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Rudrayamala Tantra Pdf
ब्रह्माण्ड के पहले तंत्राधिपति (महाकाल भगवान शिव ) हैं। भगवान शिव को ही इस ब्रह्माण्ड का प्रथम तंत्राधिपति कहा गया है। भारत वर्ष में उनके उपासक हर जगह मिल जाते हैं।
लेकिन भगवान शिव के उपासक केवल चार स्थानों पर ही विशेष रुप से साधना रत होते हैं। भारत की पावन धरती पर कुछ ऐसे मंदिर व् तीर्थ स्थल विद्यमान और विख्यात हैं जहां साधकों की साधनायें अवश्य पूर्ण होती हैं। इन सिध्द मंदिरों ,तीर्थ स्थलों पर अपने इष्ट के जाप से ही सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। कुछ सिद्ध स्थल निम्नांकित हैं।
१- तारा पीठ कोलकाता। २- कामाख्या पीठ ,असम। ३-रजप्पा शक्ति पीठ। ४-चक्र तीर्थ स्थान।
१-तारापीठ कोलकाता –
तारा पीठ धाम एक बहुत सिद्ध पीठ है ,जो कोलकाता के वीर भूमि जिले में स्थापित है। यहाँ का एक स्थान जिसे (महाश्मशान ) कहा जाता है वह इस धाम को बहुत ही महत्व पूर्ण बना देता है। (तारा पीठ )के कारण ही वीर भूमि जिला बहुत ही विख्यात है। ऐसी मान्यता है की -तंत्र साधक जब तक -श्मशान-में हवन नहीं करता हैं ,तब तक उनकी साधना अपूर्ण रहती है। कोलकाता का (कालीघाट)तांत्रिकों का मुख्य साधना स्थल है ,यहां की गई साधना सदैव ही पूर्ण होती है।
२-कामाख्या पीठ ,असम –
भारत वर्ष का एक सुप्रसिद्ध शक्ति पीठ जिसे (कामाख्या -शक्ति पीठ )के नाम से जाना जाता है ,यह शक्ति पीठ भारत के एक राज्य -असम- के गुआहाटी नामक स्थान पर स्तिथ है। कलिका पुराण और देवी पुराण में (कामाख्या -शक्ति पीठ ) का उल्लेख मिलता है जिससे इस शक्ति पीठ की सर्वोच्चता और सार्थकता की झलक मिलती है।
३-रजप्पा शक्ति पीठ –
भारत के ५२ शक्ति पीठों में से एक शक्ति पीठ का नाम -रजप्पा शक्ति पीठ -है। इसका उल्लेख देवी पुराण में भी मिलता है यहां देवी की १० महाविद्याओ में एक -छिन्न मस्ता -देवी का वर्णन मिलता है। यहां साधना करने से साधक की हजारों कामनाएं पूर्ण होती है।
४ -चक्र तीर्थ स्थान –
यह स्थान मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। ..इस स्थान को (गढ़ कलिका देवी )का स्थान माना जाता है। यहां साधना करने वालों को साधना का फल अति शीघ्र ही मिल जाता है। श्रावण मास में यहां साधना करने का बहुत ही महत्व है।
2- किसी भी देवी -देवता के नाम का मंत्र या उच्चारण लय बद्ध तरीके से करने पर वह मंत्र स्वयं सिद्ध हो जाता है। रुद्रायमल तंत्र में शिव जी पार्वती से कहतें हैं ,हे – प्राण बल्लभे !जो वैष्णव न हो ,जो नास्तिक हो ,जो अपने गुरुजनो की सेवा नहीं करता हो ,क्रोधी ,अकारण ही क्रोध करने वाला हो ,और हमेशा ही दूसरे का अहित सोचने वाला हो ,उसे मन्त्र या नाम जप की बिधि कभी नहीं बतानी चाहिए।
क्यों कि ?ऐसा व्यक्ति या स्वयं का पुत्र भी कुमार्ग पर चलने वाला हो तो वह भी नाम जप का नहीं होता है। नाम जप या मंत्र जप के अधिकारी वही व्यक्ति हो सकते है -जो जो मन से ,वचन से ,कर्म से ,गुरु की सेवा करने वाले होते हैं।
नाम या मंत्र की सिद्धता के लिए शास्त्रोक्त विधि कठिन होती है ,इस लिए इसे कोई नहीं कर पता है। मन्त्र या नाम जप की सिध्दि के लिए सबसे आसान तरीका यही है कि -अपने इष्ट के मंत्र या नाम को संगीत की लय के साथ सदैव ही उच्चारण करते रहना चाहिए।
अपने स्वविवेक से संत और गुरु कृपा के द्वारा अपने आराध्य देव के नाम ,मंत्र ,या स्त्रोत्र को सतत जपते रहने से मनोरथ सिद्ध हो सकते हैं। कोई भी अपने इष्ट के मंत्र को सतत यानी कि हर पल -हर क्षण जप सकता है। यह एक सरल उपाय है जिससे कि आप का मंत्र सिध्द हो सकता है।
Rudrayamala Tantra in Hindi Pdf Download
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Rudrayalam tantra ,Shri Vidya shadhna