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Rohini Vrat Katha Pdf
मान्यताओं के अनुसार सत्ताईस नक्षत्रो में रोहिणी नक्षत्र का बहुत महत्व पूर्ण स्थान है। जैन समुदाय में रोहिणी नक्षत्र को व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से आत्म विकार दूर होकर कर्म फल से मुक्ति प्राप्त होती है अतः जैन समुदाय में इस व्रत का बहुत महत्व पूर्ण स्थान है।
जैन मतावलंबियों के अनुसार धनमित्र नामक एक व्यक्ति था। उसकी वस्तुपाल नामक राजा से मित्रता थी। धनमित्र की एक कन्या थी उसका नाम दुर्गंधा था। दुर्गंधा के पिता धनमित्र को उसके विवाह की बहुत चिंता रहती थी कारण कि नाम के अनुरूप ही दुर्गंधा के शरीर से सदैव दुर्गंध थी।
धनमित्र के मित्र का एक पुत्र था। वह बहुत गरीब था तथा उसका नाम श्रीवेण था। धनमित्र ने उसे धन का प्रलोभन देकर अपनी पुत्री दुर्गंधा का उसके साथ विवाह कर दिया लेकिन दुर्गंध से व्यथित होकर श्रीवेण अपनी पत्नी को एक मास के बाद ही छोड़कर चला गया।
धनमित्र अपनी पुत्री की दशा से बहुत दुखी था। कुछ समय के उपरांत नगर में मुनिराज अमृत सेन का आगमन हुआ। धनमित्र अपनी कन्या दुर्गंधा को साथ लेकर मुनिवर की चरण वंदना किया फिर उसके भविष्य के बारे में पूछा। मुनिराज ने धनमित्र को बताया कि पूर्व जन्म के पाप के कारण ही इसके शरीर से दुर्गंध निकल रही है।
यह तुम्हारी कन्या पूर्व जन्म में एक राजा भूपाल की रानी थी। इसका नाम सिन्धुमती था। राजा भूपाल का राज्य गिरनार पर्वत के आस-पास फैला हुआ था। एक दिन राजा भूपाल अपनी रानी सिन्धुमती के साथ वन क्रीड़ा के लिए जा रहे थे। उसी समय राजा की मुलाकात एक सिद्ध मुनिराज से हुई।
राजा भूपाल ने अपनी रानी सिन्धुमती से कहा – तुम घर वापस जाओ तथा मुनिराज के लिए आहार की व्यवस्था करो। राजा की आज्ञा मानकर रानी सिन्धुमती घर वापस आ गयी पर उसके मन में क्षोभ था। उसने मुनिराज के लिए कड़वी तुंबी का आहार प्रदान कर दिया फलस्वरूप अत्यंत वेदना के साथ मुनिराज ने प्राण त्याग दिए।
यह पाप करने के पश्चात रानी सिन्धुमती के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया। राजा भूपाल ने उसके कृत्य के लिए नगर से बाहर निकाल दिया। रानी सिन्धुमती अत्यंत रौद्र भाव से दुःख भोगते हुए नरकगामी हुई। वहां पर उसे बहुत दुःख भोगना पड़ा फिर वह पशुयोनि में उत्पन्न हुई। फिर उसके पश्चात इसने तेरे घर कन्या के रूप में जन्म प्राप्त किया।
यह सब वृतांत सुनकर धनमित्र मुनिराज से बोला – हे मुनिवर! कोई व्रत या धार्मिक क्रिया बताइये जिससे इसका पातक दूर हो जाए। मुनिराज ने कहा – इस कन्या को सम्यग दर्शन सहित रोहिणी व्रत का पालन करने से इसके पातक समाप्त हो जायेंगे। दुर्गंधा ने मुनिराज के बताये गए उपाय से श्रद्धा पूर्वक रोहिणी व्रत किया तथा आयु के अंत में सन्यास ग्रहण करने पर मृत्यु के उपरांत स्वर्गवासी हुई।
प्राचीन समय में चंपापुरी में माधव नामक एक राजा था उसकी रानी का नाम लक्ष्मी था। उसके सात पुत्र तथा एक कन्या थी कन्या का नाम रोहिणी था। एक बार माधव राजा ने एक ज्ञानी से पूछा कि मेरी पुत्री का पति कौन होगा? निमित्त ज्ञानी ने उत्तर दिया – हस्तिनापुर का राजकुमार अशोक तेरी पुत्री का पति होगा।
राजा माधव ने स्वयंवर का आयोजन किया उसकी पुत्री ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डालकर उसका अपने पति रूप में वरण किया। रोहिणी के साथ राजकुमार का पाणिग्रहण सम्पन्न हुआ। एक बार राजा अशोक ने निमित्त ज्ञानी से अपने भविष्य के विषय में पूछा।
तब निमित्त ज्ञानी ने कहा – पूर्व जन्म में तू भील था। भील होते हुए तूने मुनिराज का घोर अपमान किया था। इसके परिणाम स्वरुप तुझे नरक प्राप्ति हुई फिर वहां से कई कुयोनियो में भटकता एक वणिक के घर जन्म लिया तथा तेरा शरीर और कर्म दोनों ही घृणा के योग्य थे।
एक बार तूने मुनिराज के उपदेश से रोहिणी व्रत किया परिणाम स्वरुप स्वर्ग गमन करते हुए फिर राजकुल में उत्पन्न होकर अशोक नामक राजा हुआ और रोहिणी व्रत करने के फलस्वरूप ही दुर्गंधा तेरी रोहिणी रानी हुई। कालांतर में सभी सुख भोगने के पश्चात राजा और रानी मोक्ष को प्राप्त हुए।
रोहिणी व्रत कथा Pdf Download
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