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Shiv Tandav Stotram Pdf

शिव तांडव की रचना लंकेश्वर रावण के द्वारा की गयी थी। रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया था। यह शिव स्तुति पञ्चचामर छंद की गायन शैली में है। मान्यताओं के अनुसार रावण को अपने बल का बहुत गर्व था। रावण गर्वोक्ति से कैलास पर्वत को जिसपर देवाधिदेव कैलाशपति महेश्वर स्वयं ही विराजमान थे।
उस कैलास पर्वत को अपनी विशाल भुजाओ में उठाकर लंका की तरफ प्रस्थान करने वाला था। तब महेश्वर शिव जी ने लंकेश रावण के गर्व को तोड़ने के लिए अपने पैर के अंगूठे से कैलास पर्वत को दबा दिया परिणाम स्वरुप रावण त्रिलोकी नाथ के भार तथा कैलास पर्वत के भार से दब गया उसने आर्तस्वर में त्रिलोकीनाथ की स्तुति किया जिसे शिव तांडव के रूप में मान्यता प्राप्त है।
शिव तांडव स्तोत्र की पाठ करने की विधि SHIV TANDAV STOTRAM
शिव तांडव स्तोत्र गायन शैली में है अतः गायन करते हुए शिव तांडव स्तोत्र का पाठ सर्वोत्तम होता है।
गायन करते हुए अगर नृत्य के साथ शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया जाय तो यह अत्यंत उत्तम रहता है।
प्रातःकाल या प्रदोष काल में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना बहुत फलदायी होता है।
सर्व प्रथम शिव जी को धूप, दीप, नैवेद्य अर्पण करने के पश्चात ही शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के पश्चात शिव जी का ध्यान करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए।
अर्थ 1 –
भगवान शिव जो सर्प है वह उनके गले में हार की भांति शोभायमान है तथा उनकी जटाओ से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है और भगवान शिव के प्रिय वाद्य यंत्र डमरू से डमट डमट डमट की मनोहर ध्वनि निकल रही है शिव जी शंभु तांडव नृत्य कर रहे है वह हम सबको प्रसन्नता तथा सम्पन्नता प्रदान करे।
अर्थ 2 –
जिन भूतभावन शिव जी के मस्तक में अलौकिक गंगा की प्रवाहित लहरों की धाराएं शोभायमान है तथा उनकी उलझी जटाओ की गहराई में उमड़ रही है जिनके ललाट पर चमकती हुई अग्नि प्रज्वलित है जिनके मस्तक के ऊपरी भाग पर अर्ध चंद्र का आभूषण सुशोभित है उन त्रिलोकीनाथ शिव में मेरी गहरी रूचि बनी रहे।
अर्थ 3 –
भगवान शिव के मन में इस अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी मौजूद है जिनकी करुणा की दृष्टि से सभी आपदाये नियंत्रित हो जाती है जो दिव्य लोको को अपनी पोशाक के रूप में धारण करते है तथा जो सर्वत्र व्याप्त है इन महादेव भगवान में मेरा मन अपनी ख़ुशी ढूंढे।
अर्थ 4 –
जो भगवान शिव सारे जगत और जीवन के रक्षक है उनके गले में रेंगते हुए सर्प का फन लाल भूरा रंग लिए हुए है तथा जिसकी मणि चमक रही है जो दिशाओ की देवियो के सुंदर चेहरे पर भिन्न प्रकार की आभा बिखेर रहा है तथा विशाल मदमस्त हाथी के चर्म से बने जगमग करते हुए दुशाले से आच्छादित है ऐसे भगवान शिव में मुझे अनोखा सुख प्राप्त हो।
अर्थ 5 –
जिन भूत-भावन भगवान शिव का मुकुट अर्ध चंद्र है जिनकी जटाएं लाल रंग के नाग से बंधी हुई है जिनकी शोभा हार की भांति है। फूलो की धूल बहने से जिनका पायदान गहरे रंग का हो गया है इंद्र, विष्णु अन्य देवताओ के सिर से गिरती है। वह भगवान शिव हमे सम्पन्नता प्रदान करे।
अर्थ 6 –
भगवान गंगाधर की उलझी हुई जटाओ से हमे सिद्धि की दौलत प्राप्त हो जो अपने मस्तक की अग्नि की चिंगारी से कामदेव को भस्म कर दिया था। जिनके मस्तक पर चंदा का आभूषण है वह भगवान शिव सारे देवलोक के स्वामियों द्वारा पूजनीय तथा आदरणीय है।
अर्थ 7 –
