Sankhya Darpan Pdf In Hindi / सांख्य दर्पण Pdf

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Sankhya Darpan Pdf In Hindi Download

 

 

पुस्तक का नाम  सांख्य दर्पण Pdf
फॉर्मेट  Pdf 
भाषा  हिंदी 
साइज  4.22 Mb 
पृष्ठ  192 
श्रेणी  दार्शनिक 
पुस्तक के लेखक  अज्ञात 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

अनेक ब्रह्मांडो में भटकते हुए मानो मुझे एक सौ कल्प बीत गए। फिरता हुआ मैं अपने आश्रम में आया और कुछ काल रहकर वहां बिताया फिर जब अपने प्रभु का अवधपुरी में जन्म सुना तब प्रेम से परिपूर्ण होकर मैं हर्ष पूर्वक उठ दौड़ा। जाकर मैंने जन्म महोत्सव देखा जिस प्रकार मैं पहले वर्णन कर चुका हूँ।

 

 

 

 

श्री राम जी के उदर में मैंने बहुत से जगत देखे जो देखते ही बनते थे वर्णन नहीं किए जा सकते थे। वहां फिर मैंने सुजान माया के स्वामी कृपालु भगवान श्री राम जी को देखा।

 

 

 

 

मुझे व्याकुल देखकर कृपालु श्री रघुवीर हंस दिए। हे धीर बुद्धि गरुण जी! सुनिए, उनके हँसते ही मैं मुंह से बाहर आ गया। श्री राम फिर मेरे साथ वही लड़कपन करने लगे। मैं कोटि प्रकार से मन को समझाता था पर शांति नहीं प्राप्त होती थी।

 

 

 

 

वह बाल चरित्र देखकर और उदर के अंदर देखी हुई उस प्रभुता का स्मरण करके मैं शरीर की सुध भूल गया और हे आर्तजनों के रक्षक! ‘रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए’ पुकारता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा मुख से बात ही नहीं निकलती थी। तदनन्तर प्रभु ने मुझे प्रेम विह्वल देखकर अपनी माया का प्रभाव रोक लिया।

 

 

 

 

वह बाल चरित्र देखकर और उदर के अंदर देखी हुई उस प्रभुता का स्मरण करके मैं शरीर की सुध भूल गया और हे आर्तजनों के रक्षक! ‘रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए’ पुकारता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा मुख से बात ही नहीं निकलती थी। तदनन्तर प्रभु ने मुझे प्रेम विह्वल देखकर अपनी माया का प्रभाव रोक लिया।

 

 

 

 

हे पक्षीराज! जब जिसे दिशाभ्रम होता है तब वह कहता है कि सूर्य पश्चिम में उदय हुआ है। नौका पर चढ़ा हुआ मनुष्य जगत को चलाता हुआ देखता है और मोहवश अपने को अचल समझता है। बालक चक्राकार दौड़ते है घर आदि नहीं दौड़ते है। पर  एक दूसरे को झूठा कहते है।

 

 

 

 

 

हे गरुण जी! श्री हरि के विषय में मोह की कल्पना भी ऐसी है। भगवान तो स्वप्न में भी अज्ञान का प्रसंग नहीं है। परन्तु जो माया के वश मंदबुद्धि और भाग्यहीन है और जिनके हृदय पर अनेक प्रकार के परदे पड़े हुए है। वह मुर्ख हठ के वश होकर ही संदेह करते है और अपना अज्ञान श्री राम जी पर आरोपित करते है।

 

 

 

 

जो काम, क्रोध, मोह और लोभ में रत है और दुःख रूप घर में आसक्त है वह श्री रघुनाथ जी को कैसे जान सकते है? वह मुर्ख तो अंधकार रूपी कुए में पड़े हुए है। निर्गुण रूप अत्यंत सुलभ है परन्तु गुणातीत दिव्य सगुण रूप को कोई नहीं जानता है इसलिए उन सगुण भगवान के अनेक प्रकार के सुगम और अगम चरित्रों को सुनकर मुनि के भी मन को भ्रम हो जाता है।

 

 

 

 

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