नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Short Drama Script in Hindi On pollution Pdf देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Short Drama Script in Hindi On pollution Pdf Free Download कर सकते हैं और आप यहां से 15 + Short Play Script in Hindi Pdf भी पढ़ सकते हैं।

 

 

 

Short Drama Script Hindi On pollution Pdf Download

 

 

 

Drama Script in Hindi On pollution Pdf Download

 

 

 

 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

उसी समय यह समाचार सुनकर सीता जी अकुला उठी और सास के पास जाकर उनके चरण कमल की वंदना करके सिर नीचा करके बैठ गई।

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

1- सास ने कोमल वाणी से आशीर्वाद दिया। वह सीता जी को अत्यंत सुकुमार देखकर व्याकुल हो उठी। रूप की राशि और पति के साथ पवित्र प्रेम करने वाली सीता जी नीचा मुख किए बैठी सोच रही है।

 

 

 

2- जीवन नाथ वन को चलना चाहते है। देखे किस पुण्यवान (सुकृति) से उनका साथ होगा – शरीर और प्राण दोनों साथ जायेंगे या केवल प्राण से ही इनका साथ होगा? विधाता की करनी कुछ नहीं कही जा सकती है।

 

 

 

3- सीता जी अपने सुंदर नख से धरती कुदेर रही है। ऐसा करते समय जो मधुर शब्द नूपुरों का हो रहा है कवि उसका इस प्रकार वर्णन करते है कि मानो प्रेम के वश होकर नूपुर यह विनती कर रहे है कि सीता जी के चरण कभी हमारा त्याग न करे।

 

 

 

4- सीता जी सुंदर नेत्रों से जल बहा रही है। उनकी यह दशा देखकर श्री राम जी की माता कौशल्या जी बोली – हे तात! सीता अत्यंत ही सुकुमारी है तथा सास ससुर और कुटुंबी सभी को ही प्यारी है।

 

 

 

58- दोहा का अर्थ-

 

 

 

इनके पिता जनक जी राजाओ के शिरोमणि है, ससुर सूर्यकुल के सूर्य है और पति सूर्यकुल रूपी कुमुद वन को खिलाने वाले चन्द्रमा तथा गुण और रूप के भंडार है।

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

1- फिर मैंने तो रूप की राशि सुंदर गुण और शील वाली प्यारी, पुत्रवधु पाई है। मैंने इन (जानकी) को अपनी आंखो की पुतली बनाकर इनसे प्रेम बढ़ाया है और अपने प्राण इनमे ही लगा रखे है।

 

 

 

2- इन्हे कल्पलता के समान बहुत तरह से बड़े प्यार दुलार के साथ स्नेह रूपी जल से सींचकर पाला है, अब इस लता के फूलने फलने के समय ही विधाता वाग हो गए। कुछ जाना नहीं जाता है कि इसका परिणाम क्या होगा।

 

 

 

3- सीता ने कभी परिकपृष्ठ (पलंग के ऊपर) गोद और हिंडोले को छोड़कर कठोर पृथ्वी पर कभी पैर नहीं रखा। मैं सदा संजीवनी जड़ी के समान ही सावधानी से रखवाली करती हूँ। कभी दीपक की बत्ती हटाने को भी नहीं कहती।

 

 

 

4- वही सीता अब तुम्हारे साथ वन चलना चाहती है। हे रघुनाथ! उसके लिए क्या आज्ञा है? चन्द्रमा की किरणों का रस चाहने वाली चकोरी सूर्य की ओर आंख किस तरह मिला सकती है।

 

 

 

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