शनि के उपाय Pdf | Shani Ke Upay Lal Kitab PDF In Hindi

नमस्कार दोस्तों, आज के पोस्ट में हम Shani Ke Upay Lal Kitab PDF In Hindi के बारे में जानेंगे और आप Shani Ke Upay Lal Kitab PDF In Hindi को नीचे दी गयी लिंक से DOWNLOAD कर सकते है साथ ही आप Vishwakarma Puran Pdf को भी डाउनलोड कर सकते है।

 

 

 

Shani Ke Upay Lal Kitab PDF In Hindi

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Shani Ke Upay Lal Kitab PDF

 

 

 

 

प्रत्येक जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते है जिन्हे भाव कहते है। कुंडली के जिस भाव में शनि स्थित होता है। उस भाव से फलाफल जानने के लिए द्वादश भावो में शनि की स्थिति का वर्णन आगे कर रहे है अतः पाठकगण ध्यानपूर्वक पढ़े और शनि के प्रभाव का फल भावानुसार जाने।

 

 

 

 

प्रथम भाव – जातक की कुंडली में शनि यदि प्रथम भाव में स्थित है तो वह जातक देश या नगर में अति सम्माननीय और धन सम्पत्ति से भरपूर होगा। राजा के समान वैभवशाली और सम्मान प्राप्त करेगा। यदि प्रथम भाव में शनि के साथ मिथुन राशि हो तो जातक का दो विवाह योग बनता है तथा संतानहीन रहने की संभावना रहती है।

 

 

 

 

द्वितीय भाव – कुंडली के द्वितीय भाव में शनि की स्थिति जातक को परदेशी, व्यसनी बनाता है। ऐसे जातक अपने परिवार से दूर रहकर जीवन यापन करते है तथा धन सम्पत्ति अर्जित करते है। राजा द्वारा सम्मान प्राप्त होता है। ऐसे जातको को गोपनीय विद्याओ में रुचि होती है।

 

 

 

 

जातक को व्यापार से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। ऐसे जातक स्वभावतः चालाक और धूर्त किस्म के भी होते है और अपनी वाणी चतुरता से सभी कुछ प्राप्त करते है किन्तु शनि बलहीन हो तो दरिद्रता का द्योतक है। तृतीत भाव – तृतीय भाव में विराजमान शनि जातक को धन वाहन से परिपूर्ण तो करता ही है साथ ही जातक को बल एवं पराक्रम भी प्रदान करता है।

 

 

 

 

ऐसे जातक ग्राम प्रधान आदि होते है किन्तु ऐसे जातको में न तो धार्मिकता होती है और न ही पारिवारिक जीवन सुखमय होता है। मन अशांत रहता है। पत्नी का सुख मिलता है। चतुर्थ भाव – जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में शनि बैठा हो जातक का सुख चैन नष्ट हो जाता है। इस किताब को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर करे।

 

 

 

 

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