जिनके मस्तक की भीषण सतह पर डगद डगद की ध्वनि प्रज्वलित होती रहती है जिनके तीन नेत्र है और वह त्रिनेत्र कहलाते है। जिन्होंने कामदेव को अग्नि में समर्पित कर दिया तथा वही एकमात्र ऐसे कलाकार है जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर सजावटी रेखाएं खींचने में प्रवीण है। ऐसे भगवान शिव में मेरी रूचि है।
अर्थ 8 –
जिनके मस्तक पर चन्द्रमा की शोभा बढ़ जाती है जो सारे संसार का भार उठाने में तत्पर रहते है। जिनकी गर्दन की रेखाएं अमावस्या की अर्धरात्रि की भांति काले बादलो के पर्तो से आच्छादित है जिनके समीप अलौकिक देवनदी गंगा विराजमान है वह भगवान शिव हमे सम्पन्नता प्रदान करे।
अर्थ 9 –
जिनका कंठ खिले हुए नीले कमल के फूल की गरिमा से लटकता हुआ मंदिरो की चमक से बंधा हुआ है तथा जो ब्रह्माण्ड की कालिमा जैसा दिखता है मैं उन भगवान शिव की प्रार्थना करता हूँ। जिन्होंने कामदेव का अंत करके त्रिपुर को विनष्ट किया, जिन्होंने अंधकासुर का विनाश किया, बलि का अंत करके जो मृत्यु के देवता यमराज को पराजित किए जो हाथियों का अंत करने वाले है मैं उन भगवान शिव की प्रार्थना करता हूँ।
अर्थ 10 –
शंभु कदंब की फूलो से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण जिनके चारो तरफ मधुमक्खियो का घेरा बनाकर उड़ती रहती है। जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधन को समाप्त कर दिया जो कामदेव को मारकर त्रिपुरासुर का अंत किया जो हाथियों को मारने वाले है तथा मृत्यु के देवता यम को पराजित कर दिया तथा बलि का अंत किया मैं उन भोलेनाथ शिव की प्रार्थना करता हूँ।
अर्थ 11 –
जिनके महान मस्तक पर विषधर नाग के कारण जो अग्नि का प्रसार हो रहा है। जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की डिमिड डिमिड तीव्र आवाज की श्रृंखला के साथ लय में गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती है मैं उन शिव को प्रणाम करता हूँ।
अर्थ 12 –
जो भगवान शिव शाश्वत स्वरुप है। जो देवता, सम्राट तथा सामान्य जन के प्रति समभाव रखते है। घास के तिनके और कमल के पुष्प के प्रति, मूल्यवान रत्न और धूल के प्रति, मित्र और शत्रु के प्रति, सर्प और हार के प्रति तथा ब्रह्माण्ड के अनेक स्वरूपों के प्रति समदर्शी है। मुझे उन सदाशिव भगवान की पूजा का सौभाग्य कब प्राप्त होगा।
अर्थ 13 –
अपने दूषित विचारो को धोकर स्वच्छ करके, अलौकिक देवनदी गंगा के समीप गुफा में रहते हुए अपने दोनों हाथो को बांधकर हर समय अपने सिर पर रखे हुए तथा शिव मंत्र का उच्चारण करते हुए महान मस्तक तथा जीवंत नेत्रों भगवान शिव को समर्पित? मैं कब प्रसन्न हो सकता हूँ।
इस स्तोत्र को पढ़ने वाला, सुनने वाला, याद करने वाला सदा के लिए पवित्र हो जाता है तथा महान गुरु शिव की भक्ति प्राप्त करता है। इसके अलावा शिव भक्ति प्राप्त करने के लिए अन्य कोई साधन नहीं है। केवल शिव का विचार मात्र ही भ्रम का विनाश कर देता है।
जो भी व्यक्ति सायंकाल के समय लंकापति रावण द्वारा गायन शैली में विरचित ‘शिव तांडव स्तोत्र‘ का पाठ पूजा समाप्ति के उपरांत करता है। भगवान शिव की कृपा से उस मनुष्य को हाथी घोडा तथा रथ आदि सम्पदा से युक्त सदा स्थिर रहने वाली लक्ष्मी प्राप्त होती है।
जो व्यक्ति सदा इस उत्तमोत्तम शिव तांडव स्तोत्र का पाठ नित्य करता है अथवा श्रवण करता है वह पवित्र होकर सभी प्रकार से भय भ्रम मुक्त होकर परम गुरु शिव में विलीन हो जाता है।
प्रातःकाल के समय शिव पूजन के अंत में जो कोई भी लंकाधिपति रावण कृत ‘शिव तांडव स्तोत्र‘ का गायन करता है। उसके पास सदैव ही लक्ष्मी स्थिर रहती है तथा शिव भक्त सदा सर्वदा के लिए गज, घोड़े तथा रथ आदि से सम्पन्न हो जाता है।
शिव तांडव स्तोत्रम Pdf Download
पुस्तक का नाम | Shiv Tandav Stotram Pdf |
पुस्तक के लेखक | रावण |
भाषा | हिंदी |
साइज | 280 Kb |
पृष्ठ | 13 |
श्रेणी | काव्य |
फॉर्मेट |

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