Shani Chalisa Pdf Hindi | शनि चालीसा Pdf

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Shani Chalisa Pdf Hindi 

 

 

 

 

 

 

 

 

अगर मनुष्य रंक से राजा बनना चाहता है और अपना भाग्य बदलना चाहता है तो उसे शनि देव को   प्रसन्न करने का उपाय करना चाहिए। जिससे कि मनुष्य की किस्मत बदल जाये ,मनुष्य को शनिवार के दिन शुद्ध हो कर शनि मंदिर में जाकर दोनों समय शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए जिससे कि  शनि देव को प्रसन्न किया जा सके।

 

 

 

 

शनि देव अगर किसी के ऊपर प्रसन्न हो जाएँ तो उस व्यक्ति को हर प्रकार से समर्थ बना सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र में  शनि देव को न्याय का देवता कहा गया है। अदि शनि देव किसी के ऊपर प्रसन्न हो जाये तो उसकी सभी मनो कामनाएं पूरी कर देते हैं। अगर पूजा करने के लिए शनि देव का मंदिर नही है तब मनुष्य को अपने घर में ही शुद्ध होकर दोनों समय शनि चलीसा का पाठ करना चाहिए।

 

 

 

 

शनि चालीसा का पाठ करते समय पवित्रता का ध्यान अवश्य रखना चाहिए संध्या काल ५ वजने के बाद शनि चालीसा का पाठ हनुमान मंदिर में ,शनि मंदिर में या फिर पीपल के पेड़ के नीचे किया जा सकता है। पाठ करते समय सरसो के तेल का दीपक जलाने से पाठ का प्रभाव बढ़ जाता है।

 

 

 

 

ज्योतिषियों के अनुसार अच्छे कर्म करने वाला व्यक्ति भी यदि शनि चालीसा का पाठ करे तब उसके ऊपर शनि की ढैया ,शनि की साढ़े साती तथा शनि की महादशा का प्रभाव कम से कमतर हो जाता है। शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलती है ,शुभ समय आने पर मनुष्य की जिंदगी में बहुत अच्छा बदलाव आता है।

 

 

 

 

शनि चालीसा Pdf Download

 

 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

अनेक जप, यज्ञ, शम, दम, व्रत, दान, वैराग्य, विवेक, योग, विज्ञान आदि सबका फल श्री रघुनाथ जी के चरणों में प्रेम होना है इसके बिना किसी का कल्याण नहीं होता है। मैंने इस शरीर से ही श्री राम जी की भक्ति प्राप्त की है। इससे इसपर मेरी ममता अधिक है। जिससे कुछ स्वार्थ होता है उसपर सब कोई प्रेम करते है।

 

 

 

 

हे गरुण जी! वेदो में ऐसी नीति है और सज्जन भी कहते है कि अपना परम हित जानकर अत्यंत नीच से भी प्रेम करना चाहिए। रेशम कीड़े से होता है और उससे सुंदर रेशमी वस्त्र बनते है। इससे परम अपवित्र उस कीड़े को सब कोई प्राणो के समान पालते है।

 

 

 

 

जीव के लिए उसका सच्चा स्वार्थ यही है कि मन, वचन और कर्म से श्री राम जी के चरणों में प्रेम हो। वही शरीर सुंदर और पवित्र है जिस शरीर को प्राप्त करने पर श्री रघुवीर का भजन किया जाय। जो शरीर से विमुख है उसे यदि ब्रह्मा के समान भी शरीर प्राप्त हो जाय तो कवि और पंडित उसकी प्रसंशा नहीं करते।

 

 

 

 

इस शरीर से ही मेरे हृदय में राम की भक्ति उत्पन्न हुई। इसी से हे स्वामी! यह मुझे परम प्रिय है। मेरा मरण अपनी इच्छा पर है, परन्तु मैं फिर भी इसे नहीं छोड़ता क्योंकि वेदो ने वर्णन किया है कि शरीर के बिना भजन नहीं होता है। पहले मोह ने मेरी बहुत सी दुर्दशा किया है।

 

 

 

 

श्री राम से विमुख होकर मैं कभी सुख से नहीं सो सका। अनेक जन्मो में मैंने अनेक प्रकार के योग, जप, तप, यज्ञ और दान आदि कर्म किए। हे गरुण जी! जगत में ऐसी कौन योनि है जिसमे मैंने बार-बार जन्म न लिया हो। हे गुसाई! मैंने सब कर्म करके देख लिए पर अब इस जन्म की तरह कभी सुखी नहीं हुआ। हे नाथ! मुझे बहुत से जन्मो की याद है क्योंकि शिव जी की कृपा से मेरी बुद्धि को मोह ने नहीं घेरा।

 

 

 

 

हे पक्षीराज! सुनिए, अब मैं अपने प्रथम जन्म चरित्र को कहता हूँ जिन्हे सुनकर प्रभु के चरणों में प्रीति उत्पन्न होती है जिससे सब क्लेश मिट जाते है। हे प्रभो! पूर्व के एक कल्प में पापो का मूल युग कलियुग था जिसमे स्त्री और पुरुष सभी अधर्म के परायण और वेद के विरोधी थे।

 

 

 

 

उस कलियुग में अयोध्यापुरी में जाकर मैंने शूद्र का शरीर प्राप्त किया। मैं मन, वचन और कर्म से शिव जी का सेवक और दूसरे देवताओ की निंदा करने वाला अभिमानी था। मैं धन के मद में मतवाला, बहुत ही बकवादी और उग्र बुद्धि वाला था।

 

 

 

 

मेरे हृदय में बहुत भारी दंभ था यद्यपि मैं श्री रघुनाथ जी की राजधानी में रहता था तथापि मुझे उस समय उसकी महिमा के बारे में ज्ञान नहीं था। जब मैं अवध का प्रभाव जाना। वेद, शास्त्र, पुराणों ने ऐसा गाया है कि किसी भी जन्म में जो कोई अयोध्या में बस जाता है वह अवश्य श्री राम जी के परायण हो जायेगा।

 

 

 

 

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