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Sant Sudha Saar PDF
संतों की जीवन-योजना से आखिरी बात है सत्संग की चाह। सामान्य व्यावहारिक विद्या की प्राप्ति के लिए भी जब उस विद्या के जानकार का सहारा लेना पडता है, तब आव्यात्मिक साधन में प्रवेश की इच्छा रखनेवाले को अनुभवी संतपुरुषों की संगति ढूंढनी ही पड़ेगी।
यह वात सहज समझ में आती है। इसीलिए शंकराचार्य ने मनुष्यत्व और मुमुक्षुत्व के बाद महापुरुष- संशय को तीसरा महद्भाग्य माना है। आत्मा स्वयं सिद्धि और अपना निजरूप ही होने के कारण हम ऐसा आगही विचार तो नहीं रख सकते कि सूर्योदय के पहले उषोदय के समान आत्मदर्शन के पहले महापुरुष संशय या स्थूल सत्संगति आवश्यक है।
ओर हम यह भी नहीं कह सकते कि सत्संग के लोभ में, ऐसे किसी वेषधारी को सत्पुरुष या सद्गुरु के स्थान पर विठा दे। लेकिन यह जरूर मानना पड़ेगा कि जहां सद्विचार के श्रवण मनन का मौका मिलेगा वहां पहुंचने की या वैसी संगति ढूढ़ने की अभिलाषा साधक में होनी चाहिए।
मैं तो कहूंगा कि सत्संगति की अभिलाषा सत्संगति से भी बढ़कर है या अधिक समीचीन भाषा में यो कह सकते है। कि सत्संगति की अभिलाषा ही सच्ची सत्संगति है। डाउनलोड करने के लिए नीचे दी गयी बटन पर क्लिक करे।
Sant Sudha Saar PDF Download
पुस्तक का नाम | संत सुधा सार Pdf |
पुस्तक के लेखक | वियोगी हरि |
भाषा | हिंदी |
साइज | 29.5 Mb |
पृष्ठ | 976 |
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