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Saket Mahakavya Pdf Download
पुस्तक का नाम | साकेत महाकाव्य Pdf |
पुस्तक के लेखक | मैथिलीशरण गुप्त |
भाषा | हिंदी |
फॉर्मेट | |
साइज | 3.6 Mb |
पृष्ठ | 477 |
श्रेणी | काव्य |
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सिर्फ पढ़ने के लिये
हे धीर बुद्धि! ऐसा विचारकर सम्पूर्ण कुतर्को और संदेहो को छोड़कर करुणा के भंडार सुंदर और सुख देने वाले श्री रघुवीर जी का भजन कीजिए।
हे पक्षीराज! हे नाथ! मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार प्रभु के प्रताप और महिमा का गान किया। मैंने कोई बात युक्ति से बढ़ाकर नहीं कही है। यह सब अपनी आँखों देखी कही है। श्री रघुनाथ जी की महिमा, नाम, रूप और गुणों की कथा सब अपार और अनंत है। श्री रघुनाथ जी स्वयं भी अनंत है।
मुनिगण अपनी बुद्धि के अनुसार श्री हरि के गुण गाते है। वेद, शेष और शिव जी को भी उनका अंत नहीं मिलता है। आपसे लेकर मच्छर पर्यन्त सभी छोटे बड़े जीव आकाश में उड़ते है किन्तु आकाश का अंत जानने में सफल नहीं हो सकते? इसी प्रकार हे तात! श्री रघुनाथ जी की महिमा भी अथाह है क्या कभी कोई उसकी थाह प्राप्त कर सकता है।
श्री राम जी सतकोटि कामदेवों के समान सुंदर शरीर है। वह अनंत कोटि दुर्गा के समान शत्रु नाशक है सतकोटि इंद्र के समान ही उनका ऐश्वर्य है। सतकोटि आकाश के समान उनमे अनंत स्थान है।
सतकोटि पवन के समान उनमे महाबल है और सतकोटि सूर्य के समान प्रकाश है। सतकोटि चन्द्रमा के समान वह शीतल और संसार के समस्त भय का नाश करने वाले है। सतकोटि काल के समान वह दुस्तर और दुरंत है। वह भगवान सतकोटि धूमकेतु के समान अत्यंत प्रबल है।
सतकोटि पाताल के समान प्रभु अथाह है। सतकोटि यमराज के समान भयानक है। अनंत कोटि तीर्थ के समान वह पवित्र करने वाले है। उनका नाम सम्पूर्ण पाप समूह का नाश करने वाला है। श्री रघुवीर कोटि हिमालय के समान अचल है। सतकोटि समुद्र के समान गहरे है। भगवान सतकोटि कामधेनु के समान सब इच्छित पदार्थो को देने वाले है।
उनमे अनंत कोटि सरस्वती के समान चतुराई है। सतकोटि ब्रह्मा के समान शृष्टि रचना की निपुणता है। वह कोटि विष्णु के समान पालन करने वाले और सतकोटि रूद्र के समान संहार करने वाले है। वह सतकोटि कुबेर के समान धनवान और कोटि माया के समान शृष्टि के भंडार है। भार उठाने में वह सतकोटि शेष के समान है। अधिक क्या श्री जगदीश्वर प्रभु श्री राम जी सभी बातो में सीमा रहित और उपमा रहित है।
श्री राम जी उपमा रहित है उनकी कोई दूसरी उपमा नहीं है। श्री राम जी के समान केवल श्री राम जी है ऐसा वेद कहते है। जैसे सतकोटि जुगुनुओं के समान कहने से सूर्य प्रसंशा को नहीं वरन अत्यंत लघुता को ही प्राप्त होता है और सूर्य की निंदा होती है। इसी प्रकार अपनी बुद्धि के विकास के अनुसार ही मुनीश्वर श्री हरि का वर्णन करते है। किन्तु भक्तो के भाव मात्र को ग्रहण करने वाले प्रभु अत्यंत ही कृपालु है। वह उस वर्णन को प्रेम सहित सुनकर सुख मानते है।
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