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Shabar Mantra Sagar Pdf Download


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महादेव! सदाशिव! पुराणों, वेदो, नाना प्रकार शास्त्रीय सिद्धांतो और विभिन्न महर्षियो ने भी अब तक आपको पूर्ण रूप से नहीं जाना है फिर मैं कैसे जान सकता हूँ? महेश्वर! मैं जैसा हूँ वैसा ही उसी रूप में सम्पूर्ण भाव से आपका हूँ आपके आश्रित हूँ इसलिए आपसे रक्षा पाने के योग्य हूँ।
परमेश्वर! आप मुझपर प्रसन्न होइए। मुने! इस प्रकार प्रार्थना करके हाथ में लिए हुए अक्षत और पुष्प को भगवान शंकर के ऊपर चढ़ाकर उन शंभुदेव को भक्तिभाव से विधिपूर्वक साष्टांग प्रणाम करे। तदनन्तर शुद्ध बुद्धि वाला उपासक शास्त्रोक्त विधि से इष्ट देव की परिक्रमा करे।
फिर श्रद्धापूर्वक स्तुतियों द्वारा देवेश्वर शिव की स्तुति करे। इसके बाद गला बजाकर पवित्र एवं विनीत चित्त वाला साधक भगवान को प्रणाम करे। फिर आदर पूर्वक विज्ञप्ति करे और उसके बाद विसर्जन। मुनिवरो! इस प्रकार विधि पूर्वक पार्थिव पूजा बताई गयी।
वह भोग और मोक्ष देने वाली तथा भगवान शंकर के प्रति भक्ति भाव को बढ़ाने वाली है। तदनन्तर ऋषियों के पूछने पर किस कामना की पूर्ति के लिए कितने पार्थिव लिंगो की पूजा करनी चाहिए विषय का वर्णन करके सूत जी बोले – महर्षियो! पार्थिव लिंगो की पूजा कोटि-कोटि यज्ञो का फल देने वाली है।
लिंग तीन प्रकार के कहे गए है मध्यम, उत्तम और अधम। जो चार अंगुल ऊँचा और देखने में सुंदर हो तथा वेदी से युक्त हो उस लिंग को शास्त्रज्ञ महर्षियो ने उत्तम कहा है। उससे आधा मध्यम और उससे आधा अधम माना गया है। इस तरह तीन प्रकार के शिव लिंग कहे गए है जो उत्तरोत्तर श्रेष्ठ है।
क्षत्रिय, शूद्र, ब्राह्मण, वैश्य अथवा विलोम संकर कोई भी क्यों न हो वह अपने अधिकार के अनुसार वैदिक अथवा तांत्रिक मंत्र से हमेशा आदरपूर्वक शिव लिंग की पूजा करे। ब्राह्मणो! महर्षियो! अधिक कहने से क्या लाभ? शिव लिंग का पूजन करने से स्त्रियों का तथा अन्य सब लोगो का भी अधिकार है।
द्विजो के लिए वैदिक पद्धति से ही शिव लिंग की पूजा करना श्रेष्ठ है परन्तु अन्य लोगो के लिए वैदिक मार्ग से पूजा करने की सम्मति नहीं है। वेदज्ञ द्विजो को वैदिक मार्ग से ही पूजन करना चाहिए अन्य मार्ग से नहीं यह भगवान शंकर का कथन है।
दधीचि और गौतम आदि के शाप से जिनका चित्त दग्ध हो गया है उन द्विजो को वैदिक कर्म में श्रद्धा नहीं होती। जो मनुष्य वेदो तथा स्मृतियों में कहे हुए सत्कर्मो की अवहेलना करके दूसरे कर्म को करने लगता है उसका मनोरथ कभी सफल नहीं होता।
इस प्रकार विधि पूर्वक भगवान शंकर का नैवेद्यान्त पूजन करके उनकी त्रिभुवनमयी आठ मूर्तियों का भी वही पूजन करे। पृथ्वी, अग्नि, आकाश, चन्द्रमा, जल, यजमान, वायु और सूर्य ये भगवान शंकर की आठ मूर्तियां कही गयी है। इन मूर्तियों के साथ-साथ भव, उग्र, ईश्वर, पशुपति, शर्व, रूद्र, भीम और महादेव इन नामो का भी अर्चना करे।
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