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न्याय शास्त्र में व्याप्य के आरोप से किया जाने वाला व्यापक का आरोप कहलाता है तर्क जो कि एक प्रकार आपत्ति स्वरुप होता है। अतः उन आपत्तियों को न यहां ‘तर्क संग्रह’ से समझ लिया जाय इसलिए दीपिकाकार ‘तर्कसंग्रह’ शब्द की व्याख्या करते है।
प्रमिति है प्रभा अर्थात यथार्थज्ञान। अभिप्राय यह है कि न्याय शास्त्र के अध्ययन से द्रव्य गुण आदि सात पदार्थो का यथार्थ ज्ञान होता है इसलिए पदार्थ ज्ञान के विषय होने वाले द्रव्य आदि सात पदार्थ कहे जाते है तर्क। संग्रह शब्द का अर्थ अधिकतर लेना एकत्र करना यह हुआ करता है जो कि प्रकृति में संभव नहीं है।
इसलिए ‘संग्रह’ शब्द की व्याख्या की गयी है। स्वरुप कथन का अर्थ स्वरुप ज्ञान के अनुकूल वाक्य प्रयोग यह ज्ञातव्य है। ग्रंथकार ने अपने प्रकृति ग्रंथ का ‘तर्कसंग्रह’ यह नाम रखकर यह सूचित किया है कि इस ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय है – द्रव्य, गुण आदि सात पदार्थ, उन सात पदार्थो का तत्व निश्चिय है।
इस ग्रंथ के प्रणयन का प्रयोजन द्रव्य गुण आदि तत्व अर्थात प्रतिपाद्य पदार्थ और इस तर्क संग्रह ग्रंथ के बीच प्रतिपाद्य प्रतिपादक भाव है संबंध, तथा उक्त पदार्थ तत्व निश्चय के इच्छुक व्यक्ति होगा इस ग्रंथ के अध्ययन का अधिकारी। सारांश यह कि ग्रंथकर्ता ने प्रथम पद्य के द्वारा उस अनुबंध चतुष्टय का भी द्योतन किया है। इस बुक को पूरा पढ़ने के लिए नीचे की लिंक पर क्लिक करे।
Tark Sangrah PDF In Saskrit Download
पुस्तक का नाम | तर्क संग्रह Pdf |
भाषा | संस्कृत |
पृष्ठ | 306 |
लेखक | आनंद झा |
साइज | 147.7 Mb |
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