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Surdas Bhramar Geet Sar PDF
भ्रमर-गीत परम्परा में सूर के भ्रमर-गीत के पश्चात् कृष्ण भक्त कवि ननन््ददास का भ्रमरगीत उल्लेख्य है। वस्तुत: नंददास का अमरगीत सूर के अमरगीत का पुरक है। अन्तर केवल इतना है कि नन््ददास के भ्रमरगीत की गोपियो का वौद्धिक स्तर बहुत ऊँचा है।
तर्क और ज्ञान की तुला पर नन्ददास की गोपियाँ कही ऊँची दीखती है। एक विद्वाव श्रालोचक ने इस स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “सूर तक मे सक्षिप्त हैं अत. गोपी जब उद्धव की तर्क में भी परास्त कर देती है तब हमे एक विशेष प्रकार का संतोष होता है।
क्योकि सूरदास में करुणा बहुत अधिक है और उपहास करते समय सूर तके अधिक नही देते, वह केवल प्रतिपक्षी की विचार पद्धति की अव्यवहारिकता पर ही प्रहार करते है किन्तु नन्ददास ने गोपियो का बौद्धिक स्तर बहुत ऊचा कर दिया है।
जिससे अस्वाभाविकता भले ही आई हो परन्तु बुद्धितत्व अधिक होने से नंददास की गोपियों को अधिक बुद्धिमती देकर हम प्रसन्न अवश्य होते है। नन्ददास का भ्रमरगीत मुख्यतः दो भागो में वटा है–एक भाग में तो गोपी- उद्धव सवाद है और दूसरे’ भाग में गोपियों की विरह-भावता का वर्णन किया जया है। ……किताब को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करे।
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