सुपर कमांडो ध्रुव | Super Commando Dhruv Comics Pdf

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एक नगर में देवी दयाल नाम का सेठ अपने भरे पूरे परिवार के साथ रहता था। उसकी चार बहुए थी। सेठ देवी दयाल के पास बहुत सम्पत्ति थी।

 

 

 

 

उनके नाम के अनुरूप देवी लक्ष्मी की कृपा उनके ऊपर कई पीढ़ियों से थी। एक दिन रात को सेठ देवी दयाल निद्रा देवी की गोद में थे।

 

 

 

 

तब उन्हें एक स्वप्न दिखा। एक युवा स्त्री लाल रंग के परिधान में उनके घर से निकलकर बाहर जा रही थी। सेठ देवी दयाल ने उस स्त्री से पूछा, “हे देवी आप कौन है और क्यों हमारे घर से बाहर जा रही है ?”

 

 

 

 

तब वह स्त्री बोली, “हे सेठ देवी दयाल मैं धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हूँ। मैं तुम्हारे इस घर में कई पीढ़ियों से रहती आई हूँ और अब हमारे जाने का समय आ गया है। मैं तुम्हारे घर के सभी सदस्यों के अच्छे व्यवहार से बहुत प्रसन्न हूँ। लेकिन मैं भी समय के हाथो बिवश हूँ, इसलिए अब हमे अवश्य जाना होगा। तुम जो भी वरदान मांगना चाहते हो तो मांग सकते हो।”

 

 

 

 

 

सेठ देवी दयाल ने सोचा मैं अपनी सभी बहुओ से विचार करने के बाद ही निर्णय करूँगा। सेठ ने माता लक्ष्मी से कहा, “आप हमे एक मौका दीजिए। मैं कल अपने घर की बहुओ से पूछकर बताऊंगा।”

 

 

 

 

ठीक है मैं तुम्हे कल स्वप्न में दर्शन दूंगी। इतना कहकर माँ लक्ष्मी चली गई। सुबह सेठ देवी दयाल ने अपनी चारो बहुओ को बुलाया और कहा, “माँ लक्ष्मी अब हमारे घर से जाने वाली है और वरदान मांगने के लिए कहा है। तुम लोगो का क्या विचार है ?”

 

 

 

 

एक बहू ने कहा, “आप सोना चांदी मांग लो।”

 

 

 

दूसरी ने कहा, “ढेर सारे अन्न का भंडार मांग लो।”

 

 

 

तीसरी ने कहा, “हीरे जवाहरात मांग लो।”

 

 

 

तब चौथी बहू ने कहा, “आप माँ लक्ष्मी से कहना कि हमारे परिवार में शांति बनी रहे और परिवार के सभी लोग दीन दुखियो की सहायता में तत्पर रहे और हमारे घर में सदैव ही पूजा पाठ होता रहे और हमारा किसी से भी बैर न रहे। ऐसा वरदान हमारे परिवार को दे।”

 

 

 

 

रात हुई, देवी दयाल के स्वप्न में माँ लक्ष्मी प्रकट हुई। तब सेठ ने अपनी छोटी बहू की कही हुई बातो का वरदान माँ लक्ष्मी से देने के लिए कहा।

 

 

 

 

माँ लक्ष्मी ने कहा, “जहां शांति रहती है, सद्भाव रहता है। दीन दुखियो की सहायता की जाती है और हमेशा पूजा पाठ होता है। वहां तो हमेशा श्री हरि नारायण बिराजमान रहते है और जहां श्री हरि नारायण रहते है वही मैं भी रहती हूँ।”

 

 

 

 

तब माँ लक्ष्मी ने सेठ देवी दयाल को आशीर्वाद देते हुए ‘तथास्तु’ कह दिया।

 

 

 

 

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