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Sakat Chauth Katha In Hindi Pdf Download
पुस्तक का नाम | Sakat Chauth Katha In Hindi Pdf |
पुस्तक के लेखक | – |
फॉर्मेट | |
साइज | 0.3 Mb |
पृष्ठ | 5 |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | व्रत कथा |
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सिर्फ पढ़ने के लिये
सबके प्रेम रस में सने हुए वचन सुनकर श्री रघुनाथ जी हृदय में हर्षित हुए। फिर प्रभु से आज्ञा लेकर सब प्रभु की सुंदर बात चीत का वर्णन करते हुए अपने घर गए। शिव जी कहते है – हे उमा! अयोध्या में रहने वाले पुरुष और स्त्री सभी कृतार्थ स्वरुप है। जहां स्वयं सच्चिदानंद घन ब्रह्म श्री रघुनाथ जी राजा है।
एक बार मुनि वशिष्ठ जी वहां आये जहां सुंदर सुख के धाम श्री राम जी थे। श्री राम जी ने उनका बहुत ही आदर सत्कार किया और उनके चरण धोकर चरणामृत लिया। मुनि ने हाथ जोड़कर कहा – हे कृपासागर श्री राम जी! मेरी कुछ विनती सुनिए। आपको मनुष्योचित चरित्रों को देखकर मेरे हृदय में अपार मोह उत्पन्न होता है।
हे भगवान! आपके महिमा की सीमा नहीं है। उसे वेद भी नहीं जानते। फिर मैं किस प्रकार कह सकता हूँ? पुरोहिती का कर्म बहुत ही नीचा है। वेद पुराण और स्मृति सभी इसकी निंदा करते है। जब मैं सूर्यवंश की पुरोहिती का काम नहीं लेता था तब ब्रह्मा जी ने मुझे कहा था – हे पुत्र! इसमें तुमको आगे चलकर बहुत लाभ होगा। स्वयं ब्रह्म परमात्मा मनुष्य का रूप धारण कर रघुकुल के भूषण राजा होंगे।
तब मैंने हृदय में विचार किया कि जिसके लिए योग, यज्ञ, व्रत और दान किए जाते है उसे मैं इसी कर्म से प्राप्त कर लूंगा तब तो इसके समान कोई दूसरा धर्म ही नहीं है।
जप, तप, नियम, योग अपने वर्णाश्रम के धर्म, श्रुतुयों से उत्पन्न, वेद विहित, बहुत से शुभ कर्म ज्ञान, दया, दम, तीर्थस्थान आदि जहां तक वेद और संतो ने धर्म कहे है। तथा हे प्रभो! अनेक तंत्र, वेद और पुराणों के पढ़ने और सुनने का सर्वोत्तम फल एक ही है और सब साधनो का भी यही एक सुंदर फल है कि आपके चरण कमल में सदा सर्वदा प्रेम हो।
मैल से धोने से क्या मैल छूटता है? जल के मथने से क्या किसी को घी प्राप्त हो सकता है? उसी प्रकार हे रघुनाथ जी! प्रेम भक्ति रूपी निर्मल जल के बिना अन्तः करण का मल कभी नहीं जाता है। वही सर्वज्ञ है, वही तत्वज्ञ और पंडित है, वही गुणों का घर और अखंड विद्वान है वही चतुर और सब सुलक्षणो से युक्त है जिसका आपके चरण कमलो में प्रेम है।
हे नाथ! हे श्री राम जी! मैं आपसे एक वर मांगता हूँ कृपा करके दीजिए। प्रभु आपके चरण कमल में मेरा जन्म-जन्मांतर भी कभी न घटे।
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