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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

वे मोहित हो श्रीमती को प्राप्त करने की इच्छा से उसके आगमन की प्रतीक्षा करने लगे। इसी बीच में वह सुंदरी राजकन्या स्त्रियों से घिरी हुई अंतःपुर से वहां आयी। उसने अपने हाथो में सोने की एक सुंदर माला ले रखी थी। वह शुभ लक्षणा राजकुमारी स्वयंवर के मध्य भाग में लक्ष्मी के सामने खड़ी हुई अपूर्व शोभा पा रही थी।

 

 

 

 

उत्तम व्रत का पालन करने वाली वह भूप कन्या माला हाथ में लेकर अपने मन के अनुरूप वर का अन्वेषण करती हुई सारी सभा में भ्रमण करने लगी। नारद मुनि का भगवान विष्णु के समान शरीर और वानर जैसा मुंह देखकर वह कुपित हो गयी और उनकी ओर से दृष्टि हटाकर प्रसन्न मन से दूसरी ओर चली गयी।

 

 

 

 

स्वयंवर सभा में अपने मनोवांछित वर को न देखकर वह भयभीत हो गयी। राजकुमारी उस सभा के भीतर चुपचाप खड़ी रह गयी। उसने किसी के गले में जयमाला नहीं डाली। इतने में ही राजा के समान वेशभूषा धारण किए भगवान विष्णु वहां आ पहुंचे। किन्ही दूसरे लोगो ने उनको वहां नहीं देखा।

 

 

 

 

केवल उस कन्या की दृष्टि उन पर पड़ी। भगवान को देखते ही उस परम सुंदरी राजकुमारी का मुख प्रसन्नता से खिल उठा। उसने तुरंत ही उनके कंठ में वह माला पहना दी। राजा का रूप धारण करने वाले भगवान विष्णु उस राजकुमारी को साथ लेकर तुरंत अदृश्य हो गए और अपने धाम में जा पहुंचे।

 

 

 

 

इधर सब राजकुमार श्रीमती की ओर से निराश हो गए। नारद मुनि तो काम वेदना की ओर से निराश हो गए। नारद मुनि तो काम वेदना से आतुर हो रहे थे। इसलिए वे अत्यंत विह्वल हो उठे। तब वे दोनों विप्र रूप धारी ज्ञानविशारद रूद्र गण काम विह्वल नारद जी से उसी क्षण बोले।

 

 

 

 

रुद्रगणों ने कहा – हे नारद! हे मुने! तुम व्यर्थ ही काम से मोहित हो रहे हो और सौंदर्य के बल से राजकुमारी को पाना चाहते हो। अपना वानर के समान घृणित मुंह तो देख लो। सूत जी कहते है – महर्षियो! उन रुद्रगणों का यह वचन सुनकर नारद जी को बड़ा विस्मय हुआ।

 

 

 

 

वे शिव की माया से मोहित थे। उन्होंने दर्पण में अपना मुंह देखा। वानर के समान अपना मुंह देख वे तुरंत ही क्रोध से जल उठे और माया से मोहित होने के कारण उन दोनों शिवगणों को वहां शाप देते हुए बोले – अरे! तुम दोनों ने मुझ ब्राह्मण का उपहास किया है। अतः तुम ब्राह्मण के घर में उत्पन्न राक्षस हो जाओ।

 

 

 

 

ब्राह्मण की संतन होने पर भी तुम्हारे आकार राक्षस के समान ही होंगे। इस प्रकार अपने लिए शाप सुनकर वे दोनों ज्ञानिशिरोमणि शिवगण मुनि को मोहित जानकर कुछ नहीं बोले। ब्राह्मणो! वे हमेशा सब घटनाओ में भगवान शंकर की इच्छा मानते थे।

 

 

 

 

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