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Shiv Puran Pdf in Hindi Download
पुस्तक का नाम | Shiv Puran Pdf |
पुस्तक की भाषा | हिंदी |
श्रेणी | धार्मिक |
फॉर्मेट | |
कुल पृष्ठ | 845 |
साइज | 10 Mb |


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शिव पुराण के बारे में
जिस विशाल खालीपन को हम शिव कहते है। वह शाश्वत और सीमाहीन है उसकी कोई भी सीमा नहीं है वह अनंत है। शिव के लिए बहुत तरह के रूपों की कल्पना की गयी है। जैसे सबसे गूढ़ मंगलकारी शिव, सबसे जादुई नर्तक यानी की नटराज आदि।
जीवन के जितने भी पहलू है उतने ही पहलू शिव के बताये गए है। अगर आप शिव पुराण को ध्यान से पढ़े तो आप शिव की पहचान अच्छे या बुरे रूप में नहीं कर सकते है।
शिव की शख्सियत जीवन के पूरी तरह विरोधाभासी पहलुओ से बनी है। जीवन के साथ हमारा सारा संघर्ष यही है कि हम सदैव ही सुंदर और अच्छा चुनने की कोशिस करते है।
परन्तु जो जीवन की हर चीज का एक जटिल संगम है अगर हम उसे स्वीकार कर सकते है तो आपको किसी चीज से कोई समस्या नहीं हो सकती है और समझ लीजिए कि आप पूरे जीवन से गुजर चुके है। शिव जी की पूजा देवता, दानव और दुनियां के हर तरह के प्राणी करते है।
हमारी तथा कथित सभ्यता ने अपनी सुविधा के लिए इन हजम न होने वाली कहानियों नष्ट भी किया लेकिन शिव का सार तत्व दरअसल इसी में है।
वैज्ञानिक नजरिया
शिव पुराण मानव प्रकृति की चेतना को चरम तक ले जाने का सर्वोच्च विज्ञान है जिसे बहुत सुंदर कहानियो के द्वारा व्यक्त किया गया है। मगर बाद में जाकर लोगो ने विज्ञान को छोड़ दिया और कहानियो को ढोते रहे।
अगर आप शिव पुराण की कहानियों पर ध्यान दे तो आप देखेंगे कि इनमे सापेक्षता के सिद्धांत, क्वांटम, मैकेनिक्स के सिद्धांत, पूरी आधुनिक भौतिकी को बहुत खूबसूरत कहानियों के जरिये अभिव्यक्त किया गया है।
उन कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ा चढ़ाकर इस तरह से पेश किया जाता रहा कि वह पूरी तरह से मूर्खतापूर्ण लगने लगी। अगर आप फिर से विज्ञान को उन कहानियों में ले आये तो यह विज्ञान को व्यक्त करने का एक सुंदर तरीका है। योग को एक विज्ञान के रूप में व्यक्त किया गया है जिसमे कहानियों की जगह नहीं है।
लेकिन अगर आप गहना पूर्वक ध्यान दे तो योग और शिव पुराण विलग नहीं हो सकते है। एक उनके लिए है जो कहानियों को पसंद करते है तो दूसरा पहलू यह है जिसे लोग विज्ञान की नजर से देखना चाहते है मगर दोनों में मूलभूत तत्व एक ही है।
शिव पुराण की कथा का पाठ
शिव पुराण का पाठ विशेष रूप से श्रावण के महीने में करना विशेष फलदायी होता है तथा सोमवार को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए क्योंकि इस दिन पाठ करने से शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि पर भी इस पाठ का बहुत महत्व है।
सात दिनों में शिव पुराण की सात संहिताओं का पाठ किया जा सकता है तथा एक मास में भी पाठ करने का विधान है। शिव जी की उपासना में तीन पहर का विशेष महत्व होता है।
यथा संभव तीन पहर से ही कथा सुननी चाहिए। शिव पुराण का पूर्ण रूप से नियम के अनुसार ही पाठ करना चाहिए। इस शृष्टि का निर्माण भगवान शिव की इच्छा मात्र से हुआ है अतः उनके भक्त को और भक्ति करने वाले को संसार की सभी वस्तुए प्राप्त हो सकती है।
सिर्फ पढ़ने के लिये
भरत जी का स्वरुप देखते ही रास्ते में रहने वालो के भाग्य खुल गए। मानो दैवयोग से सिंहल द्वीप के बसने वालो को प्रयाग सुलभ हो गया हो।
चौपाई का अर्थ-
1- इस प्रकार अपने गुणों सहित श्री राम जी के गुणों की कथा सुनते और श्री रघुनाथ जी का स्मरण करते हुए भरत जी जा रहे है। वह तीर्थ देखकर स्नान और मुनियो के आश्रम तथा देवताओ के मंदिर को देखकर प्रणाम करते है।
2- और अपने मन में यह वरदान मांगते है कि सीता राम जी के चरण कमल में प्रेम हो। मार्ग में भील, कोल आदि वनवासी तथा वानप्रस्थ, ब्रह्मचारी तथा सन्यासी और विरक्त मिलते है।
3- उनमे से जिस किसी से भी पूछते है कि लक्ष्मण जी श्री राम जी और जानकी जी किस वन में है? वह सब प्रभु के सब समाचार कह देते है और भरत जी को देखकर अपने जन्म का फल प्राप्त करते है।
4- जो लोग कहते है कि हमने उनको कुशल पूर्वक देखा है – वह भरत जी को श्री राम, लक्ष्मण के समान ही प्रिय लगते है। इस प्रकार से सबसे ही सुंदर वाणी से पूछते है और श्री राम जी के वनवास की कहानी सुनते जाते है।
98- श्री सीता जी का स्वप्न, श्री राम जी को कोल, किरातों द्वारा भरत जी के आगमन की सूचना, राम जी का शोक, लक्ष्मण जी का क्रोध
224- दोहा का अर्थ-
उस दिन वही ठहरकर दूसरे दिन प्रातःकाल श्री रघुनाथ जी का स्मरण करते हुए चले साथ के सभी लोगो को भी राम के दर्शन की लालसा भरत के समान ही लगी हुई है।
चौपाई का अर्थ-
1- सबको ही मंगल सूचक सगुन हो रहे है। सुख देने वाले स्त्रियों के बाये अंग तथा पुरुषो के दाहिने अंग फरक रहे है। समाज के साथ ही भरत जी उत्साहित हो रहे है कि श्री राम जी मिलेंगे और दुःख का दाह मिट जायेगा।
2- सब लोग अपने मन में मनोरथ कर रहे है, सब स्नेह से छके और प्रेम में मतवाले हुए चले जा रहे है। उनके सब अंग शिथिल है, रास्ते में पैर डगमगा रहे है और प्रेमवश बिह्वल वचन बोल रहे है।
3- राम सखा निषाद राज ने उसी समय स्वाभाविक सुहावना कामदगिरि पर्वत शिरोमणि को दिखाया। जिसके निकट ही पयस्विनी नदी के तट पर सीता के साथ ही दोनों भाई निवास करते है।
4- सब लोग उस पर्वत को देखकर (जानकी जीवन श्री राम जी की जय हो) ऐसा कहकर दंडवत प्रणाम करते है। राज समाज प्रेम में ऐसा मगन है कि मानो श्री रघुनाथ जी अयोध्या को लौट चले हो।
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Shiv maha puran