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Sankhya Darshan Pdf Hindi
उ०- अध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक |
प्र०- अध्यात्मिक दुःख किसको कहते हैं ?
उ०- जो दुःख शरीरान्तर में उत्पन्न हो, जैसे-ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, मोह, क्लेश रोगादि।
प्र०- आधिभौतिक दुःख किस को कहते हैं ?
उ०- जो अन्य प्राणियों के संसर्ग से उत्पन्न हो, जैसे-सर्प के काटने या सिंह से मारे जाने या मनुष्यों के परस्पर युद्ध से जो दुःख उपस्थित हो, उसे आधिभौतिक कहते हैं।
प्र०- आधिदैविक दुःख किसको कहते हैं ?
उ०- नो दुःख दैवी शक्तियों अर्थात् अग्नि, वायु या जल के न्यूनाधिक्य से उपस्थित हों, उनको आधिदैविक कहते हैं।
प्र०- समय के विचार से दुःख कितने प्रकार के होते हैं ?
उ०- तीन प्रकार के अर्थात् भूत, वर्तमान, अनागत |
प्र०- क्या इन तीनों के लिये पुरुषार्थ करना चाहिये ?
उ०- केवल अनागत के लिये पुरुषार्थ करना योग्य है, क्योंकि भूत तो व्यतीत हो जाने के कारण नाश हो ही गया, और वर्तमान दूसरे क्षण में भूत हो जाता है, अतएव यह दोनों स्वयं नाश हो जाते हैं, केवल अनागत का नाश करना आवश्यकीय है।
प्र०- जो दुःख अभी उत्पन्न नहीं हुआ या जो क्षुधा अभी नहीं लगी उसका नाश किस प्रकार हो सकता है ?
उ०- “कारणाभावात् कार्याभावः” | (वैशेषिक)—अर्थ- कारण के नाश होने से कार्य का नाश हो जाता है, अतएव दुःख के कारण का नाश करना चाहिये ; क्योंकि कारण के नाश से अनागत दुःख का नाश हो जाता है। जैसाकि महर्षि पतञ्जलि ने लिखा है “हेयं दुःखमनागतम्”।
अर्थ- आगामी दुःख ‘हेयं अर्थात् त्यागने योग्य है, उसी के दूर करने का प्रयत्न करो ।
प्र०- इस सांख्य शास्त्र में किस वस्तु का वर्णन किया गया है?
उ०- ‘हेय’ अर्थात् दुःख ‘हीन’ अर्थात् दुःख निवृत्ति । ‘हेयं हेतु’ अर्थात् दुःख के उत्पन्न होने का कारण ‘हानोपाय’ अर्थात् दुःख के नाश करने का उपाय ।
प्र०- क्या दुःख अन्न और औषध इत्यादि से दूर नहीं होता ?
उ०- दुःख की अत्यन्त निवृत्ति किसी प्राकृतिक वस्तु से नहीं हो सकती, जैसा कि लिखा है—
सांख्य दर्शन Pdf Download
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