सुख सागर Pdf | Sukh Sagar pdf Hindi

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भारतीय जन- मानस का अनमोल धार्मिक ग्रंथ (श्रीमद्भागवत तथा सुख सागर ) में भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण की बाल लीला चरित्र के साथ अन्य कई लीलाओं का वर्णन है जो इस अनमोल धार्मिक ग्रंथ में भक्ति की प्रधानता का प्रति पादन करता है अतः अनेक प्रकार से -श्री कृष्ण -को परम् ब्रह्म रूप में प्रतिस्थापित करते हुए उनकी भक्ति को परम् लक्ष की प्राप्ति तथा मोक्ष का प्रमुख साधन माना गया है।

 

 

 

 

योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण भारत के राष्ट्र पुरुष हैं लेकिन कुछ आलोचकों ने कुछेक प्रसंगो में उन्हें कसौटी पर परखने की चेष्टा किया है। श्रीमद्भागवत तथा सुखसागर में श्री कृष्ण की भक्ति के साथ ही कर्म ,ज्ञान ,योग ,सांख्य अदि का यथोचित वर्णन हुआ है। इसके कई आख्यान तथा प्रसंगो में सृष्टि के साथ प्रलय और कई राजबंशों का भी उल्लेख हुआ है। मनुष्यके अन्तःकरण में ज्ञान तथा वैराग्य सुप्त अवस्था में रहते हैं। -श्रीमद्भागवत तथा सुखसागर -के श्रवण करने वाले व्यक्ति के अन्तःकरण में ज्ञान वैराग्य जागृत होकर अंततः मनुष्य मोक्ष का भागी बनाते हैं।

 

 

 

 

एक बार मुनि श्रेष्ठ नारद जी भ्रमण करते हुए वृन्दावन पहुंचे वहां पर उन्हें एक आश्चर्यजनक दृश्य दृष्टिगोचर  हुआ ,वहां एक तरुणी स्त्री अपने दो वृद्ध पुत्रों के साथ यमुना के तट पर करूंण क्रंदन कर रही थी।

 

 

 

 

क्यों कि  उसके दोनों वृद्ध पुत्र अचेतावस्था में पड़े हुए कराह रहे थे। मुनि श्रेष्ठ नारद जी उस तरुणी के करूंण क्रंदन से द्रवित होकर उसके पास गए और पूछा -हे महाभागे !आप कौन हैं और विलाप क्यों कर रही हैं ?वह तरुणी नारद जी को नमस्कार करते हुए बोली -हे महामुने! मेरा नाम भक्ति है तथा यह दोनों वृद्ध मेरे पुत्र हैं ,इनका नाम ज्ञान तथा वैराग्य है यह दोनों अचेत होकर पड़े हैं ,यही हमारे क्रंदन का कारण है।

 

 

 

 

नारद मुनि ने अपने दिव्य चक्षु से दृटिपात किया तो उन्हें इस बात के कारण का पता लग गया उन्होंने उस तरुण स्त्री (भक्ति )से कहा -इस कलयुग का ऐसा प्रभाव है कि  तप ,सदाचार ,कलयुग से भयभीत होकर छिप गए हैं ,साधु पुरुषों को कष्ट मिल रहा है ,दुष्ट लोग हर प्रकार से सुख भोग रहे हैं ,कलयुग में कोई ज्ञान ,वैराग्य का चिंतन नहीं करता इसलिए तुम्हारे पुत्र युवा नहीं हो सके ,वृन्दावन में सदैव ही कृष्ण भक्ति का नृत्य होता रहता है अतः तुम यहां तरुणी हो।

 

 

 

 

मुनि श्रेष्ठ नारद की वाणी सुनकर भक्ति बोली -हे महामुने !सज्जन पुरुष की संगति अत्यंत दुर्लभ है ,वह बहुत सौभाग्य से मिलती है ,आप भक्ति का सभी लोको में प्रसार करने वाले श्रेठ मुनि हैं ,मैं आप को वारंवार नमस्कार करती हूँ। नारद जी बोले -हे महाभाग देवी ! तुम शोक न करो ,भगवान कृष्ण का स्मरण करो ,वही (श्री हरि )तुम्हारे दुखों का हरण करेंगे।

 

 

 

 

मुनि श्रेष्ठ नारद को (सत्कर्म )करने के लिए आकाश वाणी हुई ,नारद जी सोच में पड गए यह हमारे द्वारा जो सब पुण्य कार्य किया जा रहा है वह -सत्कर्म -नहीं है ?नारद जी ने कई महात्माओं से पूछा -सत्कर्म -क्या है ?परन्तु किसी ने भी मुनि श्रेष्ठ नारद जी के प्रश्न का संतोष पूर्ण उत्तर नहीं दिया।

 

 

 

 

तब सनत्कुमार बोले -द्रव्य यज्ञ ,ज्ञान यज्ञ ,तप यज्ञ ,इत्यादि से वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है। कई महान ज्ञानियो केअनुसार (सत्कर्म )अर्थात (श्रीमद्भभागवत )की कथा श्रवण करने से ज्ञान तथा वैराग्य को पुनः युवावस्था प्राप्त होती है और भक्ति का नृत्य होता है तथा -श्रीमद्भागवत -के श्रवण से कलयुग अपना प्रभाव नहीं दिखा पाता है ,अतः -श्रीमद्भागवत -का श्रवण ही (सत्कर्म )है जो परम् आनंद प्रदान करता है।

 

 

 

 

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