकर उसने बड़ी उतावली के साथ भगवान को बारंबार प्रणाम किया। फिर हाथ जोड़कर वह बड़े प्रेम, संतोष और आनंद से युक्त हो विनीत भाव से खड़ी हो गयी।
उसके आँखों से आनन्दाश्रुओं की अविरल धारा बहने लगी और पूरे शरीर में रोमांच हो गया। उस समय भगवती पार्वती और भगवान शिव ने उसे बड़ी करुणा के साथ अपने पास बुलाया और सौम्य दृष्टि से उसकी ओर देखा। पार्वती जी ने दिव्य रूप धारिणी बिन्दुग प्रिया चंचला को प्रेम पूर्वक अपनी सखी बना लिया।
वह उस परमानंद घन ज्योतिः स्वरुप सनातन धाम में अविचल निवास पाकर दिव्य सांख्य से सम्पन्न हो अक्षय सुख का अनुभव करने लगी। सूत जी बोले – शौनक! एक दिन परमानंद में निमग्न हुई चंचला ने उमा देवी के पास जाकर प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़कर वह उनकी स्तुति करने लगी।
चंचला ने कहा – गिरिजानन्दिनी! स्कंदमाता उमे! मनुष्यो ने सदा आपका सेवन किया है। समस्त सुखो को देने वाली शंभुप्रिये! आप ब्रह्मस्वरूपिणी है। विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओ द्वारा सेव्य है। आप ही सगुणा और निर्गुणा है और आप ही सूक्ष्मा सच्चिदानन्दस्वरूपिणी आद्या प्रकृति है।
आप ही संसार की सृष्टि, संहार और पालन करने वाली है। तीनो गुणों का आश्रय भी आप ही है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर इन तीनो देवताओ का आवास स्थान और उनकी उत्तम प्रतिष्ठा करने वाली पराशक्ति आप ही है। सूत जी कहते है – शौनक! जिसे सद्गति प्राप्त हो चुकी थी।
वह चंचला इस प्रकार महेश्वर पत्नी उमा की स्तुति करके सिर झुकाये चुप हो गयी। उसके आँखों में प्रेम के आंसू उमड़ आये थे। तब करुणा से भरी हुई शंकर प्रिया भक्त वत्सला पार्वती देवी ने चंचला को संबोधित करके बड़े प्रेम से इस प्रकार कहा।
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