नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Tripura Rahasya Pdf Hindi देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Tripura Rahasya Pdf Hindi Download कर सकते हैं और आप यहां से Kali Tantra Pdf Hindi कर सकते हैं।
Tripura Rahasya Pdf Hindi Download
पुस्तक का नाम | त्रिपुरा रहस्य Pdf |
पुस्तक के लेखक | श्री सनातन देव जी महराज |
फॉर्मेट | |
साइज | 7 mb |
कुल पृष्ठ | 398 |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी |


Note- इस वेबसाइट पर दिये गए किसी भी पीडीएफ बुक, पीडीएफ फ़ाइल से इस वेबसाइट के मालिक का कोई संबंध नहीं है और ना ही इसे हमारे सर्वर पर अपलोड किया गया है।
यह मात्र पाठको की सहायता के लिये इंटरनेट पर मौजूद ओपन सोर्स से लिया गया है। अगर किसी को इस वेबसाइट पर दिये गए किसी भी Pdf Books से कोई भी परेशानी हो तो हमें newsbyabhi247@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं, हम तुरंत ही उस पोस्ट को अपनी वेबसाइट से हटा देंगे।
सिर्फ पढ़ने के लिये
श्री हरि की माया के द्वारा रचे हुए दोष और गुण श्री हरि के भजन के बिना नहीं जाते। मन में ऐसा विचारकर सब कामनाओ को छोड़कर निष्काम भाव से श्री राम जी का भजन करना चाहिए। हे पक्षीराज! उस कलिकाल में मैं बहुत वर्षो तक अयोध्या में रहा। एक बार वहां अकाल पड़ा तब मैं विपत्ति का मारा विदेश चला गया।
हे सर्पो के शत्रु गरुण जी! सुनिए, मैं दीन, मलिन, दरिद्र दुखी होकर उज्जैन गया। कुछ काल बीतने पर कुछ संपत्ति प्राप्त कर मैं वही भगवान शंकर की आराधना करने लगा। एक ब्राह्मण वेद विधि से शिव जी की पूजा करते थे उन्हें कोई दूसरा काम न था।
वह परम साधु और परमार्थ के ज्ञाता थे। वह शंभू के उपासक थे पर हरि की निंदा भी नहीं करते थे। मैं कपट पूर्वक उनकी सेवा करता था। ब्राह्मण बड़े ही दयालु और नीति के भंडार थे। हे स्वामी! बाहर से नम्र देखकर ब्राह्मण मुझे पुत्र की भांति पढ़ाते थे।
उन ब्राह्मण श्रेष्ठ ने मुझे शिव जी का मंत्र दिया और अनेक प्रकार से शुभ उपदेश किए। मैं शिव जी के मंदिर में जाकर मंत्र जपता। मेरे हृदय में दंभ और अहंकार बढ़ गया।
मैं नीच जाति का और पापमयी मलिन बुद्धि वाला मोहवश श्री हरि के भक्तो और द्विज जनो को देखते ही ईर्ष्या करने लगता और विष्णु भगवान से द्रोह करता था। गुरु जी मेरे आचरण देखकर दुखी थे। वह मुझे नित्य ही भली-भांति समझाते थे पर मैं कुछ भी नहीं समझता उलटे मुझे खीझ उत्पन्न होती थी। दंभी को कभी नीति अच्छी नहीं लगती है?
एक बार गुरु जी ने मुझे बुलाकर बहुत प्रकार से परमार्थ नीति की शिक्षा दिया कि हे पुत्र! शिव जी की सेवा का फल यही है कि श्री राम जी के चरणों में प्रगाढ़ भक्ति हो। हे तात! शिव जी और ब्रह्मा जी भी श्री राम जी को भजते है फिर नीच मनुष्य की तो बात ही कितनी है?
ब्रह्मा जी और शिव जी जिनके चरणों के प्रेमी है अरे अभागे! उनसे द्रोह करके तू सुख चाहता है? गुरु जी ने शिव जी को हरि का सेवक कहा। यह सुनकर हे पक्षीराज! मेरा हृदय ईर्ष्या से भर गया। नीच जाति का मैं विद्या मिलने से मैं ऐसा हो गया जैसे दूध पिलाने से सांप।
गुरु जी अत्यंत दयालु थे उनको थोड़ा भी क्रोध नहीं होता था। मेरे द्रोह करने पर भी वह बार-बार मुझे उत्तम ज्ञान की ही शिक्षा देते थे। नीच मनुष्य को जहां से बड़ाई मिलती है वह सबसे पहले उसका ही नाश करता है। हे भाई! सुनिए, धूल रास्ते में निरादर से पड़ी रहती है और सब राह चलने वालो से कष्ट सहती रहती है।
मित्रों यह पोस्ट Tripura Rahasya Pdf Hindi आपको कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जरूर बतायें और Tripura Rahasya Pdf Hindi की तरह की पोस्ट के लिये इस ब्लॉग को सब्सक्राइब जरूर करें और इसे शेयर भी करें।