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Siridhanya Dr. Khadar Vali PDF In Hindi

 

 

पुस्तक का नाम  Siridhanya Dr. Khadar Vali PDF In Hindi
पुस्तक के लेखक  डा. खादर वली 
भाषा  हिंदी 
साइज  10 Mb 
पृष्ठ  108 
श्रेणी  आयुर्वेद 
फॉर्मेट  Pdf 

 

 

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सिर्फ पढ़ने के लिये

 

 

श्रीअष्टावक्र उत्तर देते हैं – यदि आप मुक्ति चाहते हैं तो अपने मन से विषयों (वस्तुओं के उपभोग की इच्छा) को विष की तरह त्याग दीजिये। क्षमा, सरलता, दया, संतोष तथा सत्य का अमृत की तरह सेवन कीजिए। आप ब्राह्मण आदि सभी जातियों अथवा ब्रह्मचर्य आदि सभी आश्रमों से परे हैं तथा आँखों से दिखाई न पड़ने वाले हैं।

 

 

 

आप निर्लिप्त, निराकार और इस विश्व के साक्षी हैं, ऐसा जान कर सुखी हो जाएँ। धर्म, अधर्म, सुख, दुःख मस्तिष्क से जुड़ें हैं, सर्वव्यापक आप से नहीं। न आप करने वाले हैं और न भोगने वाले हैं, आप सदा मुक्त ही हैं। सदा केवल आत्मा का दर्शन करने वाले बुद्धिमान व्यक्ति भोजन कराने पर या पीड़ित करने पर न प्रसन्न होते हैं और न क्रोध ही करते हैं।

 

 

 

इन प्रश्नों के संधान में खोजियों के खोज के अनुभव का ज्ञान अपार भण्डार सृजित हुआ है। अनेकानेक पथ और पंथ बन गये। भारत में अध्यात्म आत्मन्वेषण की परम्परा प्राचीनकाल से सतत सजीव है। इन प्रश्नों के जो समाधान-उपाय ढूँढ़े गये, उन्हें सामान्यतया तीन मुख्य धाराओं में वर्गीकृत किया जाता है। अर्थात् भक्ति मार्ग, कर्ममार्ग और ज्ञानयोग मार्ग।

 

 

 

भागवत् गीता जो युद्धक्षेत्र-कर्मक्षेत्र में कृष्ण-अर्जुन का संवाद है, जो हिन्दुओं का शीर्ष ग्रन्थ है, में तीनों मार्गों को समन्वित किया गया है। समन्वयवादी दृष्टिकोण है कृष्ण की गीता का। भक्ति भी, ज्ञान भी, कर्म भी। जिसे जो रुचे चुन ले। इसलिए गीता की सहस्त्रों टीकाएँ हैं, अनेकानेक भाष्य हैं।

 

 

 

सबने अपने-अपने दृष्टिकोण का प्रतिपादन गीता के भाष्य में किया है। अपने दृष्टिकोण की पुष्टि गीता से प्रमाणित की है। इसलिए गीता हिन्दुओं का गौरव ग्रंथ है, सर्वमान्य है। परन्तु अष्टावक्र गीता एक निराला, अनूठा ग्रंथ है। सत्य का सपाट, सीधा व्यक्तव्य। सत्य जैसा है वैसा ही बताया गया है। शब्दों में कोई लाग-लपेट नहीं है।

 

 

 

इतना सीधा और शुद्धतम व्यक्तव्य कि इसका कोई दूसरा अर्थ हो ही नहीं सकता। इसमें अपने-अपने अर्थ खोजने की गुंजाइश ही नहीं है। जो है, वही है। में मअन्यथा नहीं कहा जा सकता। इसलिए अष्टावक्र गीता के भाष्य नहीं है, विभिन्न व्याख्याएँ नहीं है।

 

 

 

यह अपने आप में ही अनूठा, अनुपम ग्रंथ है।जीवन में एक बार हो सके तो इसे अवश्य ही पढ़ना चाहिए। बस अधिक और क्या कहना। महाभारत के वन पर्व में अष्टावक्र का वर्णन – महाभारत के वन पर्व में अष्टावक्र की कथा का अधिक विस्तार से वर्णन किया गया है।

 

 

 

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