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सिर्फ पढ़ने के लिए
राजिंदर बोला मैं कानपुर में नौकरी करता हूँ और कलकत्ता घूमने के लिए जा रहा हूँ। वहां कोई अच्छी सी नौकरी मिल गयी तो ठीक नहीं तो मैं फिर कानपुर लौट जाऊंगा। केतकी राजिंदर सिंह बनी हुई आभा को किसी भी सूरत में छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी सो उसने पराग से कहा कार्तिक के हैंडलूम वाली कम्पनी में चार पांच लोगो की जगह खाली है।
आप उससे कहकर राजिंदर सिंह को वही कोई कार्य दिलवा दीजिए। पराग बोले मैं कोशिस अवश्य करूँगा। पराग बोले राजिंदर बेटा यह बताओ तुम कोई कार्य जानते हो या नहीं। राजिंदर बोला आप के लड़के की उम्र का होने से मैं आपको पिताजी कहूंगा।
पराग बोले यह तो अच्छी बात है तुम क्या कार्य कर सकते हो? राजिंदर ने कहा मुझे कम्प्यूटर की सारी जानकारी है और कोई भी कार्य छोटा हो या बड़ा मैं उसे अच्छे तरीके से संभाल सकता हूँ इसी तरह से बात करते हुए सुबह हो गयी।
रेलगाड़ी सियालदह स्टेशन पर आकर रुक गयी। सबके साथ ही पराग केतकी और राजिंदर भी उतर गए और एक टैक्सी भाड़े से लेकर श्याम बाजार की तरफ चल दिए। वहां पहुंचकर उन्होंने टैक्सी वाले को भाड़ा दिया फिर अपने घर की तरफ पैदल ही जाने लगे जो वहां से थोड़ी ही दूर पर था।
घर में ताला बंद था लेकिन एक चाबी केतकी के पास थी। उन्होंने दरवाजा खोला सभी लोग घर के अंदर चले गए उस घर में पांच कमरे थे। केतकी ने सभी कमरे का निरीक्षण किया तो उन्हें हर सामान अपनी जगह पर व्यवस्थित मिला। पराग अपने कमरे में आराम करने लगे।
जबकि राजिंदर सिंह केतकी से पूछकर नाश्ता तैयार करने लगा। कुछ देर बाद तीनो लोग नाश्ता करने लगे। घर में हर सामान व्यवस्थित देखकर केतकी शंका से ग्रस्त हो गयी लेकिन पराग का ध्यान इन सब बातो पर नहीं था। पराग ने कार्तिक से फोन पर बता दिया था कि हम लोग यहां आ गए है।
यह बात रचना और प्रिया को भी मालूम हो गयी थी अतः इन दोनों में से आज कोई भी कार्तिक के घर नहीं आया। पराग और केतकी की अनुपस्थिति में प्रिया अपनी ड्यूटी से एक घंटा पहले आकर कार्तिक के लिए भोजन बनाकर चली जाती थी।
लेकिन अब थोड़ी मुश्किल पैदा हो गयी थी परन्तु उसमे से थोड़ी भी राह निकलने की संभावना दिख रही थी।उसके भीतर का संवेदन शील कलाकार अपनी भावनाओ को मूर्त रूप देने में व्यस्त हो गया।
कोमल अब घर का सारा कार्य करने में असमर्थ हो गयी थी क्योंकि उसकी उम्र व्यवधान पैदा कर रही थी। यह बात डा. निशा भारती समझ चुकी थी।
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