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Surendra Mohan Pathak Novels In Hindi Pdf Download


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सिर्फ पढ़ने के लिये
परन्तु नारद जी शिव की माया से मोहित थे। अतएव उनके चित्त में मद का अंकुर जम गया था। उनकी बुद्धि मारी गयी थी। इसलिए नारद जी अपना सारा वृतांत भगवान विष्णु के सामने कहने के लिए वहां शीघ्र ही विष्णुलोक में गए। नारद मुनि को आते देख विष्णु भगवान बड़े आदर से उठे और शीघ्र ही आगे बढ़कर उन्होंने मुनि को हृदय से लगा लिया।
मुनि के आगमन का क्या हेतु है उसका उन्हें पहले से ही पता था। नारद जी को अपने आसन पर बिठाकर भगवान शंकर के चरणारबिंदो का चिंतन करके श्री हरि ने उनसे पूछा। विष्णु भगवान बोले – तात! कहां से आते हो? यहां किसलिए तुम्हारा आगमन हुआ है?
मुनिश्रेष्ठ! तुम धन्य हो। तुम्हारे शुभागमन से मैं पवित्र हो गया। विष्णु भगवान का यह वचन सुनकर गर्व से भरे हुए नारद मुनि ने मद से मोहित होकर अपना सारा वृतांत बड़े अभिमान के साथ कह सुनाया। नारद मुनि का वह अहंकार युक्त वचन सुनकर मन ही मन विष्णु भगवान ने उनकी काम विजय के यथार्थ कारण को पूर्ण रूप से जान लिया।
तत्पश्चात श्री विष्णु बोले – मुनिश्रेष्ठ! तुम धन्य हो, तपस्या के तो भंडार ही हो। तुम्हारा हृदय भी बड़ा उदार है। मुने! जिसके भीतर भक्ति, वैराग्य और ज्ञान नहीं होते उसी के मन में समस्त दुखो को देने वाले काम मोह आदि विकार शीघ्र उत्पन्न होते है।
तुम तो नैष्ठिक ब्रह्मचारी हो और हमेशा ज्ञान वैराग्य से युक्त रहते हो फिर तुममे काम विकार कैसे आ सकता है। तुम तो जन्म से ही शुद्ध तथा निर्विकार बुद्धि वाले हो। श्री हरि की कही हुई ऐसी बहुत सी बातें सुनकर मुनि शिरोमणि नारद जोर-जोर से हंसने लगे और मन ही मन भगवान को प्रणाम करके इस प्रकार बोले।
नारद जी ने कहा – स्वामिन! जब मुझपर आपकी कृपा है तब बेचारा कामदेव अपना क्या प्रभाव दिखा सकता है। ऐसा कहकर भगवान के चरणों में मस्तक झुकाकर इच्छानुसार विचरने वाले नारद मुनि वहां से चले गए। सूत जी कहते है महर्षियो! जब नारद मुनि इच्छानुसार वहां से चले गए।
तब भगवान शंकर की इच्छा से माया विशारद श्री हरि ने तत्काल अपनी माया प्रकट की। उन्होंने मुनि के मार्ग में एक विशाल नगर की रचना की जिसका विस्तार सौ योजन था। वह अद्भुत नगर बड़ा ही मनोहर था। भगवान ने उसे अपने बैकुंठ लोक से भी रमणीय बनाया था।
नाना प्रकार की वस्तुए उस नगर की शोभा बढ़ाती थी। वहां स्त्रियों और पुरुषो के लिए बहुत से विहार स्थल थे। वह श्रेष्ठ नगर चारो वर्णो के लोगो से भरा था। वहां शीलनिधि नामक ऐश्वर्यशाली राजा राज्य करते थे। वे अपनी पुत्री का स्वयंवर करने के लिए उद्यत थे।
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