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Ravan Samhita Pdf
लंकाधिपति रावण असुर सम्राट होने के साथ ही महा प्रकांड विद्वान तथा ज्ञानी था तथा सभी शास्त्रों में निपुण था। मान्यता के अनुसार सौर मंडल के सम्पूर्ण ग्रह उसके इशारो का कार्य करते थे कोई भी ग्रह रावण के विरुद्ध जाने का साहस नहीं कर सकता था।
रावण के द्वारा रचनाकृत शिव तांडव स्तोत्र और शिव संहिता की रचना बहुत प्रख्यात है। रावण संहिता में वर्णित है किन उपायों से धन प्राप्ति करना संभव है इसमें गुप्त धन की प्राप्ति करने का उपाय भी बताया गया है जिससे जातक धनवान बन सकता है क्योंकि धनवान बनने की लालसा किसे नहीं नहीं होती है।
रावण संहिता में बताया गया है कि धन प्राप्ति की इच्छा करने वाले साधक को प्रातः अपने नित्य कर्मो से निवृत्त होकर किसी नदी अथवा जलाशय में जाकर स्नान करना चाहिए तथा जहां शांत वातावरण हो उसी वृक्ष के नीचे आसन पर बैठने के पश्चात रुद्राक्ष की माला हाथ में ग्रहण करके ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमः ध्वः ध्वः स्वाहा‘ मंत्र का जाप करना चाहिए।
इक्कीस (21) दिन तक लगातार मंत्र जाप करने से यदि जातक इस मंत्र को इस मंत्र को सिद्ध कर लिया तो उसके जीवन में धन प्राप्ति योग संभव हो जायेगा। धन प्राप्ति में बार-बार आने वाली रुकावटों के निवारण के लिए लगातार चालीस (40) दिनों तक ‘ॐ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं श्री श्री मम धनदेहि फट स्वाहा‘ मंत्र का जाप जातक को करना चाहिए।
ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र के नियम पूर्वक नियमित जाप करने से जातक की धन संबंधित सभी समस्याओ का समाधान हो जाता है। यह मंत्र धन की देवी महालक्ष्मी का मंत्र है तथा इस तांत्रिक उपाय से महालक्ष्मी माता प्रसन्न होती है।
रुद्राक्ष की माला से प्रतिदिन एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए। लंकाधिराज रावण को ज्योतिष विज्ञान तथा खगोल विज्ञान में पूर्ण महारथ हासिल थी उसके तंत्र मंत्र के सिद्धांतो को आज भी स्वीकार जाता है।
रावण संहिता Pdf Download


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सिर्फ पढ़ने के लिये
शिव जी कहते है अयोध्यापुरी का और अनेक प्रकार की राजनीती का वर्णन करते हुए भुशुण्डि जी ने वह सब कथा कही जो हे भवानी! मैंने तुमसे कही। सारी रामकथा सुनकर पक्षीराज गरुण जी मन में बहुत आनंदित होकर वचन कहे।
श्री रघुनाथ के सब चरित्र मैंने सुने जिससे मेरा संदेह समाप्त हो गया। हे काकशिरोमणि! आपके अनुग्रह से श्री राम जी के चरणों में मुझे प्रेम उत्पन्न हो गया। युद्ध में प्रभु का नागपाश से बंधन देखकर मुझे अत्यंत मोह उत्पन्न हो गया था कि श्री राम जी तो सच्चिदानंद है वह किस कारण व्याकुल है।
बिलकुल ही लौकिक मनुष्यो के जैसा चरित्र देखकर मेरे हृदय में भारी संदेह हो गया। मैं अब उस संदेह को अपने लिए हितकर समझता हूँ। कृपानिधान ने मुझपर बहुत ही अनुग्रह किया। जो धूप से व्याकुल होता है वही वृक्ष की छाया का सुख जानता है। हे तात! मुझे अत्यंत मोह न होता तब मैं आपसे किस प्रकार मिलता?
और कैसे यह विचित्र सुंदर हरिकथा सुनता जो आपने बहुत प्रकार से गयी है। वेद, शास्त्र और पुराणों का यही मत है सिद्ध और मुनि भी यही कहते है इसमें संदेह नहीं कि शुद्ध और सच्चे संत उसी को मिलते है जिसे श्री राम कृपा करके देखते है। श्री राम जी के कृपा से ही मुझे आपके दर्शन हुए और आपकी कृपा से ही मेरा संदेह मिट गया।
पक्षीराज गरुण जी की विनय और प्रेम युक्त वाणी सुनकर काकभुशुण्डि जी का शरीर पुलकित हो गया। उनके नयन जल से पूर्ण हो गए और वह मन में अत्यंत हर्षित हुए। हे उमा! सुंदर बुद्धि वाले, सुशिल, पवित्र कथा के प्रेमी और हरि के सेवक श्रोता के मिलने पर सज्जन गोपनीय रहस्य को भी प्रकट कर देते है।
काकभुशुण्डि जी ने फिर कहा – पक्षीराज पर उनका बहुत प्रेम था। हे नाथ! आप सब प्रकार से मेरे पूज्य है और श्री रघुनाथ जी के कृपा पात्र है। आपको न संदेह है और न मोह अथवा माया है। हे नाथ! आपने तो मुझपर दया किया है। हे पक्षीराज! मोह का तो बहाना मात्र था, श्री रघुनाथ जी ने आपको यहां भेजकर मुझे बड़ाई दी है।
हे पक्षियों के स्वामी! आपने तो अपना मोह कहा, सो हे गोसाई! यह कुछ आश्चर्य नहीं है। नारद जी, शिव जी और हे सनकादि जो आत्मतत्व के मर्मज्ञ और उसका उपदेश करने वाले श्रेष्ठ मुनि है। उनमे किस-किस को मोह ने विवेक शून्य नहीं किया? जगत में ऐसा कौन है जिसे काम ने न नचाया हो? तृष्णा ने किसको मतवाला नहीं बनाया? क्रोध ने किसको दग्ध नहीं किया?
इस संसार में ऐसा कौन ज्ञानी, तपस्वी, शूरवीर, कवि, विद्वान और गुणों का धाम है जिसकी लोभ ने मिट्टी पलीद न की हो। लक्ष्मी के मद ने किसको टेढ़ा और प्रभुता ने किसको बहरा नहीं कर दिया? ऐसा कौन है जिसे मृगनयनी के नयन न लगे हो?
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