नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Shabar Mantra Bhag 21 Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Shabar Mantra Bhag 21 Pdf Download कर सकते हैं और यहां से Brahm Nitya Karm Pdf कर सकते हैं।

 

 

 

Shabar Mantra Bhag 21 Pdf Download

 

 

 

 

Shabar Mantra bhag 21 Pdf
Shabar Mantra Bhag 21 Pdf यहां से डाउनलोड करे।

 

 

 

Shabar Mantra Bhag 21 Pdf
Beej Mantra Book Pdf यहां से डाउनलोड करे।

 

 

 

 

 

 

 

 

Note- इस वेबसाइट पर दिये गए किसी भी पीडीएफ बुक, पीडीएफ फ़ाइल से इस वेबसाइट के मालिक का कोई संबंध नहीं है और ना ही इसे हमारे सर्वर पर अपलोड किया गया है।

 

 

 

यह मात्र पाठको की सहायता के लिये इंटरनेट पर मौजूद ओपन सोर्स से लिया गया है। अगर किसी को इस वेबसाइट पर दिये गए किसी भी Pdf Books से कोई भी परेशानी हो तो हमें newsbyabhi247@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं, हम तुरंत ही उस पोस्ट को अपनी वेबसाइट से हटा देंगे।

 

 

 

सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

उसी प्रकार प्रपंचकर्ता परमेश्वर शिव ने भी अपने में आधेय रूप से विद्यमान प्रपंच को जलाकर भस्म रूप से उसके सारतत्व को ग्रहण किया है। प्रपंच को दग्ध करके उसके भस्म को अपने शरीर में लगाया है। राख भभूत पोतने के बहाने जगत के सार को ही ग्रहण किया है।

 

 

 

 

अपने शरीर में अपने लिए रत्नस्वरूप भस्म को इस प्रकार स्थापित किया है। आकाश के सारतत्व से केश, वायु के सारतत्व से मुख अग्नि के सारतत्व से हृदय जल के सारतत्व से कटिभाग और पृथ्वी के सारतत्व से घुटने को धारण किया है। इसी तरह उनके सारे अंग विभिन्न वस्तुओ के सार रूप है।

 

 

 

 

महेश्वर ने अपने ललाट में तिलक रूप से जो त्रिपुण्ड धारण किया है वह ब्रह्मा रूद्र और विष्णु का सारतत्व है। वे इन सब वस्तुओ को जगत के अभ्युदय का हेतु मानते है। इन भगवान शिव ने प्रपंच के सार सर्वस्व को अपने वश में किया है अतः इन्हे अपने वश में करने वाला दूसरा कोई नहीं है।

 

 

 

 

जैसे समस्त मृगो का हिंसक मृग सिंह कहलाता है और उसकी हिंसा करने वाला दूसरा कोई मृग नहीं है अतएव उसे सिंह कहा गया है। शकारका का अर्थ है नित्य सुख एवं आनंद इकार का अर्थ है पुरुष और वकार का अर्थ है अमृतस्वरूपा शक्ति। इन सबका सम्मिलित रूप ही शिव कहलाता है।

 

 

 

 

अतः इस रूप में भगवान शंकर को अपना आत्मा मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए अतः पहले अपने अंगो में  भस्म मले। फिर ललाट में उत्तम त्रिपुण्ड धारण करे। पूजाकल में सजल भस्म का उपयोग होता है और द्रव्य शुद्धि के लिए निर्जल भस्म का।

 

 

 

 

गुणातीत परम शिव राजस आदि सविकार गुणों का अवरोध करते है दूर हटाते है इसलिए वे सबके गुरुरूप का आश्रय लेकर स्थित है। गुरु विश्वासी शिष्यों के तीनो गुणों को पहले दूर करके फिर उन्हें शिवतत्व का बोध कराते है इसीलिए गुरु कहलाते है।

 

 

 

 

गुरु की पूजा परमात्मा शिव की ही पूजा है। गुरु के उपयोग से बचा हुआ सारा पदार्थ आत्मशुद्धि करने वाला होता है। गुरु की आज्ञा के बिना उपयोग में लाया हुआ सब कुछ वैसा ही है जैसे चोर चोरी करके लायी हुई वस्तु का उपयोग करता है। गुरु से भी विशेष ज्ञानवान पुरुष मिल जाय तो उसे भी यत्नपूर्वक गुरु बना लेना चाहिए।

 

 

 

 

अज्ञान रूपी बंधन से छूटना ही जीवमात्र के लिए साध्य पुरुषार्थ है। अतः जो विशेष ज्ञानवान है वही जीव को उस बंधन से छुड़ा सकता है। जन्म और मरण रूप द्वंद्व को भगवान शंकर की माया ने ही अर्पित किया है। जो इन दोनों को शिव की माया को ही अर्पित कर देता है वह फिर शरीर के बंधन में नहीं पड़ता।

 

 

 

 

मित्रों यह पोस्ट Shabar Mantra Bhag 21 Pdf आपको कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जरूर बतायें और Shabar Mantra Bhag 21 Pdf की तरह की पोस्ट के लिये इस ब्लॉग को सब्सक्राइब जरूर करें और इसे शेयर भी करें।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *