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Subhadra Kumari Chauhan Poems in Hindi Pdf
सुभद्रा कुमारी चौहान के बारे में

सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी साहित्य प्रेमी के दिल में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है और किसी परिचय की मोहताज नहीं है। हिंदी साहित्य के आकाश में एक जाज्वल्य नक्षत्र की भांति है। इनका जन्म 16 अगस्त 1904 को हुआ था। यह हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कवियत्री थी। इनके दो कविता संग्रह और दो कथा संग्रह प्रकाशित हुए है।
इन्होने राष्ट्रीय चेतना को जगाने का प्रयास किया और राष्ट्रीय चेतना की सजग प्रहरी थी। इनकी प्रसिद्ध ‘झाँसी की रानी’ कविता लेखन से मिली थी। इन्होने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण जेल की यातनाए सही और उन्हें अपनी अनुभूतियों में व्यक्त किया। इनकी भाषा शैली काव्यात्मक होते हुए भी सरल विचार प्रधान होने के कारण हृदयग्राही है।
Subhadra Kumari Chauhan Poems in Hindi Pdf Download
1- गृह विधान
2- मुकुल
3- खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी
6- दो सखियाँ
7- कदंब का पेड़
बदलाव एक बहुत ही बेहतरीन कहानी
गाैरी का आज कालेज में दाखिला हुआ था। वह बहुत ही खुश थी। उसके साथ उसकी सहेलियां भी खुश थीं, क्याेंकि वह पढ़ने में बहुत ही अच्छी थी और वह बहुत ही निडर थी। लड़कों के किसी भी फब्तियाें पर वह चुप-चाप नही चली जाती थी,बल्कि उन्हें बाकायदा चुप कराकर जाती थी।
ऐसी ही एक घटना का जिक्र मैं कर रहा हूँ, जिसकी वजह से वह पूरे गांव में प्रसिद्ध हाे गयी थी। उस दिन गौरी दाेपहर में स्कूल से छुट्टी लेकर घर आ रही थी, क्याेंकि उसकी मां की तबीयत खराब थी और उसके पिताजी बाजार गये थे। उन्हाेने उसे जल्द घर आने के लिये कहा था।
उसके घर और स्कूल के बीच में एक आम का बगीचा था। जहां दाेपहर में गांव के कुछ लफंगे बैठते थे. गाैरी काे आता देख गांव का एक बिगड़ैल लड़का रिंकू खुश हाेते हुये अपने दाेस्त प्यारे से बाेला …प्यारे देख गाैरी आ रही है…इसे परेशान करेंगे।
गाैरी तेजी से आगे बढ़ते हुये जैसे ही बागीचे में आयी, इन दाेनाें ने उसे राेक लिया और उलटे – सीधे बाते बोलने लगे। लेकिन गौरी उनसे डरी नहीं। उसने एक जोरदार किक मारी और दोनों जमीन पर आ गिरे।
दरअसल गाैरी कराटे की चैम्पियन थी। उसे स्कूल से कई सारे अवार्ड मिले थे। वह वहाँ से सीधा रिंकू और प्यारे के घर गयी और वहां उनके मां-बाप काे सम्बाेधित करते हुये गुस्से से बाेली ” ले आवाे अपने निकम्माें काे, पहले ही उनसे कहा था कि चले जावाे, नहीं ताे अपने पैर पर नहीं जा पावाेगे, पड़े हैं आम के बागीचे में”.
रिंकू कि मां गुस्से में खीझते हुये बाेली ” हे भगवान किस गलती की सजा दे रहे हो, ऐसी औलाद से अच्छा ताे बेऔलाद ही ठीक थी मैं”
इस घटना के बाद से गाैरी पूरे गांव में प्रसिद्ध हाे गयी। हर काेई उसके शान में कसीदा पढ़ता, लाेग अपने बच्चों से कहते कि देखाे बेटा तुम्हें भी गाैरी की तरह बनना है…. गुणवान, धैर्यवान और बलवान।
कालेज में दाखिले से गौरी और उसकी सहेलियां ताे खुश थीं, लेकिन गाैरी के पिता रामेश्वर खुश नहीं थे। वे कालेज में दाखिले एकदम खिलाफ थे। उन्हें गौरी की हमेशा चिन्ता रहती थी।
उनका चिन्तित हाेना भी सही था,एक पिता अपनी बेटी काे लेकर चिंतित नहीं रहेगा ताे कौन रहेगा, लेकिन गौरी की जिद के आगे उनकी एक ना चली और उन्हें दाखिला कराना ही पड़ा।
कालेज गांव से थाेड़ी दूर पर था। बीच में 4-5 गांव पड़ते थे। हर गांव के नुक्कड़ पर लफंगे इकठ्ठा हाेते थे। उन्हीं में एक था पंकज उर्फ पंकू। उसे पंकज कहलाना पसंद नहीं था।
उसके पिताजी ग्राम प्रधान थे। उसका परिवार खानदानी रईस था। इस रईसी की वजह से पंकज बहुत बिगड़ गया था। उसका सिर्फ एक ही काम था, लोगों को परेशान करना और खासकर कालेज के लडके लड़कियों को।
उसके डर से कितने लडके लड़कीयो ने रास्ता बदल कर जाना शुरू कर दिया। लेकिन वह रास्ता काफी लंबा पड़ता था और कभी – कभी पंकज वहाँ भी पहुँच जाता था।
उसके पिता के रसूख के कारण काेई उस पर बंदिश नहीं लगा पा रहा था। लाेग उससे बहुत डरते थे. इसलिये उसका हौसला बहुत बढ़ गया था।
क दिन की बात है गाैरी कालेज से वापस लाैट रही थी,रास्ते में पंकू ने उसे राेक लिया। गाैरी उसके डर से बेखबर होकर उससे कहा कि ” शायद तुम्हें पता नहीं है, इसके पहले ऐसे ही रास्ता राेकने के कारण दाे लाेगाें काे अपनी एक-एक टांगे गवानी पड़ी। आज भी जब वो चलते हैं ना ताे मेरा नाम लेते हैं “.
पंकज इस बात पर जाेर से हंसा और बोला शायद तुम्हे मेरे बारे में पता नहीं है। यहां से जाने वाला हर व्यक्ति मुझे सलाम करके जाता है। तुमने ऐसा नहीं किया। तुम्हे इसकी सजा मिलेगी। कल से तुम भी यह रास्ता छोड़ दोगी। दोनों में तेज बहस होने लगी।
इधर रास्ते के दाेनाे तरफ लाेग खड़े थे। सबकी नजरे झुकी हुयी थीं। रास्ते के बीचाेबीच पंकज और गौरी खड़े थे। काेई भी किसी तरफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
सभी पर पंकज का खौफ साफ नजर आ रहा था। लेकिन गौरी निर्भीक,निडर उसके सामने खड़ी थी और उसके हर वार पर पलटवार कर रही थी।
आज तक पंकज से बहस करने की किसी ने हिम्मत नहीं की थी। पंकज गौरी पर बहुत गुस्सा हो रहा था और गौरी उससे भी अधिक क्रोध से उसे जवाब दे रही थी।
तभी पंकज आपा खो बैठा और गौरी को एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया। लेकिन अगले ही पल गौरी ने पंकज को एक पंकज काे एक जाेरदार तमाचा रसीद करते हुये चिल्लाते हुये बाेली “मर्द है तू, शर्म आनी चाहिये तुझे , एक लड़की पर अपनी ताकत दिखाता है। अरे तेरी इस हरकत से तेरी मां पर क्या गुजरती हाेगी, साेचा है तूने कभी। अरे क्या साेचेगा तू, तेरे दिमाग में ताे कचरा भरा है कचरा। अरे जा चुल्लू भर पानी में डूब मर। “
आज तक पंकज से किसी ने ऐसी बात नहीं की थी। उसे अब बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। अब पंकज अपनी नजराें से गिर चुका था। वह पीछे हट गया।
गौरी ने लाेगाें की देखा,उनकी नजरें अभी भी झुकी हुयी थीं। यह देख दर्द और गुस्से के मिश्रित स्वर में गौरी ने कहा “अगर आज बेटियां, बहुयें बेइज्जत हाे रही हैं ना ताे उसके जिम्मेदार उसके कसूरवार आप और आप जैसी साेच के लाेग हैं। आप लाेग इस बात का इंतजार करते हैं कि अरे यह मेरे घर की थाेड़ी ना है मेरे घर की हाेगी ताे देखा जायेगा. लेकिन आपके घर की हाे या किसी और को घर की, मरती है ताे सिर्फ बेटी, लुटती है ताे सिर्फ बेटी….”
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