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Sri Chaitanya Charitamrita PDF
प्राचीन काल में जरासंध जैसे राजा हुए है जो वैदिक अनुष्ठान का पालन करते थे। दानी, कुशल क्षत्रियो जैसा कार्य करते थे। समस्त क्षत्रिय गुणों से सम्पन्न होते थे और ब्राह्मण संस्कृति के भी अनुयायी हुआ करते थे। किन्तु कृष्ण को भगवान करके नहीं मानते थे।
जरासंध ने कृष्ण पर कई बार आक्रमण किया किन्तु हर बार पराजित होता रहा। अतः जरासंध जैसा कोई भी व्यक्ति जो कृष्ण को भगवान के रूप में स्वीकार नहीं करता असुर समझा जाना चाहिए। इसी तरह जो व्यक्ति श्री चैतन्य महाप्रभु को साक्षात् कृष्ण नहीं मानता वह भी असुर है।
प्रामाणिक शास्त्रों का यही निष्कर्ष है। अतएव कृष्ण की भक्ति के बिना गौरसुन्दर की तथाकथित भक्ति और गौरसुन्दर की भक्ति के बिना कृष्ण तथाकथित भक्ति विहीन कार्यकलाप है। जो व्यक्ति कृष्णभावनामृत के पथ पर सफल होना चाहता है उसे गौरसुन्दर तथा कृष्ण दोनों के व्यक्तित्व का पूरा-पूरा भान होना चाहिए।
गौरसुन्दर के व्यक्तित्व को जानने का अर्थ है श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादिगौरभक्तवृंद को जानना। चैतन्य चरितामृत का प्रणेता इन महापुरुषों का अनुगामी होने के कारण कृष्णभावनामृत में सिद्धि लाभ के लिए इस सिद्धांत पर बल दे रहा है। डाउनलोड करने के लिए नीचे दी गयी बटन पर क्लिक करे।
पुस्तक का नाम | श्री चैतन्य चरितामृत Pdf |
पुस्तक के लेखक | — |
भाषा | हिंदी |
साइज | 41.1 Mb |
पृष्ठ | 463 |
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