सत्यार्थ प्रकाश Pdf | Satyarth Prakash Pdf Hindi

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Satyarth Prakash Pdf Hindi

 

 

 

 

 

 

 

सत्यार्थ प्रकाश की रचना का प्रमुख उद्देश्य आर्य समाज के सिद्धांतों को आगे बढ़ाना था। इसके प्रथम संस्करण का प्रकाशन अजमेर में हुआ था। इसकी रचना ,महर्षि दयानन्द सरस्वती ने १८७५ में हिंदी भाषा में किया था। इस ग्रंथ में ,इस्लाम और इसाई मतों का खण्डन किया गया है। इस ग्रंथ के लेखन स्थल पर (सत्यार्थ प्रकाश भवन )का निर्माण किया गया है।

 

 

 

 

जिस समय में हिन्दू धर्म एवं संस्कृत को बदनाम किया जा रहा था ,उस षणयंत्र को विफल करने के लिए ही महर्षि दयानन्द ने इस का नाम सत्य के ऊपर प्रकाश डालने वाले (सत्यार्थ प्रकाश )ग्रंथ की रचना किया था।

 

 

 

सत्यार्थ प्रकाश की रचना करने वाले महर्षि दयानन्द सरस्वती है। इन्होने अपनी निडर लेखनी से उन्नीसवीं शताब्दी अपनी कालजयी रचना ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ को मूर्त रूप देकर धार्मिक जगत में एक क्रांति कर दिया। किसी भी हिंदी ग्रंथ का एक शताब्दी के भीतर देश विदेश में इतनी भाषाओ में अनुवाद नहीं किया जितना महर्षि दयानन्द सरस्वती कृत ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ का विभिन्न भाषाओ में अनुवाद किया गया।

 

 

 

महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा विरचित इस असाधारण ग्रंथ में वैचारिक क्रांति का शंखनाद है। जन साधारण तथा विचार शील दोनों प्रकार के व्यक्तियों पर इस ग्रंथ का बहुत ग्रहरा प्रभाव पड़ा है। हिंदी भाषाओ में प्रकाशित किसी अन्य साहित्य या ग्रंथ का एक शताब्दी से भी कम समय में इतना प्रचार-प्रसार नहीं हुआ जितना महर्षि दयानन्द सरस्वती की इस अनुपम कृति का अर्ध शताब्दी में ही प्रचार-प्रसार हो गया था। हिंदी भाषा के कवि समूह में इसका पद्यानुवाद भी कर दिया।

 

 

 

नित्य सार्वभौमिक सत्यता

 

 

महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने इस महान कृति में ईश्वर, जीव तथा प्रकृति इन तीनो को अनादि माना है जो कि एक अकाट्य सार्वभौमिक सत्य है। ग्रंथो में भी सृष्टि के नियमो को अनादि, सार्वभौमिक तथा नित्य माना गया है। विज्ञान के द्वारा भी प्रमाणित किया गया है कि सृष्टि के नियम LAWS OF NATURE अटल, अकाट्य तथा सार्वभौमिक होते है अतः ईश्वर के गुण, स्वभाव, कर्म भी अनादिव नित्य माने जाते है।

 

 

 

परन्तु कई ऐसे लोग होते है जो चमत्कार को ही नमस्कार करते है। लेकिन महर्षि दयानन्द सरस्वती की अनुपम कृति ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में चमत्कारों के लिए कोई भी स्थान नहीं है। इसमें बताया गया है कि नियमो का नियंता परमात्मा है और परमात्मा का नियम जो सृष्टि के लिए बनाये गए है उनका कभी विघटन तथा बदलाव नहीं होता है। वह एकदम अटल रहते है न तो एक इंच बढ़ते है न ही एक इंच घटने की संभावना रहती है अतः व्यक्तियों द्वारा चमत्कार दिखाना तथा चमत्कारिक बातें करना सिर्फ कोरा अन्धविश्वास है जिसका कोई अस्तित्व नहीं रहता है।

 

 

 

चमत्कारों वर्चस्व को चुनौती देने वाला विश्व का प्रथम ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश

 

 

 

 

सत्यार्थ प्रकाश‘ के अद्भुत प्रणेता व तत्ववेत्ता महर्षि दयानन्द सरस्वती को ऐसा कोई भी चमत्कार स्वीकार नहीं है चाहे वह बाइबल, कुरान व पुराण के उल्लिखित चमत्कार ही क्यों न हो। महर्षि दयानन्द सरस्वती के अनुसार हजरत ईसा द्वारा रोगियों को चंगा करना तथा मृतक को जीवित कर देना तथा हजरत मुहम्मद साहब द्वारा चांद को दो टुकड़ो में विभाजित करना यह सब ऐतिहासिक तथ्य नहीं है। महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा उल्लिखित किया गया है कि – कोई भी व्यक्ति चाहे हजरत मूसा हो अथवा इब्राहिम सृष्टि के नियम को तोड़ने में कोई भी सक्षम नहीं हो सकता है।

 

 

 

जिस मनीषी पुरुष ने अपने अकाट्य तर्क की तुला पर मत पंथो को तौलकर अपने तथा पराये लोगो को मत-मतान्तर को ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ की अनुपम मथानी से मथ डाला था वह कोई और नहीं मां भारती के प्रखर विचारक पुत्र महर्षि दयानन्द सरस्वती ही थे।

 

 

 

महर्षि दयानन्द सरस्वती के ‘सृष्टि के नियम को तोड़ने में कोई सक्षम नहीं’ वाले सिद्धांत का बहुत विरोध हुआ। आर्य संगठन के विद्वानों ने इस विषय पर सैकड़ो नहीं हजारो बार शास्त्रार्थ किये पर प्रत्येक बार ही उन्हें असफलता का मुंह देखना पड़ा। पंडित लेखराम नामक आर्य पंथ के सदस्य को इसी कारण अपना बलिदान तक देना पड़ा था।

 

 

 

सन 1925 में एक आर्य विचारक जिनका नाम प्रो. हासानन्द था उन्होंने ख्वाजा हसन निजामी को चमत्कार दिखाने की चुनौती दिया और बोले – मैं आपसे अधिक चमत्कार और जादूगरी दिखा सकता हूँ। उसके पश्चात ख्वाजा साहब को आगे बढ़कर चमत्कार दिखाने का साहस ही नही हो सका (इसका उल्लेख दैनिक तेज उर्दू में दिनांक 30|10|1925 में पृष्ठ संख्या 5 पर हुआ है) सत्य साईं बाबा ने भी विश्व विद्यालय के वैज्ञानिको की चुनौती स्वीकार करके कोई भी चमत्कार दिखाने में सक्षम नहीं हो सके।

 

 

 

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