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Sukhi Hone Ke Upay PDF
मन और बुद्धि इन दोनों में निश्चय होता है। बुद्धि निश्चय करती है और मन भावना करता है। मन संकल्प विकल्पात्मक है। संकल्प की वस्तु का ही बार बार मनन करना, इसका नाम चित्त है। चिंतन करने वाला चित्त संकल्प विकल्प करने वाला मन और चित्त एक ही है।
वास्तव में तो ये चार कारण जो है वह एक ही अंतःकरण के चार वृत्तियों के रूप है। इनमे मन और चित्त को किसी किसी ने दो माना है और किसी किसी ने एक माना है। मन के द्वारा यह भावना हो गयी कि सब भगवान है और बुद्धि के द्वारा निश्चय हो गया कि सब भगवान है।
अब जो क्रिया होगी वह इस मन बुद्धि के अनुसार होगी। प्रत्येक क्रिया में यह भाव हो जाय कि यह क्रिया जो कुछ मैं कर रहा हूँ जो कुछ बोल रहा हूँ जो कुछ कर रहा हूँ खा रहा हूँ यह सारा कुछ भगवान के साथ हो रहा है। इस प्रकार भगवान के साथ मन और बुद्धि का सम्पर्कित हो जाना प्रत्येक कर्म को भगवान की पूजा बना देता है।
इसी को श्रीमद्भागवत में कहा गया है – मृत्यु पर विजय प्राप्त करा देने वाला योग। यह संसार की जो भी खुराफात हमसे होती है यह पहले हमारे मन में होती है। जितनी इन्द्रियां है सब चीजों को ग्रहण करती है मन की सहायता से और सौप देती है ले जाकरके मन को। इस बुक को पूरा पढ़ने के लिए नीचे की लिंक पर क्लिक करे।
Sukhi Hone Ke Upay PDF Download
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पुस्तक का नाम | सुखी होने के उपाय Pdf |
लेखक | हनुमान प्रसाद |
साइज | 351.4 Mb |
पृष्ठ | 155 |
भाषा | हिंदी |
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